ध्वनियाँ हमें असाधारण रूप से प्रभावित करती हैं।

August 1986

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ध्वनि में स्वस्थ करने की शक्ति विद्यमान है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है। वह चैतन्यता की अवस्थाओं को बदल सकती है। क्षति पहुँचाने, मन को मोड़ने, मनोभावों को उत्तेजित करने तथा मन को विह्वलता की पराकाष्ठा तक पहुँचा देने का कार्य ध्वनियाँ कर दिखाती हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि ध्वनियों का प्रभाव बुरी तरह से कभी-कभी अहितकर रूप में भी दिखाई पड़ता है। जहाँ कहीं ध्वनि उच्च-स्तर की होती है, वहाँ उच्च-स्तर की मानसिक अस्वस्थतायें होती हैं। उच्च-शोर वाले उद्योग हृदय-रोग, सिरदर्द एवं श्वसन-शिकायतों के लिए उत्तरदायी माने गए हैं।

“मेसाचुसेट्स इन्स्टीट्यूट ऑफ-टेक्नोलॉजी” के डॉ. डेलहटीस के अनुसार तेज आवाज रक्त के कणों को कोएगुलेशन (सघनता) में वृद्धि करती है, जो बाद में धमनियों के कठोरीकरण एवं सकरे होने में सहायता दे सकती है। तीखी आवाज स्नायुविक विकारों में वृद्धि करती है। वायुयान, जेट और सुपर सोनिक की आवाजें खतरनाक स्तर की होती हैं। हीथ्रो एअरपोर्ट के समीप इस संबंध में अध्ययन किया गया। इस रिपोर्ट में यह प्रदर्शित किया गया है कि 31 प्रतिशत उच्चतर स्नायविक विकारग्रस्त लोग शोर वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं।

“यू. सी. एल. ए. स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एण्ड एप्लाइड साइंस” के एक वायु ध्वनिक अध्ययन में बताया गया कि लॉसएंजिल्स के 3 मील के विस्तृत लक्ष्य क्षेत्र के 80 हजार निवासियों में 29 प्रतिशत से अधिक मृत्यु दर थी। 40 प्रतिशत लोग उच्चतर विनाशक आघात से ग्रसित थे एवं 6 मील के घेरे में निवास करने वाले लोगों में अधिकाँश व्यक्ति यकृत की विकृति के शिकार बने। इस क्षेत्र में जन्म लेने वाले बच्चे जन्मजात शरीरगत असामान्यता लिए पैदा हुए। तरुण लोग जो बहुधा डिस्को तथा पॉप संगीत गोष्ठियों में जाते हैं, वे क्रमशः एवं उत्तरोत्तर अपनी श्रवण शक्ति को खोते जाते हैं। एक ध्वनि विज्ञानी डॉ. जॉन डायमण्ड तो कहते हैं कि “पॉप संगीत की एक विशिष्ट प्रतीकात्मक ताल डा, डा. डा दो तिहाई पेशियों की शक्ति को नष्ट करती है। यह “इलेक्ट्रानिक स्ट्रेन-गेज” के परीक्षण के बाद बताया गया।

ध्वनि प्रदूषण उस समय पर्यावरण, विशेषज्ञों के लिए चिन्ता का विषय है, जब यह रोग से संबंधित विपत्ति को फैलाती है। ताल और सुर की गति क्रमबद्ध हो तो अन्तरात्मा को स्वस्थ तथा बलवान् बनाती है, न होने पर तन्त्रिका तन्त्र को अपंग, शरीर को विकृत कर देती है। मानवीय मस्तिष्क और शरीर उत्तमता से समस्वरित हैं, और उन्हें सरलतापूर्वक तीव्र और कर्कश लय से अनुकूलता उत्पन्न कर बाहर किया जा सकता है।

ध्वनि कंपन है। तब संगीतज्ञ वाद्य-यंत्र को झंकृत करता है, तब हवा के चारों ओर यह झंकार सिकुड़कर फिर फैल जाती है। हमारा सम्पूर्ण शरीर ध्वनि की प्रतिक्रिया है। मनुष्य एक जैव-दोलक है। ठीक वैसे ही जैसे कि “एक रेडियो”। वैज्ञानिकों के जब हम सुरबद्ध स्थिति में होते हैं, तब आदर्श कार्य करते हैं। ध्वनि को मापने की इकाई को डेसीबल कहते हैं। 180 डेसीबल ध्वनि प्राणघातक होती है। 140 से 150 डेसीबल जेट-प्रस्थान के समय की ध्वनि शारीरिक और मानसिक क्षति पहुँचने में समर्थ है। 130 डेसीबल ध्वनि तन्त्रिकाओं के लिए कष्टदायक है। 110 से 120 डेसीबल की विस्तृत ध्वनि चरम स्थिति की है। इतनी ध्वनि नुकसान करने के लिए पर्याप्त है। इसके नीचे के स्तरों की ध्वनियाँ मध्यम किन्तु परेशान करने वाली मानी गई हैं। 10 डेसीबल की मन्द हल्की ध्वनि मानवी श्वासोच्छवास की तरह मन्द मानी गई है। नादयोग इसी श्रेणी में आता है।

