सुयोग आकस्मिक है- सौभाग्य सद्भावजन्य

August 1986

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कई बार मनुष्य आकस्मिक सुयोगों का लाभ उठा लेता है। वह विपत्ति से बच निकलता है और अनिष्ट उसे मात्र छूकर निकल जाते हैं। ऐसे घटनाक्रमों को आश्चर्य माना जाता है और सौभाग्य भी।

रॉय सुलीवॉन अमरीका में विश्व का एकमात्र जीवित मनुष्य है जिसने आकाशीय विद्युत का 7 बार आघात सहन कर वरजिनिया के मानवीय विद्युत-संवाहक के नाम से ख्याति अर्जित की है। सुलीवॉन खुद को जानकारी नहीं हैं कि विद्युत क्यों उसके प्रति आकर्षित है। सन् 1942 में पहला वज्रपात उसके ऊपर हुआ। फलस्वरूप पैर के अंगूठे का नाखून जल गया। उसके बाद यह वज्रपात का सिलसिला 1969 से बराबर जारी रहा। जुलाई 1969 में भौहें जलीं। जुलाई 1970 में बाँया कंधा झुलस गया। 16 अप्रैल 1972 को बालों में आग लगी और 7 अगस्त 1973 में फिर से बालों में आग लगी। उस आघात के फलस्वरूप अपनी गाड़ी से 10 फीट दूर गिर पड़ा और माथा ठंडा करने के लिए पानी डालना पड़ा। उसके बाद 5 जून 1976 के छटे वज्राघात से टखने (Ankle) को चोट पहुंची और सातवें एवं अन्तिम बार के आघात से छाती के साथ आमाशय जल गया।

पर इससे यह नहीं कहा जा सकता कि तड़ित चालक बनकर उसे ईश्वर की अनुकम्पा मिली। यदि ऐसा हुआ होता तो उसने कुछ सोचा होता और बचे हुए जीवन को ऐसे परमार्थ प्रयोजनों में लगाया होता जिसकी सर्वत्र सराहना होती। कितनों को ही प्रेरणा मिलती और कई जीवन की सार्थकता अनुभव करते हुए अनुकरणीय मार्ग पर चलते।

बेलजियम के ‘हरक्युलीस’ जान मेसीस ने 7 अप्रैल 1979 को अपने दाँतों से हैलिकाप्टर को ऊँचा उठाने से रोक लिया था। मनुष्य बनाम मशीन की इस रस्सा-कशी में हैलिकाप्टर का ऊर्ध्व दबाव 375 पौण्ड आँका गया था।

यह कार्य सर्व साधारण के लिए असंभव है। दाँत जबड़े हर किसी के इतने मजबूत कहाँ होते हैं?

जोहन हर्लींगर ने 1900 ईस्वी में वियेना से पेरिस 871 मील का रास्ता हाथों के बल चल कर तय किया। प्रतिदिन 10 घण्टे 1.58 मील की रफ्तार से यह यात्रा 55 दिन में पूरी की।

लम्बी यात्राएँ कई करते हैं। पर वे रुक-रुक कर होती हैं। चलने वाले पैरों के बल चलते हैं और बीच-बीच में सुस्ताते रहते हैं। अनवरत इतना श्रम कर पाना हर किसी के लिए कहाँ संभव है?

किन्तु यह सब किया गया शक्ति प्रदर्शन भर के लिए। औरों की तुलना में अपने को अधिक मनस्वी और सामर्थ्यवान सिद्ध करने के लिए। पर इतने भर से क्या बना? मनुष्य जैसे दुर्बल प्राणी से प्रतिस्पर्धा में आगे निकल जाना साधारण बात है। अभी शेर, चीते, हिरन, जिराफ, घोड़े जैसे कितने की प्राणी पड़े हैं जो मनुष्यों में से किसी भी धावक को, एथलीट को पीछे छोड़ने की क्षमता रखते हैं।

ओहियो निवासी डोन कुक ने लगभग 17500 इटली नस्ल वाली मधुमक्खी की दाढ़ी उगाई है। इस दाढ़ी की लम्बाई गलमुच्छा से कमर तक 17 इंच है। रानी मधुमक्खी को ठोड़ी से चिपकाये रखने के फलस्वरूप अन्य मधुमक्खियां रानी मधुमक्खी तक पहुँचने के प्रयास में एक दूसरे से चिपक कर इस अद्वितीय दाढ़ी का निर्माण करती हैं। इस व्यक्ति का जिक्र गिनीज बुक में विस्तार से हुआ है। यह अच्छा खासा कौतुक है। उस मनुष्य को सोते जागते हर समय ध्यान रखना होता होगा कि कहीं कोई मक्खी करवट बदलते, नहाते, कपड़ा बदलते कष्ट न पाये और उड़ न जाये। इस सतर्कता को सराहा जा सकता है किन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि उसने अपने में मानवोचित सद्गुण बढ़ाये और किसी की कोल भावनाओं को आघात नहीं लगने दिया।

