खोपड़ी की पेटी में विचार गूलर के फल की तरह जन्मते या मर जाते हैं, अथवा वे मानसरोवर में हंसों की तरह मोती बीनते और संसार की शोभा बढ़ाने के लिए उड़ने फिरने लगते हैं, इन दोनों बातों में दूसरी बात ही सही है। विचार मस्तिष्क की उत्पत्ति भले ही हों, पर वे उस अण्डे में सदा कैद नहीं रहते। पकने पर पक्षी बनते और उन्मुक्त आकाश की सैर करते हैं।
विचारों में समस्याओं के समाधान की योग्यता ही नहीं संचरण की क्षमता भी है। उनके साथ विद्युत क्षमता जुड़ी होती है जो रेडियो तरंगों की तरह भ्रमण करती है। विचारणीय यह है कि चिन्तन की परिधि तक ही उन्हें सीमित न रहने देकर संचार सम्प्रेषण प्रयोजन में भी उन्हें काम ला सकते हैं या नहीं? मस्तिष्क हमारा टेलीफोन है उसका निचला हिस्सा वाणी के रूप में बोलता है और कान सुनने का। ये ग्रहण करके मस्तिष्क तक विचारों को पहुँचाने का काम करते हैं। इस सर्वविदित प्रक्रिया के अतिरिक्त ऐसा भी होता है कि विचार स्वयं एक शक्ति के रूप में अभीष्ट स्थान तक पहुँचें और वाणी की तरह निर्धारित केन्द्र तक अपना कथन पहुँचायें। पहुँचाये ही नहीं, ग्रहण भी करें। रेडियो यंत्र से विचार तंत्र की तुलना की जा सकती है। यह हो सकता है कि बिना किसी माध्यम के विचारों को किसी या किन्हीं व्यक्तियों तक पहुँचायें अथवा अनेकों को अवगत कराने के लिए अनन्त आकाश में बिखेर दें। विश्व चिन्तन के बहते प्रवाह को हम अपने सशक्त विचारों से सुधार या परिवर्तन का सन्देश दें।
“साइकिक डिस्कवरी बिहाइण्ड द आयरन करटेन” की सम्पादकगण शीला ओस्ट्रेण्डर एवं लिन श्रोडर ने अपनी पुस्तक में ऐसे प्रमाणों के उदाहरण दिये हैं जिसमें सुदूरवर्ती जीवधारी के लौह आवरण में आबद्ध होने पर भी विचारों का आदान-प्रदान संभव हुआ। यहाँ लौह आवरण से तात्पर्य सोवियत रूस (यू.एस.एस. आर.) से है जहाँ प्रत्यक्ष रूप से ऐसे प्रयोगों पर प्रतिबन्ध है पर अब वहीं से परामनोविज्ञान की पुष्टि के ढेरों प्रमाण सामने आ रहे हैं।
लैनिनग्राड परामनोविज्ञान प्रयोगशाला के अध्यक्ष डॉ. वासिलएव ने विचारों के प्रेषण और ग्रहण के ऐसे प्रमाणों का एकीकरण किया है जो अनुमानित नहीं थे। अजीबोगरीब थे पर वे सभी कसौटी पर खरे उतरे।
सोवियत विज्ञानी कार्ल निकोलायेव ने मास्को से साइबेरिया के मध्य विचारों का आदान प्रदान बिना किसी माध्यम के सही तरह स्थापित कर दिखाया। उनका कहना था कि ऐसे प्रयोगों के लिए प्रेषक और ग्राहक मस्तिष्कों को पूर्व प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
यह और भी सरल है कि निकटवर्ती व्यक्ति के विचार, भाव, उद्देश्य और आचरण को पढ़ लिया जाय। दुराव करने वाले व्यक्ति इस प्रकार के प्रयोक्ताओं से अपने असली रूप को छिपा नहीं सकते। इस प्रयोग में वाशिंगटन विश्व विद्यालय एवं स्टेनफोर्ड रिसर्च सेण्टर की प्रयोगशालाओं ने उत्साह वर्धक सफलता पाई है।
“रिलीजन एण्ड साइंस इन लाइफ” पुस्तक के लेखक मैक डोगल का कहना है कि निकट भविष्य में विचार व्यक्तिगत सम्पदा की तरह सीमाबद्ध न रखे जा सकेंगे, वरन् उस पर विज्ञान द्वारा सशक्त धाराओं की छाप छोड़ी जा सकेगी। लोगों को मद्यपों की तरह युद्धोन्माद अपनाने अथवा शान्ति से रहने के लिए बाधित किया जा सकेगा।
