चित्र आमतौर से द्विआयामीय होते हैं। उनमें लम्बाई चौड़ाई ही दृष्टिगोचर होती है। आगे पीछे के, ऊँचे नीचे के वस्तु संकेतों को देखकर यह अनुमान लगाया जाता है कि यह कितनी गहरी या ऊँची होनी चाहिए।
गत दो दशकों में त्रिआयामीय चित्र बनाने का सिलसिला चल तो पड़ा है पर सर्व साधारण के लिए अभी पूरी तरह सुलभ नहीं हुआ।
अभी उनका मोटा तरीका इतना ही है कि दो आँखों पर दो चित्र एक जैसे ही लगाये जाते हैं। एक फोकस बिन्दु पर जब दोनों की छवियाँ एकत्रित हो जाती हैं, तब उनकी गहराई-ऊँचाई भी अनुभव में आने लगती है। बच्चों के टेलिस्कोप और दो बिन्दीदार चित्रों को आपस में सटाकर भी यह कौतूहल बच्चों के लिए सुलभ हो गया है कि वे त्रिआयामीय चित्र देखें। सिनेमा ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाया और कुछ थ्री.डी. फिल्में भी पिछले दिनों बनाई हैं। यह फिल्में होलोग्राफी के सिद्धान्त के आधार पर बनाई गई थीं। इसमें मात्र गहराई, ऊँचाई, निचाई ही नहीं दीखती थी पर साथ ही इतना और भी देख पड़ता था कि सामने का पर्दा कोई खुला मैदान है और उसमें से निकल कर शेर घोड़े वगैरह इस तरह दौड़ते आ रहे हैं मानो वे दर्शकों पर सवार ही होने वाले हैं। प्रारंभ में इन्हें देखकर अनेक सिनेमा दर्शक भयभीत हो गये और चीखते हुए हाल से भागे। कइयों को वह कौतूहलवर्धक दृश्य इतने आश्चर्यजनक लगे कि उनने उन्हें कई-कई बार देखा। पर अब यह प्रयोग नवीन नहीं रहा। “थ्री डी” कामिक्स काफी लोकप्रिय हो गये हैं।
इस थ्री डायमेन्शनल तकनीक को विज्ञानी यूक्लिड ने आविष्कृत किया था और इसका नाम स्टीरियोस्कोपी दिया था। इस आधार पर प्रथम फिल्म “बवाना डेविल” बनी थी, जो बहुत ही सफल रही। बीच में तकनीकी कठिनाइयों के कारण वह बहुत विस्तार न पा सकी, पर बाद में नये सिरे से ऐसी शृंखला को कार्यान्वित करने की हालीवुड ने एक समग्र योजना बनायी एवं वे इसमें सफल रहे।
अलबर्ट आइंस्टीन ने इस विश्व ब्रह्माण्ड में संव्याप्त अनेक आयामों की संभावना व्यक्त की थी। इसमें से वे उपलब्ध जानकारियों व उनकी परिणतियों पर प्रामाणिक प्रकाश डालते थे और कहते थे कि जब मनुष्य चतुर्थ आयाम के तथ्यों को कार्य रूप में परिणति करने लगेगा तब उसके ज्ञान में अबकी तुलना में अनेक गुनी वृद्धि होगी। साथ ही ऐसी शक्ति भी हस्तगत होगी जिसे जादुई कहा जा सके। वस्तुतः चतुर्थ आयाम को जादू लोक की समता दी जाय तो कुछ अत्युक्ति न होगी।
जर्मनी के प्रो. जौलनर ने वर्षों अथक परिश्रम करके चतुर्थ आयाम डडडडडडडड के बारे में अनेक महत्वपूर्ण खोजें की। अनुसंधान के दौरान उनने पाया कि अगणित ऐसे कार्य, जो त्रिआयामीय स्पेस में संभव नहीं, उन्हें चतुर्थ-आयामीय स्पेस में सुगमतापूर्वक सम्पन्न किया जा सकता है। यथा धातु की बनी गेंद को दस्ताने की तरह उल्टा जा सकता है। इसी प्रकार दोनों किनारों से बँधे धागे में आसानी से गाँठ लगायी जा सकती है एवं दो पृथक डिब्बों में बन्द छल्लों की, डिब्बों को खोले बिना आपस में फँसाया जा सकता है। उनका कहना है कि इसी प्रकार के अनेकानेक अजीबोगरीब करतब दिखाये जा सकते हैं।
