विज्ञान बनाम तत्वज्ञान (kahani)

August 1986

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विज्ञान बनाम तत्वज्ञान

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ब्रिटिश भौतिकी विशेषज्ञ एडमन्ड ह्विटैकर ने लिखा है कि “यह कहना गलत है कि प्रकाश और शक्ति के अचानक संयोग से ही ब्रह्माण्ड की रचना हुई है। वास्तविक बात यह है कि परब्रह्म शून्य से इस ब्रह्माण्ड की रचना करता है दूसरे विशेषज्ञ एडवर्ड मिल्ने का भी कथन है कि ईश्वर के, किसी सृजेता के बिना ब्रह्माण्ड की कल्पना हो ही नहीं सकती।

अधिकाँश भौतिकी विशेषज्ञों और खगोलज्ञों का अनुमान है कि सृष्टि के प्रारम्भ में कोई महान शक्ति अवश्य थी जिसने इस ब्रह्माण्ड की रचना की। अपने आप यह ब्रह्माण्ड कदापि नहीं बन सकता। सिर्फ प्रकाश और शक्ति के संयोग के बिना सिरजनहार का यह सुव्यवस्थित ब्रह्माण्ड अरबों वर्षों तक कैसे कायम रहेगा? सन्त आगस्तिन, आइन्स्टीन, वाल्टर नर्सट्, फिलिप्स मॉरसन और एलन सैन्डोज आदि विशेषज्ञ इन्हीं बातों को स्वीकारते हैं। एलन सैन्डोज ने ब्रह्माण्ड का जन्म दस अरब वर्ष पूर्व होने की सम्भावना व्यक्त की है।

आइन्स्टीन का कथन है कि विज्ञान का एक धर्म है। वह निश्चित नियमों पर चलता है। सृष्टि की रचना अपने आप हुई- यह कहना विज्ञान के विपरीत है। यह सारा सुव्यवस्थित विश्व कैसे अपने आप बन सकता है। अतः हमें मानना ही पड़ेगा कि विश्व का निर्माता एवं संचालक कोई सुपर पावर अवश्य है।

भूगोलज्ञों के अनुसार प्रारम्भ में सृष्टि के पूर्व ब्रह्माण्ड में तीव्र दबाव पड़ा और अग्नि गोलों की उत्पत्ति हुई। कालान्तर में ये ही गोले ग्रह, नक्षत्र सूर्य, तार आदि बने। इस अग्निकाण्ड से विश्व के (पूर्व के) प्रमाण सब नष्ट हो गए। सम्भव है कि उस समय एक सभ्य और बुद्धिमान दुनिया रही हो जो कि इस विस्फोट से नष्ट हो गई। इसके बाद ही हमारे विश्व की रचना हुई हो। किन्तु दुर्भाग्यवश विज्ञान इन सबका प्रमाण नहीं दे सकता।

सभी खगोलज्ञों में प्रायः यह सहमति है कि ब्रह्मांड का विस्तार प्रारम्भ में कैसे हुआ। पहले यह पाया गया कि विश्व ब्रह्मांड हमेशा निरन्तर फैलता ही रहेगा। मंदाकिनियाँ निरन्तर एक दूसरे से दूर हटती रहती हैं और उनके बीच अन्तर बढ़ता ही जाता है। अतः अन्तरिक्ष सूना पड़ता जा रहा है। प्रत्यक्षतः प्रत्येक मन्दाकिनी अकेली है, उसका कोई पड़ौसी नहीं है।

इन दूरवर्ती मंदाकिनियों में पुराने तारे एक-एक करके जलते रहते हैं और नए-नए तारे इनके बदले उत्पन्न होते हैं। इन मंदाकिनियों में विशाल शक्ति होती है जिससे सभी जीव जीते हैं। समाप्त होते हुए अन्तिम तारे का प्रकाश बन्द होने पर ब्रह्मांड में अन्धेरा छा जाएगा और सब प्राणी मर जाएँगे।

ब्रह्म विज्ञानियों (तत्वज्ञानियों) का कहना है कि आर्ष ग्रन्थों में दिये गये उद्धरण सत्य हैं। प्रारम्भ में ईश्वर ने पृथ्वी व जीवधारियों की रचना की। सन्त आगस्तिन कहते हैं कि इस बात को कोई सिद्ध नहीं कर सकता कि पृथ्वी पर ही जीवन जैसी परिस्थितियां क्यों विनिर्मित की गयीं और ग्रहों पर क्यों नहीं। विज्ञान ने इतना ही प्रामाणित किया है कि ब्रह्मांड में गैस पिण्ड बना, उसमें विस्फोट से अग्नि पिण्ड बना जो बाद में तारे का रूप लेता है। पृथ्वी, सूर्य और समस्त ग्रह-तारों की रचना इसी तरह होती है।

वस्तुतः विज्ञान विश्वास पर नहीं चलता वरन् वह प्रमाणों पर चलता है। यह वास्तव में प्रामाणित नहीं हो सकता कि ब्रह्मांड की रचना प्रारम्भ में कैसे हुई? यह कोरी कल्पना जल्पना का विषय है। विज्ञान तो सिर्फ इतना बता सकता है कि वर्तमान में सृष्टि क्रम क्या है? वह कैसे हुआ? भविष्य में क्या होगा? इस सबका पीछे नियामक शक्ति कौन सी है? इस प्रश्न का उत्तर ईश्वर की सत्ता को केन्द्र बिन्दु मानने वाले तत्वज्ञानी ही दे सकते हैं।


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