“द अननोन” पुस्तक में विद्वान लेखक डॉ. फैमोरियन लिखते हैं कि विचार कल्पना की तरह नहीं है वरन् उनमें ऐसी क्षमता भी है कि वे दूसरों की मनःस्थिति और परिस्थितियों पर प्रहार कर सकें। शत्रु को मित्र और मित्र को शत्रु बना सकें। यह विचार बन्धनों और परिस्थितियों को तोड़कर विश्व के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुँच सकते हैं। “मेण्टल रेडियो” पुस्तक की भूमिका में प्रसिद्ध वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन ने उसी तथ्य का प्रतिपादन किया है।
फ्राँसीसी मानस शास्त्री रेनेवार कोलियर का कथन है कि विचारों का आदान-प्रदान ही नहीं, भावनाओं का संवेग भी पढ़ा और समझा जा सकता है। प्रयत्न करने पर मनुष्य का चिन्तन उसी प्रकार नंगा करके देखा जा सकता है जैसे कि कपड़ा उतार देने पर शरीर को।
वरसा (पोलैण्ड) की “इंटरनेशनल फिजीकल काँग्रेस” में ऐसे कई शोध पत्र पढ़े गये जिनमें सिद्ध किया गया कि विचारों को आमंत्रित और प्रेषित करना उसी प्रकार संभव है, जैसा कि धन का आदान-प्रदान।
ब्रिटेन की “साइको-फिजीकल सोसाइटी” के शोध अधिकारी एरिक एसीमोव, एवं पोलैण्ड के स्टीफन ओसोविक का मिला जुला प्रतिपादन है कि शरीर की स्वस्थता और रुग्णता बहुत करके मनुष्य के विचारों पर निर्भर है। अस्त व्यस्त और निषेधात्मक चिन्तन करने वाला व्यक्ति आहार-विहार सही रखने पर भी बीमारियों में फँसता चला जाता है। कनाडा के सर्जन डॉ. नॉरमन हॉपकिन्स ने अपने दीर्घकालीन अनुभवों को व्यक्त करते हुए कहा है कि औषधियों की अपेक्षा उत्साहवर्धक आशा जनक विचार देकर रोगी को अपेक्षाकृत जल्दी अच्छा किया जा सकता है।
विचार स्वच्छन्द प्रतीत होते हैं पर वे अपने द्वारा ही नहीं किसी के द्वारा भी प्रतिबन्धित किये जा सकते हैं और मनुष्य का चिन्तन एक दिशा से दूसरी दिशा में घुमाया जा सकता है।
अब तक संसार में बड़ी शक्तियाँ- धन, शस्त्र, विज्ञान को माना जाता रहा है और विचारों को व्यक्ति विशेष के काम आने वाली सामान्य चेतनात्मक क्षमता माना जाता रहा है। पर मनोविज्ञान के अभिनव निष्कर्षों ने यह प्रतिपादन किया है कि इन सबके ऊपर विचार शक्ति है। उसका स्वरूप एवं उपयोग अभी तक सही रूप में जाना नहीं गया। जितना भण्डार इसका मनुष्य के पास है, उसका अधिक से अधिक सात प्रतिशत उपयोग निर्वाह की समस्याओं को सुलझाने के लिए किया जा रहा है। ज्ञान और विज्ञान क्षेत्र में विचारों की जितनी महत्ता है उसे न तो समझा गया और न काम में लाया गया। अभी 93 प्रतिशत भाग अविज्ञात के गर्भ में है। अगले दिनों नये सिरे से इस सम्पदा की गवेषणा होने जा रही है ताकि व्यक्ति अधिक सशक्त और प्रबुद्ध बन सकें। विचारों का जीवन के हर पक्ष में जब उच्चस्तरीय उपयोग होगा तो निश्चित है कि उत्थान और समाधान के दानों ही पक्ष संतुलित होंगे। उन सभी समस्याओं का समाधान संभव होगा जो व्यक्ति और समाज को बुरी तरह हैरान किये हुए हैं।