यही नहीं, इस आयाम की विश्वसनीयता को प्रामाणित करने के लिए उनने परोक्ष जगत से भी संपर्क किया और अनेक माध्यमों का सहयोग लेकर कई प्रकार के प्रयोग किये। कहा जाता है कि इसमें इन्हें अद्भुत सफलता मिली। एक प्रयोग के मध्य देखा गया कि वे जिस कुर्सी पर बैठे थे, उसकी भुजा से उनकी बाँह अपने आप बँध गई, यद्यपि उनका दूसरा हाथ टेबुल पर था, जिसे प्रयोग के दौरान उनने संचालित किया ही नहीं। एक अन्य प्रदर्शन में टेबुल के दोनों सिरों से बँधी डोरी में स्वतः गांठें बँध गई। तात्पर्य यह कि परोक्ष जगत के माध्यम से चौथे आयाम के चमत्कारों को आसानी से देखा जा सकता है। प्रेतात्माएँ भी चौथे आयाम की पुष्टि करती हैं और चतुर्थ आयाम प्रेत योनि के अस्तित्व को असंदिग्ध रूप से प्रमाणित करता है।
प्रो. क्रुक्स ने तो यहाँ तक कहा है कि चौथे आयाम में पहुँच जाने के बाद वस्तुओं का वजन अप्रत्याशित रूप से घट जाता है तथा एडगर वैलेस के अनुसार इस आयाम में शरीर अग्निरोधी बन जाता है, उसे आग से किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुँचती।
वैज्ञानिकों द्वारा यह अनुमान लगाया गया है कि जब मनुष्य फोर्थ डायमेन्शन क्षेत्र में प्रवेश करेगा तो उसकी यही आँखें टेलिस्कोप और स्टीरियो माइक्रोस्कोप का काम करने लगेंगी। वह पीने के पानी में चलते फिरते कीड़े देख सकेगा और जिस प्रकार राडार दूर-दूर तक की आकाश में उड़ती वस्तुओं को अपने पर्दे पर दिखा देता था, उसी प्रकार मनुष्य की गरुड़ दृष्टि भी अन्तरिक्ष और इतनी दूर तक इतनी स्पष्टता के साथ देख सकेगी जैसे कि अपनी आँखों से एक सीमित मोटाई और दूरी देखी जाती है। इस प्रकार मनुष्य की दृष्टि में विशिष्टता भरी जाने का स्वाभाविक परिणाम यह होगा कि उसका ज्ञान कहीं अधिक बढ़ जाय और उस आधार पर अपनी सुरक्षा और प्रगति संबन्धी कई समस्याओं का समाधान संभव हो सके। जितना वह अब जानता है उसकी तुलना में अधिक जानकार बन सके।
चतुर्थ आयाम में प्रवेश कर सकने वाला प्राणी एक प्रकार से सिद्ध पुरुष होगा। वह पीछे मुड़ कर बीती हुई घटनाओं को भी देख सकेगा और सिर उठाकर यह भी अनुमान लगा सकेगा कि भवितव्यता क्या है? निकट भविष्य में क्या होने जा रहा है? कारण की घटनाओं का तारतम्य उनके प्रत्यक्षतः सामने आने से पूर्व ही चल पड़ता है और उसका आभास मिलना संवेदनशील इन्द्रियों के लिए सरल होता है। अनेक जीव-जंतु भूकम्प, वर्षा आदि की घटनाओं के घटित होने के पूर्व ही अनुमान लगा लेते हैं और समय से पूर्व ही अपने बचाव का उपाय कर लेते हैं। इसे चतुर्थ आयाम का सीमित आभास कह सकते हैं। इस आधार पर अपना दूसरों का भूतकाल और भविष्यत् बहुत अंशों में जाना जा सकता है।
इतना ही नहीं, इसके साथ एक नई शक्ति का भी प्रादुर्भाव हो सकता है। चौथे आयाम में प्रविष्ट व्यक्तियों के सूक्ष्म नेत्रों में ऐसी शक्ति हो सकती है जिसके सहारे वे अदृश्य लोक में भ्रमण करने वाले जीवात्माओं की सत्ता का परिचय प्राप्त कर सकें। उन्हें विदित होने लगे कि किस स्तर की मृतात्मा कितनी दूरी पर किस स्थिति में रह रही है। उसके साथ संबन्ध मिलाना और आदान-प्रदान का सिलसिला चला भी कुछ कठिन न रहेगा।
अभी हम द्विआयामीय या त्रिआयामीय दुनिया में रह रहे हैं। त्रिआयामीय तक का भी थोड़ा बहुत उपयोग ही हाथ लगा है। पर जब चौथे आयाम में प्रवेश करना बन पड़ेगा तो बुद्धि एवं शक्ति का इतना विस्तार होगा जिसे “सिद्धावस्था” कहा जा सकेगा।