तप की सामर्थ्य (kavita)

December 1985

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सृष्टि सृजन का, व्यक्ति सृजन का, तप ही है आधार। तप−बल द्वारा ही ब्रह्माजी, रचते हैं संसार॥1॥

मनु−सतरूपा, कश्यप−अदिति, इनका तप विख्यात। तप−बल से राम, कृष्ण के बने पिता अरु मात॥ तप से गौतम, महावीर का हो जाता निर्माण। भागीरथ के तप को मिलता गंगा को अनुदान॥ ध्रुव, प्रह्लाद, दधीचि सभी तो हैं तप के उपहार। सृष्टि सृजन का, व्यक्ति सृजन का तप ही है आधार॥2॥

तप कर ही माटी की ईंटें छू लेतीं आकाश। तप कर ही सोना पाता है जन−जन का विश्वास॥ पानी तप कर शक्ति सँजोता, चलते जिससे यंत्र। तप-बल के द्वारा संचालित बड़े−बड़े संयंत्र॥ तप से भस्म, रसायन बनकर करते हैं उपचार। सृष्टि सृजन का, व्यक्ति सृजन का तप ही है आधार॥3॥

तप से शमित हुआ करते हैं कल्मष और कषाय। पाप, पतन के परिशोधन का तप ही एक उपाय॥ विकृति, संस्कृति बन जाती है, जब तपता है व्यक्ति। नर से नारायण बनने की तप में ही है शक्ति। तप से सहज परिष्कृत होते हैं आचार−विचार। सृष्टि सृजन का, व्यक्ति−सृजन का तप ही है आधार॥4॥

अत्याचारों से, अनीति से तप करता संग्राम। तब रावण पर विजय पताका फहराते श्रीराम॥ क्रूर काल को महाकाल का तप कर देता ध्वस्त। तप के सन्मुख स्वयं दुष्टता हो जाती है नष्ट॥ सत् की अंतिम विजय हुई है और असत् की हार। सृष्टि−सृजन का, व्यक्ति सृजन का तप ही है आधार॥5॥

युग का विश्वामित्र तप रहा, इसीलिए अविराम। नये सृजन के सृजन−साधको! फिर कैसा विश्राम॥ त्याग और तप की भट्टी में करें व्यक्ति निर्माण। तप−बल से ही पतन पराभव से होगा उत्थान॥ तप से ही संभव देवों की संस्कृति का उद्धार। सृष्टि−सृजन का, व्यक्ति−सृजन का तप ही है आधार॥6॥

-मंगल विजय

*समाप्त*


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