सूर्य किरणों ने सात रंगों का सम्मिश्रण है। जो पदार्थ उनमें से जिस रंग का अवशोषण कर लेता है वह उसी रंग का हो जाता है। पदार्थों में रंग शोषण की क्षमता पृथक-पृथक है। इसी के आधार पर वे विभिन्न रंगों के दिखाई पड़ते हैं। प्रमुख रंगों की संख्या तो सात ही हैं पर उनके सम्मिश्रणों से उनकी संख्या कई हजार हो जाती है न्यूनाधिकता के कारण- मिश्रणों के कारण यह वर्ण परिवर्तन होते रहते हैं।
रंगों का साधारण उपयोग दृश्य विचित्रता के आधार पर सौंदर्य बोध करता है। हर रंग की अपनी-अपनी शोभा और सुन्दरता है। लोग अपनी पसंदगी के अनुरूप कपड़े रंगवाते, मकान पुतवाते, आभूषण पहनते और प्रिय पदार्थों की कलात्मक रंगाई पुताई करते हैं।
यह प्रिय परिचय का आभास हुआ। रंगों की अपनी-अपनी उपयोगिता भी है और गुणवत्ता भी। कड़ी चमकदार तेज धूप में यदि हरे नीले कांच के चश्मे पहन लिये जायं तो लगता है मानो धूप हलकी हो गई हो। पेड़ पौधों की घास पात की हरीतिमा सहज ही आँखों को प्रिय लगती है और शीतलता प्रदान करती है। नदी और झरने का, समुद्र का पानी नीला या हरा होता है। यह आभास मात्र है। वस्तुतः पानी बिना रंग का होता है पर प्रकाश की किरणें उस पर उसी रूप में परिलक्षित होती हैं जो मनुष्य को शक्ति और शीतलता प्रदान करे। ऐसे रंग हरे और नीले ही हैं आसमान में मात्र पोल भरी है। जहां तहां सितारे लटकते हैं। पर यह पोल भी नीलिमा बनकर प्रतिभासित होती है और मस्तिष्क को सान्त्वना प्रदान करती है।
सूर्य किरण चिकित्सा में रंगीन काँच के माध्यम से विभिन्न पदार्थों को अभीष्ट रंग के साथ सुनियोजित किया जाता है। इस विशेषता के आधार पर पानी, चीनी या दूसरा कोई पदार्थ रंग के अनुसार गुण दिखाता और रोग भगाता है। रंग चिकित्सा में लाल, नीला और पीला तीन रंग प्रधान माने गये हैं। लाल गरम, नीला ठंडा और पीला पाचक हैं। इन्हीं रंगों के सम्मिश्रण को रोग विशेष के लिए उपचार रूप में प्रयुक्त किया जाता है।
रंगों का मनोवैज्ञानिक प्रयोग भी है। लाल रंग उत्तेजना, नीला शान्ति और पीला संतुलन बनाता है। नीले का स्थानापन्न हरा, लाल का नारंगी और पीले का बसन्ती या भगवा काम चला देता है। शुद्ध रंगों का मिलना कठिन है। उनमें प्रायः अन्यों का सम्मिश्रण रहता है। इसी आधार पर उनका प्रभाव भी बदलता रहता है।
लोक प्रचलन में रंगों के संबंध में अनेक प्रकार की मान्यताएँ भी हैं। पर उनका कोई तथ्य पूर्ण वैज्ञानिक कारण नहीं है। जादू टोने में काला कपड़ा और मरण के लिए लाल कपड़ा विग्रह खून खराबा उत्पन्न करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
ईसा से 1500 वर्ष पूर्व लिखे हुए “इवर्स पेपीरस” नामक ग्रन्थ में लाल रंग को युद्ध का, विद्रोह का, दुर्घटना का प्रतीक माना गया है। ज्वर से लड़ने के लिए चिकित्सक तथा परिचारक लाल रंग का कपड़ा पहनकर जाते थे और सोचते थे कि इससे ज्वर का भूत डरकर भाग जायेगा।
रूस ने क्रान्ति को लाल रंग दिया है और अपना झण्डा उसी रंग का बनाया है। उसे खतरे का निशान भी माना जाता है। निर्माणों और वाहनों में जहाँ रोकथाम की जरूरत होती है वहाँ लाल कपड़ा लटका देते हैं। गार्ड लाल झण्डी दिखाकर गाड़ी रोकते हैं। सधवाएँ अपने विवाहिता होने का चिन्ह माथे पर लाल सिंदूर लगाकर प्रकट करती हैं।
