एक साधन सम्पन्न था। हर समय उस पर विलास सामग्री की धुन सवार रहती। सुरा सुन्दरी के मनोरथ ही मस्तिष्क पर छाये रहते। एक दिन किसी सन्त के पास पहुँचा और उक्त कुकर्म चिंतन से छुड़ा देने की प्रार्थना करने लगा।
दूसरे दिन उसे सन्त ने बुलाया और कान में कहा- ठीक आज ही की तिथि में ऐ महीने बाद तुम्हारी मृत्यु होनी है। जो तैयारी सम्भव हो सो कर लो। धनवान चिन्ता में डूब गया। दुःखी रहने लगा। घर और व्यवसाय की व्यवस्था बनाने में लगा गया। परलोक के लिए पुण्य अर्जित करने की योजनाएँ बनाने में जुट गया।
एक दिन शेष रहा तो सन्त ने उसे फिर बुलाया और पूछा कि इस अवधि में सुरा-सुन्दरी की योजना बनी या नहीं। उत्तर था- नहीं। जब मृत्यु का भय सामने हो तो विलास कैसा?
संत हँस पड़े। मृत्यु न होने का अभयदान दिया और कहा कुकर्म चिन्तन से दूर रहने का एक ही उपाय है कि मनुष्य हर समय मृत्यु सामने खड़ी होने का विचार करता रहे, और जीवन के एक एक क्षण का सदुपयोग करने की बात सोचे।