समय के साथ बदलिये

December 1985

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अपने हठ के हठीले मत रहिए। बदलते हुए वक्त को देखिये और उसके साथ अपने को भी बदल डालिए। जाड़े के दिनों में पहने जाने वाले रुईदार कपड़े गर्मी के दिनों पहनने की कोशिश मत कीजिए। इससे बेकार वजन लदेगा और पसीने से तर−बतर होना पड़ेगा। इसी तरह जाड़े के दिनों में बर्फीली हवा की सनसनाहट की परवाह किये बिना मलमल का कुर्ता मत पहनिए, आपकी परेशानी बढ़ेगी और देखने वाले बेवकूफ कहकर फब्तियाँ कसेंगे।

बचपन में छोटे कपड़े पहने जाते थे। अगर वह जमाना चला गया, और आपके सन्दूक में वे कपड़े रखे हैं, तो उस लालच में मत पहनिए कि रिश्तेदारों ने इन्हें बड़ी मुहब्बत से सिलवाया था और उनके बनने में बहुत पैसा लगा था। बड़े जिस्म में छोटे साइज के कपड़ों की ठूँस−ठाँस करना बेकार है। इसी प्रकार बड़े भाई की पगड़ी सिर पर बाँधना बेकार है। बड़ा भाई आप से बीस वर्ष बड़ा है। अगर यही पगड़ी पहननी है, तो उसका वक्त आज नहीं है। बीस वर्ष इन्तजार करना पड़ेगा।

जब आप छोटे बच्चे थे, तब दादा की गोद में चढ़ने के लिए मचलना मुनासिब था, पर आज तो दादा बूढ़े हो चुके हैं और आप जवानी के दिनों में जा पहुँचे। इन दिनों तो बीमार दादा को आप गोद में उठायें, इसकी जरूरत पड़ सकती है।

वक्त सदा एक जैसा नहीं रहता। वह अपने ढंग से बिना किसी का इन्तजार किये बदलता रहता है। आपके लिए मुनासिब है कि इस बदलाव को समझें और उसी हिसाब से अपने तौर−तरीके बदल डालें।

रस्म−रिवाजें सदा एक जैसी नहीं रहती। बदलते वक्त के साथ वे भी बदलती रहती हैं। हठ मत कीजिए कि पुराने लोग जो तौर−तरीके काम में लाया करते थे, आप भी उन्हीं को अपनाये रहेंगे। गर्मी के दिनों में नदी सूख जाती है, तब आप नाव में चढ़ने की कोशिश क्यों करते हैं? जो काम बरसात में किये जाते हैं, वे गर्मी के दिनों करने की तैयारी करना क्या मुनासिब है?

समय को देखकर चलिए। समझदार लोग सदा ऐसा ही करते हैं? पुरानों की इज्जत करने का मतलब यह नहीं है कि वे जो कुछ भी करते रहे हैं, वही आपको भी करना चाहिए। छाता लगाने को कोई गैर जरूरी नहीं कहता, पर उसे अगर जाड़े के दिनों में लगाकर चलेंगे, तो तरीके को अपनाने की बात कहना बेकार है। वे छाता जरूर लगाते होंगे, पर उन ठण्ड के दिनों में नहीं जब न धूप थी, न बरसात। बुजुर्गों की तरह आप छाता लगाने का फैसला करें, तो यह जरूर देख लें, कि उन दिनों जैसा मौसम है या नहीं।

वक्त बदलते हैं, जो जरूरतें बदलती हैं। साथ ही तौर−तरीकों में हेर−फेर करने की जरूरत पड़ती है। आप इन बातों पर ख्याल न करेंगे और पुराने लोगों की दुहाई देकर बेवक्त की चला−ढाल अपनाये रहेंगे, तो ऐसे हठी होने में कोई समझदारी नहीं है। वे समझदार हैं जिन्होंने समय की चाल के साथ ताल-मिलाकर अपनी गति बढ़ायी ऐसे व्यक्ति, समुदाय या राष्ट्र कभी अभावग्रस्त नहीं होते। सफलता सदैव उनके कदम चूमती है। आप अपने अतीत को मत देखिए उसे सराहने में समय नष्ट न करिए। जो बीत गया सो बीत गया। उसकी चर्चा अब निरर्थक है। अब तो आपके सामने वर्तमान की वास्तविकता है। उससे निपटकर अपने भविष्य की रूपरेखा बनाइए। जल्दी कीजिए, कहीं ऐसा न हो कि आप सोचते ही रह जाएं व जमाना कहीं का कहीं जा पहुँचे।


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