शरीर में विद्यमान अरबों जीव कोशों के मध्य मस्तिष्क एक चमत्कारी क्षेत्र है। मस्तिष्क के सभी घटक असाधारण क्षमता सम्पन्न हैं। अन्य कोश तो शरीरचर्या का जीवनचर्या से सम्बन्धित क्रियाकलाप भर पूरा करने में लगे रहते हैं पर मस्तिष्कीय कोश विचार प्रक्रिया सम्पन्न करने के अतिरिक्त निखिल ब्रह्माण्डीय चेतना के साथ भी अपना संबन्ध जोड़ते हैं।
शरीरों के साथ-साथ रहने पर उनके बीच मैत्री उत्पन्न हो जाती है, पारस्परिक आदान-प्रदान भी चल पड़ते हैं। प्रतिभा वालों की गतिविधियों का अनुकरण, अनुसरण सामान्य स्तर के लोग करते देखे जाते हैं। प्रचलन प्रवाह इसी आधार पर बन पड़ते हैं। प्रथाएँ इसी प्रकार चलती हैं। मित्रता और सहकारिता के पीछे भी यही तत्व काम करते हैं कि किन के बीच कितनी घनिष्ठता बनी।
शरीरगत विशेषताओं की तुलना में मनोगत वर्चस्व अधिक प्रभावशाली है। सामान्य रूप से भी वह अपना प्रयोजन पूरा करता है पर यदि उपायों से मनोबल बढ़ाया जाय और किन्हीं के साथ स्नेह पूर्वक जोड़ा जाय तो उसका विशेष प्रभाव देखने में आता है। अभिभावकों की भाषा बच्चे शीघ्र ही ग्रहण कर लेते हैं। अध्यापक मनोयोगपूर्वक पढ़ाते हैं तो वह दिया हुआ ज्ञान छात्रों के गले शीघ्र उतर जाता है। समवय बालक आपस में अधिक उल्लासपूर्वक हँसते खेलते हैं। समान प्रकृति के मनुष्य आपस में न केवल घनिष्ठतापूर्वक मिलते हैं, वरन् एक दूसरे के गुण दोष भी सहज अपनाते देखे गये हैं। यह मानसिक तारतम्य है जो सहज स्वाभाविक है। लोक व्यवहार में यह सर्वत्र देखने को मिलता है।
किन्तु विशेष प्रयत्नपूर्वक इस प्रक्रिया को बढ़ाया भी जा सकती है। वरिष्ठ विचार कनिष्ठों पर हावी होते हैं और उन्हें अपने साथ या पीछे चलने के लिए बाधित करते हैं। पालतू हाथी जंगली हाथियों को रस्से में पकड़ लाते हैं। पालतू कबूतर भी दूसरे झुण्ड के कबूतरों को अपने समूह में घसीट लाते हैं। इसी प्रकार प्रबल विचार सामान्य विचार वालों को अपने समान बना लेने में प्रायः सफल होते हैं।
बुरे विचारों की पतनोन्मुख क्षमता सर्वविदित है। दुष्प्रवृत्तियों से भरे हुए व्यक्ति जहाँ रहते और संपर्क साधते हैं वहाँ अपना प्रभाव ही नहीं छोड़ते, उन्हें सहमत भी करते हैं। शुद्ध विचारों की सामर्थ्य भी कम नहीं। यदि कोई मनस्वी और दृढ़ चरित्र व्यक्ति अपने विचारों में आस्था और दृढ़ता उत्पन्न कर ले तो उसका प्रभाव भी अन्यान्यों पर पड़े बिना नहीं रहता। समीपवर्ती क्षेत्र में तो विचार अपना काम करते ही हैं। ऐसा भी होता है कि विचारों की परिपक्वता दूरवर्ती क्षेत्र को प्रभावित करे और जिन लोगों के साथ सीधा सम्बन्ध नहीं है उनके साथ भी संबन्ध स्थापित करें और ढांचे में ढालें।
विचारों के इस महाभारत में हर किसी को शारीरिक बलिष्ठता की तरह मानसिक बलिष्ठता भी सम्पादित करनी चाहिए। यह सोचना ठीक नहीं कि बुरे लोग अधिक हैं सो उनकी मिली जुली शक्ति ही अधिक काम करेगी। यह मान्यता तभी सही मानी जा सकती है जब रोकथाम करने वाली उत्कृष्टता का अपना कोई प्रभाव या स्थान न हो। यदि संकल्पवान व्यक्ति अपने विचारों में- आदर्शवादिता और दृढ़ता भर सके तो संख्या में स्वल्प होते हुए भी वे अपने प्रभाव की गरिमा सिद्ध कर सकेंगे। जिस प्रकार यह संभव है कि बुरे लोग दूसरों को बुराई के कीचड़ में लपेट लेते हैं, उसी प्रकार यह भी संभव है कि श्रेष्ठता घटाटोप बरसने लगे तो शीतलता और हरीतिमा का वातावरण विनिर्मित कर दे। विचारों की शक्ति विशिष्ट है। उसमें भी उत्कृष्ट चिन्तन और चरित्र असाधारण प्रभाव छोड़ते हैं।