स्वप्नों के पीछे छिपे सूक्ष्मदर्शी संकेत

August 1986

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आमतौर से थका हुआ मस्तिष्क निद्रा के समय अवकाश पाकर छोटे बच्चों की तरह खेल खिलवाड़ करने लग जाता है। उस समय जो कुछ दीखता है वह निरर्थक सा लगता है। उसके बीच कुछ तारतम्य भी नहीं होता। बच्चे दिन भर खेलते कूदते हैं। यह सब मन मौजी होता है पर कोई बाल मनोविज्ञानी उनके पीछे प्रवृत्तियों की करतूतें भी आँक सकता है। कौन किस तरह के खेल खेल रहा है, इसकी संगति बिठाने से पता चलता है कि किन प्रवृत्तियों के उपादान किस स्तर के खेल खेलने की पृष्ठभूमि बना रहे हैं। सपनों के संबंध में भी यही बात है। आमतौर से वे बेतुके और तारतम्य विहीन लगते हैं पर कोई भी स्वप्न विशेषज्ञ अध्ययन द्वारा यह जान सकते हैं कि उनके पीछे क्या मानस काम कर रहा है?

सपने बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी को आते हैं। जो कहते हैं हमें नहीं आते वे प्रायः उन्हें स्मरण नहीं रख पाते, या फिर इतने महत्वहीन होते हैं कि स्मृति पटल पर कोई छाप नहीं छोड़ पाते। जिन्हें सचमुच ही सपने न आते हों, उन्हें असाधारण स्तर का मानना चाहिए, क्योंकि वह निद्रा योगी स्तर की होती है।

सामान्य सपनों में शरीर व्यथाओं का संकेत भर होता है। किस अवयव में क्या रोग प्रवेश कर चुका है या क्या प्रवेश करने वाला है, इसका बहुत कुछ संकेत सामान्य स्वप्नों में भी मिल जाता है। अचेतन मन की उच्च भूमिका में एक चिकित्सक भी रहता है जो स्वप्नों के माध्यम से चिकित्सा या परिचर्या भी बताता रहता है। इस साँकेतिक भाषा को समझना थोड़ा कठिन अवश्य है पर सूक्ष्मदर्शी उतने भर से अनुमान लगा सकते हैं। बहुत छोटे बच्चे जब रोते हैं तब कुशल अभिभावक उसका कारण, अर्थ और उपचार भली भाँति समझ लेते हैं।

मनुष्य की कितनी ही मानसिक व्यथाएँ ऐसी होती हैं जो अपनी अतृप्ति का इजहार स्वप्नों द्वारा करती रहती हैं। उन्हें तृप्त न भी किया जा सका तो भी सपना देखने भर से मन बहल जाता है और बोझ हल्का हो जाता है। समीपवर्ती वातावरण भी स्वप्नों के लिए उत्तरदायी है। शोर हो रहा हो, मच्छर काट रहे हों, गंध आ रही हो तो उनका तीखापन भी कठिनाई को प्रकारांतर ने व्यक्त करने वाला होता है। मल मूत्र त्याग की इच्छा हो या नींद में उठते न बन पड़ रहा हो तो भी इस स्तर के सपने आते हैं।

कुछ सपने आध्यात्मिक होते हैं उनमें पूर्वाभास रहते हैं। भविष्यवाणियाँ प्रकट होती हैं, संभावनाऐं छिपी रहती हैं। बिलकुल निकट भविष्य में कोई अनहोनी घटना घटित होकर चुकी हो, या घटित होने वाली हो उसका आभास जिन स्वप्नों में आता है उन्हें आध्यात्मिक स्वप्न कहते हैं। उन्हें देखने के बाद या अधूरा रहते आँख खुल जाती है। चित्त परेशान होता है। छाती धड़कने लगती है। स्थिति सामान्य न रहकर असामान्य हो जाती है। दुबारा सोने का प्रयत्न करने पर भी नींद नहीं आती और जो देखा है उसका प्रभाव मन पर से उतरता नहीं।

कई बार कोई स्वजन संबंधी मर चुके हों या मरने वाले हों तो उनकी आत्मा भी पूर्वाभास देने जा पहुँचती है। उसके पीछे कोई दुर्घटना हो तो उसका अनुमान भी लगता है।

कई बार दिवास्वप्न भी ऐसे अवसरों पर आते हैं। नींद नहीं होती। जाग्रत अवस्था होती है पर कुछ अप्रासंगिक आभास मन में उठता है। ऐसे स्वप्नों में कई बार भविष्य वाणियाँ होती हैं। आवश्यक नहीं कि सर्वथा ऐसा होकर ही रहे। उनमें कई बार मन का वहम भी होता है और पीछे कल्पना मात्र निकलती है पर कई बार उनमें संभावना का भी गहरा पुट रहता है।

