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August 1986

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फूल बैठा, सिर धुन रहा था। फल पाने की मेरी कामना न जाने कब पूर्ण होगी। न जाने कामना पूर्ति का वरदान कब उतरेगा?

चाँदनी हँस पड़ी। उसने कहा- देखते नहीं! फल का अस्तित्व तुम्हारे भीतर ही पल रहा है। तनिक प्रौढ़ तो बनो। तुम स्वयं फल में परिणत होगे।


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