चेतना का रहस्यवाद

December 1985

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रहस्यवाद के परे अनेक दुनियाँ हैं, जिनके बारे में हम कुछ नहीं जानते। सौंदर्यपरक, नीति परक, सत्ता व अमरता के बारे में हमारी जानकारी नगण्य है। पदार्थ दुनिया में ही कुछ शताब्दियों में बहुत उन्नति हुई है, जिनका हम अनुमान भी नहीं लगा पाते। संचार और आवागमन, अणु और परमाणु, रेडियो और टेलीविजन, आधुनिक उद्योग और कारखाने आदि क्षेत्रों में आश्चर्यजनक प्रगति हुई है। भविष्य में एक ऐसा अवसर होगा, जब पदार्थ जगत में और कोई उन्नति करने की गुञ्जाइश नहीं रहेगी। तब हम मन और अन्तर्शक्ति (इनर सेल्फ) के रहस्यों का पता लगाने में लग सकेंगे।

इससे जीवन के उद्देश्य एवं सफलताएँ, अमरता, अन्तःविकास आदि रहस्यवादी घटनाओं को मनुष्य ठीक से समझ सकेगा और विश्व के सम्पूर्ण ज्ञान एवं सम्पूर्ण क्षमताओं का उपयोग अपने दैनिक क्रिया−कलापों में करेगा। तब विश्व के सम्पूर्ण ज्ञान का उपयोग सम्पूर्ण मानव करेंगे। यह ऐसी आश्चर्यजनक उन्नति होगी, जिसकी आज का भौतिकवाद कल्पना भी नहीं कर सकता।

दार्शनिक स्टेसी के अनुसार अनेक लोगों ने इस तरह के आश्चर्यजनक अनुभव पाये हैं। इससे उस सर्वोच्च शक्ति से आने वाले समस्त विचारों, अच्छाइयों, नवीनताओं और सत्य से मनुष्य जाने−अनजाने परिचित होता है एवं उसका लाभ समस्त विश्व को वह देता है। रहस्यवाद का यह भी एक स्वरूप है, जो किसी के अभ्यास में अचानक आ जाता है और किसी को कठिन प्रयास करने पर यह क्षणिक बोध ही सारे कठिनाइयों का हल बतला देता है, जो मनुष्य को आजीवन प्रेरित करता है। निश्चय ही एक अनन्त महिमा और शक्ति का विश्व हमारे ज्ञान के परे है, जहाँ से वह समय पर हमें असीम ज्ञान, प्रकाश एवं शक्ति प्रदान करता है।

स्टेसी का कथन है कि इस ज्ञान से ही मानव जाति पूर्ण होगी और वास्तविक आनन्द प्राप्त करेगी, जो आज के पदार्थ जगत के सुखों से अनन्त गुना मूल्यवान व हितकर होगा। यह बौद्ध धर्म के निर्वाण (अमरता) के निकट का ज्ञान होगा, जो मन और आत्मा के परिष्कार से प्राप्त होता है। मनुष्य जब जीवन और जीवन देने वाले का महत्व समझ लेता है, तब वह अमरत्व को प्राप्त करता है। इस समय वह भौतिक नियमों से नहीं बँधा रहता और आत्मानुशासन के अनुसार चलता है। यही नया विश्व मनुष्य को खुशहाल रखेगा और मुक्ति दिलायेगा।

चेतना हमारे भौतिक जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती है, अतः हम उसे आज दैनन्दिन जीवन से अलग नहीं कर सकते। परन्तु एक समय आवेगा, जब वह सर्वोच्च शक्ति के सर्वोच्च रहस्यों को जान लेगा, तब यह चेतना बिलकुल बदली हुई होगी। तब उसे ईश्वर के सत्य शिव एवं सुन्दर स्वरूप का बोध होगा। यह ज्ञान असीम, अव्यक्त एवं पूर्णता आनन्ददायक है। इसमें ओजस्विता और आत्म समर्पण के भाव होते हैं। समय और दूरी से परे यह ज्ञान हमें इस नश्वर जगत की कठिनाइयों एवं संघर्षों से ऊपर उठाता है। यह अनुभव क्षणिक होता है और हमें आकर्षित करता है। इसे देर तक देखने की इच्छा होती है। ऐसी अनुभूतियाँ हमारे ऋषि गणों की हैं।

बड़े−बड़े रहस्यवादी ही इन अनुभवों को देर तक ग्रहण कर सकते हैं और ये सर्वोच्च आनन्ददायक एवं रहस्यवादी अनुभव ध्यानयोग के अभ्यास के कारण उनके वश में होते हैं। ब्रिटिश दर्शन शास्त्री सी. ई. एम. जोड़ के अनुसार ये आनन्ददायक अनुभूतियाँ परम सत्य (ईश्वर) को व्यक्त करती हैं। इसी से मनुष्य मुक्ति प्राप्त करता है। यही है चेतना का वह रहस्यवाद जिसके लिए मनुष्य अनादि काल से भटक रहा है।


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