प्रथम विश्वयुद्ध की शुरुआत आस्ट्रिया के राजकुमार आर्कड्यूक फैंकिस फर्डीनेन्ड की हत्या किये जाने के साथ ही हुई। आर्कड्यूक के भूतपूर्व शिक्षक विशेष जोसेफ लेनी ने एक भयानक स्वप्न में देखा कि यूगोस्लाविया के सारजेवे नामक स्थान पर 28 जून 1914 को सवा तीन बजे सुबह एक भारी भीड़ के मध्य आर्कड्यूक फर्नीनेन्ड की हत्या कर दी गई है।

नींद भंग होते ही जोसेफ लेनी की नजर घड़ी पर गई उस समय 3.15 बजे थे और जून की 14 तारीख थी। इस दुःस्वप्न को जोसेफ ने अपनी माँ और उपस्थित अतिथियों को सुनाया। कुछ क्षणों बाद ही एक टेलीग्राम प्राप्त हुआ जिसमें उसी समय आर्कड्यूक के मारे जाने की सूचना थी।

‘दी न्यूयार्क टाइम्स’ ने 16 अप्रैल 1912 के अंक में ‘टाइटैनिक’ नामक विशाल जलपोत के हिमशैल से टकराकर डूब जाने का एक दुःखद समाचार प्रकाशित किया था। 66,000 टन वजनी 882.5 फीट लम्बे जलयान में 2207 व्यक्ति बीस लाइफ बोटों के साथ यात्रा कर रहे थे। अटलाँटिक महासागर में 23 नॉट की रफ्तार से जा रहा टाइटैनिक एक आइसवर्ग से टकरा कर डूब गया। इस दुर्घटना में 1250 व्यक्ति डूब मरे और 886 यात्रियों को बचा लिया गया।

सुप्रसिद्ध उपन्यासकार मार्गन राबर्टसन ने 14 वर्ष पूर्व ही अपने उपन्यास “टाइटन की बरबादी अथवा अनुपयोगिता” (द रेक आफ दी टाइटन, ऑर फ्यूटिलिटी) में पूर्व कथन के रूप में वर्णन किया था। टाइटैनिक के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद उपन्यास में वर्णित आँकड़ों से जलयान की लम्बाई, वजन, डूबने का कारण, स्थान, समय तिथि, उसकी नॉटिकल स्पीड, पैसेंजरों की संख्या आदि का मिलान करने पर पाया गया कि दोनों में बहुत कुछ साम्य था।

स्वेडिश सोसायटी फार साइकिकल रिसर्च की संस्थापिका श्रीमती इवा हेलस्ट्राम ने सन् 1954 में एक स्वप्न में देखा कि वे अपने पति के साथ स्टाकहोम की सड़कों पर उड़ रही हैं। नीचे सड़क पर एक ही हरी ट्रेन सामने से आकर एक ट्राली से टकरा जाती है जिससे अनेकों व्यक्ति घायल हो जाते हैं। स्टाकहोम में उस समय भूरे रंग की रेलगाड़ियों का प्रचलन था परन्तु एक महीने बाद ही सभी गाड़ियों का रंग बदलकर हरे रंग से पेन्ट करा दिया गया। इवा हेलस्ट्राम को अब निश्चय हो गया कि उसका सपना अवश्य दृश्य में परिणत होकर रहेगा। इस घटना को उसने डायरी के पन्नों पर अंकित भी कर लिया। दो वर्ष बाद 4 मार्च 1956 को 4 नम्बर की एक नीली ट्राली हरे रंग की जेरुशलम ट्रेन से वल्हाला वेगन नामक स्थान पर दुर्घटनाग्रस्त हो गई। यह दुर्घटना ठीक उसी स्थान पर हुई थी जिस स्थान को श्रीमती इवा ने अपनी डायरी में नोट कर रखा था।

विश्व में मानवी गरिमा को अक्षुण्ण बनाये रखने वाले धर्म संस्थापकों के जीवन में स्वप्नों का विशेष महत्व रहा है। बुद्ध, ईसा, हजरत मोहम्मद से सम्बन्धित स्वप्न ऐसे थे जिन्होंने इतिहास को बदल दिया। इन महामानवों के जन्म से पूर्व ही इनके माता-पिता तथा कई अन्य अनुयाइयों को धर्म की रक्षा करने वाले देवदूतों की जानकारी स्वप्न में मिल गई थी। सीजर, हेन्नीबल, डेस्कार्टस, नेपोलियन और हिटलर के स्वप्न भी इस बात के प्रमाण हैं जिससे प्रेरित प्रभावित होकर इन दुस्साहसियों ने संसार को नये रूप में ढालने का प्रयत्न किया।