ध्वनि और संगीत में व्यक्ति को स्वस्थ करने की क्षमता है। तनावों को शान्त करने, तन्त्रिकाओं को शिथिल करने और शरीर को निरापद एवं यथावत करने में ध्वनि और संगीत उपयोगी है। अधिकाँश शास्त्रीय संगीत और प्राकृतिक ध्वनियाँ शक्तिशाली और समर्थ बनाती हैं एवं लाभकारी होती हैं।

“डायरेक्टर ऑफ स्पैक्ट्रम रिसर्च इन्स्टीट्यूट कैलीफोर्निया” के मि. स्टेवेन हैपर्न के अनुसार हम सभी ध्वनि के महासागर के मध्य निवास करते हैं। कुछ निश्चित ध्वनियों के कंपन भी अत्यधिक लाभदायी हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में बल्गेरिया के डॉ. गार्गी खोजानोव ने पाया कि “जब विशेष ताल का उपयोग किया गया, तब सामान्य अवस्था गहरी शिथिलीकरण याने समाधि अवस्था जैसी स्थिति में बदल गई। “जुरिच के डॉ. हैन्स जैनी ने अपने ग्रंथ “सिमेटिक्स” में कहा है कि “तरंगें पदार्थों के निर्माण का कार्य तथा रूपांतरण भी करती हैं। उसने अपने एक प्रयोग में स्टील की चकतियों को द्रव पदार्थ में बिखेरा। प्लास्टिक, धातुओं के चूर्ण तथा पाउडर को भी उसी में मिला दिया। फिर उसने उस मिले हुए मिश्रण को एक नियंत्रित साधन से ध्वनि-कम्पन प्रदान किया। उसने देखा कि, लोहे के चकतियों के ऊपर के प्रतिरूप बदल जाते हैं। यह संवादी पैमाने के अनुसार होता है। उन्होंने एक “टेनोस्कोप” बनाया है। इस माइक्रोफोन में जब मुँह से ध्वनियाँ छोड़ी जाती हैं। वे ध्वनियाँ दृश्य प्रतीक के रूप में पर्दे पर निर्मित हो जाती हैं।

उन्होंने यह खोज की है कि ॐ एक मन्त्र है जो रेखा गणितीय रूप प्रस्तुत करता है। साधारणतया प्रतिदिन के बोल चाल के शब्द अव्यवस्थित होने के कारण कुछ भी प्रभाव नहीं डाल पाते। वे कहते हैं कि वह बहुत आश्चर्य चकित हुए कि “पूर्वार्त्त धर्मों के लोगों ने बहुत अधिक महत्वपूर्ण खोज संगीत के रूप में की है। अधिक महत्वपूर्ण मन्त्रों को अलाप सहित गाकर सुनाना अपने आप में एक चिकित्सा है।

अर्वाचीन पश्चिमी शरीर वैज्ञानिकों के कार्य यह विश्वास दिलाते हैं कि कम्पन एण्डोक्राइन, ग्लैण्ड पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। वियना के डॉ. लेसर लेसारियो के साऊण्ड थैरेपी के प्रयोग से उसके सेनीटोरियम के बहुत से रोगी अपने स्वास्थ्य को पुनः प्राप्त करके अपने घरों को लौट गये। यौगिक प्राणायाम में श्वासोच्छवास के समय ॐ का प्रयोग, निस्तब्धता और मन को शान्ति प्रदान करता है, यही मानकर उन्होंने ॐकार का जप कराया।

ध्वनि कंपनों से दीवारें तक टूट सकती हैं। बाइबिल बतलाती है कि जेरिको की तुरहियों की ध्वनि से एवं समूचा नगर नष्ट हो गया था। केरुसो लगातार स्वर प्रयोग करके शराब की बोतलें फोड़ा करता था। उसने अपने एवं स्वर-प्रयोग में कोलगन नामक एक बड़े चर्च के एक हिस्से को ढहा दिया था। ध्वनि अत्यधिक शक्तिशाली होती है। स्वस्थ बनाने या विनाश हेतु किसी भी रूप में इसका प्रयोग किया जा सकता है। रविशंकर के शास्त्रीय सितार वादन का लता गुल्मों पर प्रभाव ध्वनि की समर्थता व्यक्त करती है, जिसमें पौधे संगीत के प्रभाव से वाद्य-यन्त्र की ओर उन्मुख होते तथा पुष्पित होते देखे गये।

अधिकांश ध्वनियाँ हमारे नियन्त्रण के बाहर हैं। उस ध्वनियों पर नियंत्रण करने की आवश्यकता है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए विपत्ति स्वरूप हैं। हमें लाभदायक ध्वनियों के बारे में भी ध्यान देना चाहिए जो मानव जीव को समृद्ध बनाती हैं। पूर्वार्त्त और पाश्चात्य शास्त्रीय संगीत तथा प्राकृतिक ध्वनि जैसे पक्षियों का गीत, समुद्री तरंगें, वायु तरंगें एवं पेड़ों की सरसराहट आदि की ध्वनियाँ लाभदायी हैं। प्राचीन काल के पूर्वज यह विश्वास करते थे कि “संगीत एक सेतु है, जिसका संबंध सभी वस्तुओं से है।” आज का विज्ञान भी अब यह कहता है कि “प्रत्येक वस्तु जो प्रकृति के अंतर्गत है वे सभी एक कम्पन में स्पन्दित होने वाली तरंगें हैं।”


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