भगवान बुद्ध अनाथ पिण्डक के जैतवन में ग्रामवासियों को उपदेश कर रहे थे। शिष्य, अनाथ पिण्डक भी समीप ही बैठा, धर्मचर्चा का लाभ ले रहा था। तभी सामने से महाकाश्यप, मौद्गल्यायन, सारिपुत्र, चुन्द और देवदत्त आदि आते हुए दिखाई दिये। उन्हें देखते ही बुद्ध ने कहा- वत्स! उठो! यह ब्राह्मण मण्डली आ रही है, उसके लिए योग्य आसन का प्रबन्ध करे।
अनाथ पिण्डक ने आयुष्मानों की ओर दृष्टि दौड़ाई, फिर साश्चर्य कहा- भगवन्! आप सम्भवतः इन्हें जानते नहीं। ब्राह्मण तो इनमें कोई एक ही है, शेष कोई क्षत्रिय, कोई वैश्य और कोई अस्पृश्य भी है।
गौतम बुद्ध अनाथ पिण्डक के वचन सुनकर हँसे और बोले- “तात! जति जन्म से नहीं गुण, कर्म और स्वभाव से पहचानी जाती है। श्रेष्ठ, रागरहित, धर्मपरायण, संयमी और सेवा भावी होने के कारण ही इन्हें मैंने ब्राह्मण कहा है। ऐसे पुरुष को तू निश्चय ही ब्राह्मण मान– जन्म से तो सभी जीव शूद्र होते हैं।”