रोम पर चढ़ाई करने से पूर्व सीजर अपने सिपाहियों के साथ रूबीकान के पास पड़ाव डाले पड़ा था। रात्रि स्वप्न में सीजर ने देखा कि वह अपनी माता के साथ सो रहा है। स्वप्नदर्शियों द्वारा बताया गया कि इसका अर्थ है कि सीजर को साहसपूर्वक मातृ शहर रोम पर आक्रमण कर देना चाहिए। सीजर ने रोम पर चढ़ाई कर दी और बिना किसी अवरोध और रक्तपात के रोम पर अधिकार कर लिया।

बाद में रोम के दूसरे विजेता कार्थेजिनियन जनरल हेन्नीबल ने एक महत्वपूर्ण सपना देखा। जिसका वर्णन करते हुए रोम के प्रख्यात इतिहासकार बालेरियस मैक्सिमस ने लिखा है कि - “हेन्निबल ने स्वप्न देखा कि देवदूत जैसा सुन्दर नवयुवक उसके सामने प्रकट होकर कह रहा है कि उसे स्वर्ग से इसलिए भेजा गया है कि वह हेन्नीबल को इटली पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित करे। हेन्नीबल ने देखा कि एक विशालकाय सर्प उसके रास्ते में विजय में आड़े आने वाली प्रत्येक वस्तु को जबरदस्ती प्रचण्ड वेग से हटाता और नष्ट करता जा रहा है। सर्प के ऊपर आकाश में फैले अंधेरे धुँधले बादलों को चीरते फाड़ते हुए प्रकाश चारों तरफ फैल गया है।” इस स्वप्न के आधार पर हेन्नीबल ने इटली पर आक्रमण करके उसे तबाह कर दिया और विजयी रहा।

ग्रीक इतिहासवेत्ता हेरोडोटस ने अपनी पुस्तक में ग्रीस विजेता पर्शियन नवयुवक जेरक्सेस के स्वप्नों का वर्णन किया है। स्वप्न के आधार पर जेरक्सेस ने ग्रीस पर धावा बोल दिया और भयंकर रक्तपात किया था। एक दूसरे स्वप्न के आधार पर उसका शासनकाल अल्पकालीन ही रहा। ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जिनमें पैगम्बरी स्वप्नों से प्रेरित होकर महापुरुषों और दुस्साहसियों ने अपने अपने भविष्य गढ़े हैं।

ओलिवर क्रोम्बेल को स्वप्न में एक दैत्याकार महिला का दर्शन हुआ जिसने बताया कि ओलिवर इंग्लैण्ड का एक महान पुरुष बनेगा। स्वप्न में देखे दृश्य के अनुसार ही ओलिवर ने इंग्लैण्ड में अपने प्रतिद्वंद्वी को हराकर एक दिन महानता अर्जित की। सन् 1485 में बोसवर्थ फील्ड के निर्णायक युद्ध में जाने से पूर्व राजा रिचर्ड तृतीय ने स्वप्न में एक दुष्टात्मा को देखा जिसने बार-बार रिचर्ड की आँखों के सामने नृत्य करते हुए उसकी नींद हराम कर दी। यह स्वप्न राजा की पराजय का पूर्वाभास था। लड़ाई में रिचर्ड मारे गये थे।

10 वर्ष की आयु में अलेक्जेन्डर महान ने एक स्वप्न में देखा था कि एक परदार साँप-ड्रैगन उसे एक सफेद अंडा खाने के लिए दे रहा है। यह सपना भविष्य में उसकी महानता और सफलताओं का द्योतक माना गया था।

वाटरलू की लड़ाई से पूर्व नेपोलियन ने अपनी जय और पराजय के सपने देखे थे। स्वप्न में देखी गई एक काली बिल्ली जो दोनों सेनाओं के मध्य बेतहाशा दौड़ लगाती है और नेपोलियन के सैनिकों को टुकड़े-टुकड़े कर डालती है, नेपोलियन की पराजय का संकेत था। राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को अपनी हत्या किये जाने का पूर्वाभास स्वप्न में ही हो गया था। मेरी एन्टोइनेटी ने सपने में एक कालम पर उगते लाल सूरज को देखा जो शीघ्र ही समाप्त हो गया। यह दृश्य मेरी के पतन और उसके प्राण दण्ड का पर्याय बना। चांसलर आटोवान विस्मार्क ने बादशाह विलियम प्रथम को एक स्वप्न का हवाला देते हुए बताया था कि आस्ट्रिया के चंगुल से उसने कैसे मुक्ति पाई। उपरोक्त स्वप्नों के उदाहरण ऐसे हैं जिनसे विश्व इतिहास प्रभावित हुआ है।