नारंगी रंग मनीषा का चिन्ह है। साधु, सन्त, त्यागी, बैरागी, लोकसेवी इसे सम्मानपूर्वक धारण करते हैं। शिक्षा की देवी सरस्वती को पीत वर्ण से सज्जित करते हैं। खाद्य पदार्थों में आम, नीबू, पपीता जैसे पीले फलों में जीवन तत्व अधिक माने जाते हैं। पका केला भी इसी श्रेणी में आता है। रंगों की शोभा ही नहीं है उनके अपने-अपने गुण भी हैं।
पीला रंग उत्साहवर्धक भी है और कृमि नाशक भी। विवाह में हल्दी का उपयोग वर वधू विभिन्न प्रयोजनों में करते हैं। प्रातःकाल अरुणोदय का समय पूर्व दिशा में स्वर्ण-सा दीख पड़ता है। यह जागृति और कर्मठता का प्रतीक है। अग्नि भी पीत वर्णा होती है वह कच्चे को पकाती है कलह के घरों में यदि पीला रंग पोत दिया जाय तो आशा की जाती है कि उपद्रव या मनोमालिन्य शान्त हो जायेंगे।
हरा रंग यों उर्वता का चिन्ह है, पर उसे मुसलमान-धर्म में पवित्रता और अपने दीन का प्रतीक भी माना गया है। हज जाने वाले प्रायः हरे कपड़े पहनते हैं। आयरलैण्ड स्काटलैण्ड, ग्रीस आदि में भी इसे विशेष गौरव प्रदान किया गया है और मूर लोग इसे विजय का चिन्ह मानते हैं यातायात में हरा रंग गति का चिन्ह भर है। रास्ता साफ है बढ़ चलो। इतना संकेत हरा रंग दीखने से मिल जाता है।
नीला रंग ईसाई धर्म में स्वर्ग का सोपान है। मृतकों को नीले कपड़े पहनाये जाते हैं। नीला पौरुष का भी चिन्ह है मर्दाने कपड़े अधिकतर नीले रंग के और जनाने गुलाबी रंग के देखे जाते हैं। गुलाब में कोमलता, सुन्दरता, सुगन्ध और कला का सम्मिश्रण है। इसलिए स्वागत समारोहों में गुलाब पुष्पों को वरीयता दी जाती है। चेहरे को अधिक सुन्दर दिखाने के लिए लालिमा की झलक दिखाने वाले प्रसाधनों का उपयोग होता है।
बैगनी रंग लेखन कार्य में तो प्रयोग होता ही है, एकाग्रता की साधना में नीले प्रकाश का महत्व दिया गया है उन्हें प्रकाश के ऊपर नीला आवरण चढ़ाकर कृत्रिम रूप से पैदा किया जाता है। नेपोलियन अपनी पोशाक तथा अपने सैनिकों की वर्दी बैगनी रंग की बनवाता था। उसका विश्वास था कि दूसरों पर हावी होने की इस रंग में विशेषता है।
सफेद रंग सब रंगों का मिश्रण है तो भी वह शुद्धता, पवित्रता, प्रफुल्लता, उल्लास और स्वच्छता का रंग है। स्वर्ग से धरती पर आने वाले देवता एवं उनके सहयोगी देवदूत भी उसी रंग से अपने को आच्छादित करते हैं। स्वप्न में श्वेत वर्ण का दर्शन माँगलिक माना जाता है। श्वेत हाथी, श्वेत घोड़े, श्वेत कौए, श्वेत सिंह दर्शनीय शुभ माने जाते हैं श्वेत रंग मित्रता और संधि का परिचायक है। गर्म जलवायु वाले क्षेत्र में श्वेत वस्त्रों का धारण स्वास्थ्यकर एवं उपयोगी माना जाता है। श्वेत रंग अलग से चमकता है इसलिए इस रंग से पुते वाहनों और पहने कपड़ों से दुर्घटनाओं की संभावना कम होती है।
काला रंग शोक का चिन्ह है। दुःख का प्रतीक है। उसके साथ शैतानी का तारतम्य बिठाया गया है। चित्रकार इसी रंग के आधार पर रेखाएं उभारते तथा अन्य रंगों की गहराई का बोध कराते हैं। काला रंग, काल का, महाकाल का प्रलय का भी प्रतीक है। फिर भी उसमें दृढ़ता का सामंजस्य है दैत्य परिवार इसी रंग से अपने को सुसज्जित करते थे।
विभिन्न रंगों की अपनी-अपनी प्रवृत्ति-प्रकृति है। उन्हें केवल नयनाभिरंजन ही न माना जाय वरन् यह भी समझा जाय कि प्रकृति ने अनेक रंगों का सृजन मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये किया है।