प्रदर्शन को लोग महत्व देते हैं। अपनी सतर्कता का प्रमाण भी प्रस्तुत करते हैं। पर ध्यान इस ओर नहीं देते कि व्यक्तित्व को जिन सत्प्रवृत्तियों के आधार पर महान बताया जा सकता है, उनका अभिवर्धन और पोषण करें।

मनुष्यों में से कई लम्बे भी होते हैं और भारी भी। उनकी अपने साथ तुलना करके कोई साधारण व्यक्ति हँसते मुस्कराते इतना भर कह सकता है कि वे स्वर्ग तक पहुँचने के लिए प्रयत्न कर रहे हैं या पर्वत के छोटे भाई बनने का सुयोग प्राप्त कर रहे हैं। संसार में इस बढ़े हुए स्तर के कितने ही मनुष्य हैं।

22 फरवरी 1918 को इलीनोइस क्षेत्र के एलटोन में जन्मा रोबर्ट परसींग वेडलो विश्व का आज तक का सबसे लम्बा मनुष्य माना जाता है। 22.4 साल में उसने 8 फीट 11.1 इंच की लम्बाई प्राप्त कर ली थी।

इतनी लम्बाई हस्तगत करने के बारे में बताया जाता है कि 2 साल की उम्र में दूसरी बार के हर्निया की सर्जरी के बाद उसकी लम्बाई असाधारण रूप से बढ़ने लगी थी। संभवतः उसके पीटुचरी हारमोन्स में कहीं न्यूनाधिकता आ गई होगी। मात्र मर्द ही नहीं, महिलाओं ने भी इस क्षेत्र में प्रतिद्वन्द्विता की है।

18 जून 1955 को शिकागो में जन्मी और इन्डियाना के शेल्बोविले में स्थित सेण्डी एलन ने अपनी 22 वर्ष की उम्र में 7 फीट 71/4 इंच लम्बाई प्राप्त करके विश्व का एक नया कीर्तिमान स्थापित किया।

लम्बाई के बाद वजन का सुयोग आता है। कई व्यक्ति असाधारण रूप से भारी होते हैं और कई मनुष्यों के बराबर मांस का बोझ अपने ऊपर लादे फिरते हैं।

चिकित्सकों द्वारा तौल किया गया वजनी सम्राट का श्रेय सन् 1926 मोन्टीसेलो, मिस्सोरी में जन्मे रोबर्ट अर्ल ह्ययुजेस को मिला है। फरवरी 1958 में 1,069 पौण्ड के अपने वजन से उसने विश्व को चकाचौंध कर दिया था। इतना वजन लादकर भी वह वर्षों जिया। महज एक अजूबाभर बना रहा, वह किसी के काम क्या आता, उसे करवट दिलाने के लिए आठ व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ती थी।

सर्वाधिक वजनदार जुड़वें बच्चों का श्रेय 7 दिसम्बर 1946 में जन्मे नोर्थ केरोलीना के हेण्डरसनविले में स्थित बिली और बेनी मेक्गुयीर को मिला है। नवम्बर 1978 में दोनों का वजन क्रमशः 743 पौण्ड और 723 पौण्ड के साथ कमर का घेरा 84 इंच था।

यह उपलब्धियाँ आश्चर्यजनक हो सकती हैं पर अभिनंदनीय नहीं। गौरवशाली भी नहीं।

कई व्यक्ति धनवान होते हैं। सामान्य लोगों की तुलना में उनका वैभव अनेक गुना अधिक होता है। पर इससे किसी की गरिमा कहाँ बढ़ती है? बहुत संग्रह होना या बलिष्ठता, लम्बाई, ऊंचाई की दृष्टि से बड़ा होना मनुष्य का गौरव नहीं है। विशिष्टता इसमें है कि जो कुछ भी न्यूनाधिक मात्रा में मिला है उसका श्रेष्ठतम उपयोग किया जाय। उसे पुण्य परमार्थ स्तर के ऐसे कामों में लगाया जाय, जिससे पिछड़े लोग सहारा प्राप्त कर सकें और उठते लोग अपने लिए प्रेरणाप्रद मार्गदर्शन प्राप्त कर सकें। बड़प्पन का वैभव नहीं, महानता का अवलम्बन ही ऐसा मार्ग है जिसके सहारे व्यक्ति ऊँचा, अग्रणी और महान कहला सकता है।


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