सन् 1917 में प्रथम विश्व युद्ध के समय बैवेरियन इन्फैन्ट्री के कार्पेरिल एंडाल्फ हिटलर युद्ध मैदान में अपने बैरक में सैनिकों के साथ पड़ा एक भयानक स्वप्न देख रहा था। स्वप्न में वह भूस्खलन से और पिघले हुए लौह से मिट्टी के नीचे धँसा जा रहा है और उसके सीने से रक्त रिस रहा है। नींद खुलते ही हिटलर हड़बड़ा कर उठ खड़ा हुआ और साथियों पर नजर दौड़ाई तो सभी सही सलामत थे। सामने दूरस्थ फ्रेंच टुकड़ी का जमघट दिखाई दे रहा था। स्वप्न के दृश्यों से भयभीत हिटलर आश्रय स्थान को छोड़कर अकेले ही दूर खाई के ऊपरी हिस्से पर जाकर खड़ा हो गया। वहाँ भी वह नहीं ठहर सका और अपनी इच्छा शक्ति के विरुद्ध अन्तः प्रेरणा के आधार पर आगे बढ़ गया। कुछ क्षणों पश्चात बरक में भयंकर विस्फोट हुआ और उसके सभी सिपाही मलबे में जिन्दा दफन हो गए। अकेला हिटलर ही बचा रहा। इस घटना ने हिटलर की महत्वाकांक्षा को आगे बढ़ाया। उसे विश्वास हो गया कि विश्व में कुछ महान कार्य करने के लिए भाग्य उसकी प्रतीक्षा कर रहा है और ईश्वर उसे सहायता प्रदान कर रहा है।

इसी प्रकार फ्राँसीसी क्रान्ति नेता जीन पीशान ने बचपन में एक स्वप्न देखा कि भूखे भेड़िये उसे खाये जा रहे हैं। सपना सच हुआ उसकी मृत्यु भेड़ियों द्वारा चबा लिये जाने से ही हुई।

प्रसिद्ध फ्रांसीसी भविष्यवक्ता लॉरॉन ने भविष्यवाणी की थी कि उसकी मृत्यु ग्लेशियर में दबने से होगी। लेकिन लाश ठीक दो वर्ष बाद फिर वहीं से मिल जायगी। ठीक ऐसा ही हुआ।

रिवाद (जॉर्डन) के भविष्यवक्ता अब्दुल रजाक ने एक बार स्वप्नदर्शी भविष्यवाणी की कि बादशाह अब्दुल्ला का कत्ल होगा। भविष्यवाणी सच निकली। इसके बाद उसने 13 वर्ष तक मौन रहने की प्रतिज्ञा की ताकि ऐसी ही अशुभ भविष्यवाणी और किसी के संबंध में वह न कर बैठे।

वस्तुतः अचेतन मस्तिष्क का अविज्ञात वाला भाग बड़ा ही अद्भुत विस्मयकारी है। सपने हमें एक झाँकी दिखाते हैं, उस परोक्ष जगत की, जिसका कि आभास मन को अचेतन अवस्था में सतत् होता रहता है। यदि इन सूक्ष्मदर्शी संकेतों से औरों की तरह कुछ सबक लेकर साधना पराक्रम द्वारा प्रसुप्त को जगाने का प्रयास किया जाय तो इतना कुछ हस्तगत हो सकता है जिसकी कि कल्पना भी नहीं की जा सकती।

प्रकृति के विलक्षण अंकन

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रेगिस्तानों में जब तेज हवा चलती है, तब वह टीलों को एक जगह से दूसरी जगह उड़ा ले जाती है। समतल को ऊबड़ खाबड़ और ऊबड़ खाबड़ को समतल कर देती है। पर यह उथल पुथल होते बेसिलसिले ही हैं। उसे प्रकृति का साधारण खेल भी माना जाता है और दूसरी ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता।

