अन्तरिक्ष के अविज्ञात जासूस

August 1986

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इन दिनों अद्भुत, अनुपम और असाधारण वस्तुओं के दृश्य अन्तरिक्ष में उड़ते हुए बहुलता के साथ दीख पड़ते हैं। इनके अस्तित्व को नकारा तो नहीं जा सकता, पर यह अनुमान अवश्य लगाया जा रहा है कि जो घटना-क्रम सहस्राब्दियों से दृष्टिगोचर नहीं हुए, वे अब इन दिनों क्यों बहुलता के साथ प्रकट हो रहे हैं?

आरम्भ में उन्हें उड़न तश्तरी (यू.एफ.ओ.) नाम दिया गया था। गोल चमकदार वस्तु के रूप में आकाश में से इन्हें मंडराते हुए देखकर किसी चक्र आकृति का बोध होता था। इसलिए उन दृश्य पदार्थों को वह नाम दिया जाता था। पर अब वैसी स्थिति नहीं रहीं उनकी अनेकानेक आकृतियाँ देखी गई हैं और पुराना क्रम भी उनका यही रहा कि प्रकट होना और लुप्त हो जाना। वे अब लुप्त नहीं होतीं और अपने लक्ष्य के अनुसार काम करती हैं।

धरती की स्थिति को जानने परखने के लिए उसके ठोस पदार्थों को ही प्रयोग प्रयोजन के लिए प्रयुक्त करना पर्याप्त नहीं, वरन् अधिक गहरी छानबीन करने और पदार्थ को अन्यत्र किसी दूरवर्ती ग्रह उपग्रह में ले जाने की आवश्यकता पड़ती है। इन दिनों तूफानों का उभार है। एशिया, अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका के भू भागों में इन दिनों ऐसे तूफानी चक्रवात प्रकट हो रहे हैं, जिनकी ऋतु को देखते हुए संभावना या आशंका सोचते नहीं बनती।

सहस्राब्दियों पूर्व महामारी, दुर्भिक्ष, अति वर्षा, टिड्डी एवं तूफान की लम्बी लहरें आती थीं। वे किसी बड़े क्षेत्र को प्रभावित करती थीं और दूरवर्ती लम्बाई पार करने के उपरान्त शान्त होती थीं। उनका प्रभाव भी देर तक रहता था। इससे प्रतीत होता था कि धरती की भीतरी या ऊपरी पात में कोई गड़बड़ी आई है और यह विग्रह खड़ा हुआ है। पर अब ऐसा नहीं होता। भयंकर तूफान कहीं भी आ जाते हैं और वे थोड़ी परिधि में अपना ताण्डव नृत्य दिखाकर समाप्त हो जाते हैं।

इस वर्ष बंगलादेश के तटीय क्षेत्र से लेकर केरल तक के समुद्र तट के किनारे-किनारे खण्ड तूफान आये हैं। वे लगातार नहीं चले और न उनकी अवधि लम्बे काल की रही। परन्तु तीव्रता इतनी देखी गई कि जिस क्षेत्र को भी उनकी चपेट में आना पड़ा, उसका कचूमर निकल गया। राजस्थान में भरतपुर, धौलपुर, जयपुर आदि में भी यह खण्ड विग्रह उतरे, वे आँख मिचौनी खेलते रहे। हिमालय क्षेत्र में इस बार इतनी बर्फ पड़ी और वर्षा हुई कि यातायात के मार्ग रुक गये और उन क्षेत्रों में बसने वालों के लिए निर्वाह साधन जुटाने कठिन पड़े।

कुछ वर्षों पूर्व दिल्ली नगर में असाधारण बवंडर (चक्रवात) आया था। वैसा उससे पूर्व एवं पश्चात् कभी नहीं देखा गया। इस बवंडर के मध्य में एक प्रकाश का गोला भी गुजरता उठता देखा गया था। ऐसी ही घटनाएँ संसार में अन्यत्र भी प्रकाश में आईं हैं।

उड़न तश्तरियाँ कोई प्रकृति में दृश्यमान गुत्थी या दृष्टिदोष है, अब ऐसा नहीं माना जाता। उनकी आकृति एवं चाल भी ऐसी उलटी सीधी देखी गई है, जिससे उनका पीछा किसी विशाल प्रक्षेपणास्त्र से भी नहीं किया जा सकता।

अब ये अनचीन्हीं वस्तुएं वैज्ञानिकों के लिए गुत्थी बन गई हैं। अन्तरिक्ष में छाया हुआ उपग्रहों का कबाड़ भी इस तरह बरस सकता है, यह बात भी समझी नहीं जा सकती। जिस बात पर मन जमता है, वह एक ही यह मान्य अनुमान है कि संभवतः अन्तर्ग्रही नियंत्रण कक्ष पृथ्वी के बिगड़ते हुए वातावरण और चिन्तन के विक्षिप्तों जैसे उन्माद को समूचे ब्रह्माण्ड के लिए संकट मानते हैं और बर्बादी से पूर्व स्थिति का जायजा लेकर उस पर नियंत्रण स्थापित करने का उपाय सोच खोज रहे हों।


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