लकड़हारे हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते (kahani)

August 1986

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पेड़ काटने की योजना बनाते हुए लकड़हारे उस जंगल में घूम रहे थे। हाथ में लोहे की कुल्हाड़ी भर थी।

साथियों को चिन्तित देखकर वट वृक्ष ने कहा- “लकड़हारे हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। कुल्हाड़ी की कोई विसात नहीं। हम लोग चिन्तित क्यों हों?”

“चिन्तित उस दिन होना पड़ेगा जिस दिन हममें से ही कोई फूटकर दुश्मन का साथ देगा और कुल्हाड़ी का बेंट बनेगा।”

बात सच निकली। जंगल कटना तब आरंभ हुआ जब लोहे की कुल्हाड़ी को लकड़ी का बेंट हाथ लग गया।


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