पर आश्चर्य तब होता है जब हवाएं किसी विशेष क्रम से चलती हैं और बालू पर अपने विशेष प्रकार के निशान बनाती चली जाती हैं। नात्का, पेरू आदि के रेगिस्तानों में यह कौतूहल विशेष रूप से दृष्टिगोचर होता है। उन क्षेत्रों में जब तेज हवाएं चलती हैं तब वे चित्र विचित्र ढंग से अपनी गति बदलती हैं। कभी सीधी चलती हैं। कभी टेड़ी तिरछी कभी लहराती हुई। बालू के कण उनसे प्रभावित होते हैं। फलतः मीलों लम्बे घेरे में भूमि पर ऐसी रेखाएं बन जाती हैं मानो किसी गणितज्ञ ने रुचिपूर्वक नाप तौलकर ज्यामिती के आधार पर उन्हें बनाया हो और इस समूचे क्षेत्र को रहस्यमय कलाकारिता की पृष्ठभूमि में सजाया गया हो। आकृतियाँ इतनी अजीबोगरीब इतनी आकर्षक होती हैं कि दर्शक का मन मोह लेती हैं और प्रकृति की इस कलाकारिता को वह स्तब्ध होकर देखता रह जाता है। इस क्षेत्र में कितने ही दर्शक दूर देशों से इसी निमित्त आते हैं कि प्रकृति विनिर्मित इस कलात्मक संरचना को देखें और दृश्यों की विभिन्नता का आनन्द लूटें।

विगत आधी शताब्दी से इन कृतियों के रहस्य खोजे जा रहे हैं और किसी निष्कर्ष पर पहुँचने का प्रयत्न किया जा रहा है पर अभी तक कुछ तुक बैठा नहीं है। रहस्य तब और भी गहरा हो जाता है जब बालू और कंकड़ों से मिलकर बंदर, रीछ, बैल, भेड़ जैसे छोटे और गुलाई लिए हुए जानवरों की अनुकृतियाँ बनकर खड़ी हो जाती हैं। दूर से फोटो लेने पर वे जीव जन्तु ही प्रतीत होते हैं। पर भेद तब खुलता है जब उन्हें निकट जाकर देखा जाता है।

इस अजूबे के शोधकर्ता जर्मन वैज्ञानिक मारिया रीच ने इसी प्रयोजन की तह तक पहुँचने के लिए उनमें अपना डेरा डाला है और यह जानने का प्रयत्न किया है कि आखिर होता ऐसा क्यों है।

इन विचित्र रेखाओं का एक विशेष नामकरण किया गया है “नाज्का” इनके साथ कौतूहल ही नहीं वरन् ज्योतिष विज्ञान की भी कितनी ही तुकों का समावेश होता है। एक क्षेत्र में किसी विशेष मास में निश्चित तारीख को नियत रेखाएँ बनती हैं। जिन्हें उन दिनों के कार्यक्रम तथा भविष्य की जन्म कुण्डली कहा जा सकता है। इस आधार पर यह सोचा गया है कि यह अंकन विश्व के विभिन्न समूह क्षेत्र से संबन्धित भूतकालीन एवं भावी घटनाक्रमों को अंकन करते हैं जिसका रहस्य पढ़ लिये जाने पर यह जाना जा सकेगा कि प्रकृति अपने ढंग से अपनी भाषा में अपनी कलम से कुछ विचित्र लेखन करती है। पढ़े लिखों की तरह मनुष्यों से कहती है कि “क्या तुम इस अविज्ञात का अर्थ बता सकने जितना पढ़ लिख गये हो?”

संसार में अन्यत्र भी ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें धरती की पट्टी पर बहुत कुछ रहस्यमय लिखा है। मिस्री रेगिस्तान में कई जगह हंसने रोने या गाने जैसी आवाजें बालू में से निकलती हैं। पर उनकी गतिविधियाँ तीव्र होना वायुवेग के ऊपर निर्भर रहता है।

नाज्का रेखाएँ 4 से 18 इंच तक ऊँची उठी हुई देखी गई हैं और उनसे बने हुए खिलौनों की ऊँचाई 90 फुट से लेकर 400 फुट तक ऊँची देखी गई है।

वाशिंगटन विश्व विद्यालय एवं ब्रिटेन के खगोल शास्त्रियों ने उस क्षेत्र में पाई जाने वाली चट्टानों पर देखे गये अंकनों में पृथ्वी का आदिम काल से अद्यावधि घटित हुए घटनाक्रम का विवरण तैयार करने का प्रयत्न आरम्भ किया है।

कैसी विचित्र है प्रकृति की रहस्यमयी भाषा और लेखनी! कौन समझ पायेगा उसके पग-पग पर बिखरे चित्र विचित्र रहस्यों को।


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