आखिर में आवाजें किसकी थी?

December 1985

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चेकोस्लोवाकिया की एक नदी के समीप कुछ लोग पर्यटन कर रहे थे, तभी सामने से कुछ मधुर संगीत सुनाई देते लगा। लोगों ने छान मारा पर पता न चला कि कौन और कहाँ से गा रहा है। जबकि आवाज उनके पास ही हो रही थी। उस स्थान पर कुछ समय पूर्व कुछ सिपाही मारे गये थे, इसलिए यह मानकर उस बात को टाल दिया गया कि उन सिपाहियों की मृतात्मायें गा रही होंगी।

एक बार कैलीफोर्निया की एक स्त्री भोजन पकाने जा रही थी, अभी वह उसकी तैयारी कर रही थी, चूल्हे से विचित्र प्रकार के गाने की ध्वनि निकलने लगी। गाना पूरा हो गया उसके साथ ही ध्वनि आनी भी बन्द हो गयी। न्यूयार्क में एकबार बहुत से लोग रेडियो प्रोग्राम सुन रहे थे, एकाएक संगीत ध्वनि तो बन्द हो गयी और दो महिलाओं की ऊँची−ऊँची आवाजों में बातें आने लगीं। रेडियो स्टेशन से पूछा गया तो पता चला कि वहाँ से केवल नियमबद्ध संगीत ही प्रसारित हुआ है। बीच की आवाज कहाँ से आई यह किसी को पता नहीं।

सेण्ट लुईस में एक बार रात्रि−भोज का आयोजन किया गया। जैसे ही संगीतकारों ने वाद्य−यन्त्र उठाये कि उनसे ताजा खबरें प्रसारित होने लगीं। इससे आयोजन के सारे कार्यक्रम ही फेल हो गये। नाहरियाल की एक स्त्री ने बताया कि उसके स्नान करने के टब से गाने की ध्वनियाँ आती हैं। एलवर्टा के एक किसान का कहना है कि जब वह अपने कुएँ के ऊपर पड़ी हुई लोहे की चादर को हटाता है, तो कुएँ के तल से संगीत सुनाई देने लगता है। पुलिस को सन्देह हुआ कि किसान ने कहीं रेडियो छुपाया होगा। इसलिए इंच−इंच जमीन की जाँच कर ली। पड़ोसियों के रेडियो भी बरामद कर लिए पर जैसे ही उस लोहे की चादर को हटाया गया, आवाज बार−बार सुनाई दी और अन्ततः उस समस्या का कोई हल निकाला नहीं जा सका।

‘वण्डर बुक ऑफ दी स्ट्रेंज फैक्टर्स’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक के लेखक ने नील नदी के किनारे स्थित कारनक के खण्डहरों में दो घूरती हुयी प्रतिमाओं का उल्लेख किया है। ये दोनों प्रतिमायें डेढ़ कि. मी. के फासले पर जमी हुई हैं तथा उनके पास जाने पर ऐसा लगता है जैसे कोई विशालकाय दैत्य घूर रहा हो। इनमें एक प्रतिमा पत्थर की सामान्य मूर्तियों की तरह चुप खड़ी रहती है, पर दूसरी से अक्सर कुछ बोलने की आवाज आती रहती है। पत्थर की मूर्ति क्यों और कैसे बोलती है इसका पता लगाने की हर सम्भव कोशिश की गयी, किन्तु अभी तक कुछ कारण खोजा नहीं जा सका। मूर्ति में कोई रेडियो भी नहीं है जिससे यह अन्दाज लगाया जा सके कि वह अदृश्य शब्द प्रवाहों को पकड़कर ध्वनि में रूपांतरित कर देते हैं।

ब्रिटेन के नार्थ वेल्स प्रदेश के तट पर चलने से उसमें रेतीय सुमधुर संगीत ध्वनि सुनाई पड़ती है। जिससे वह लोगों के आकर्षण का केन्द्र बनता चला गया। लन्दन विश्व विद्यालय के सुप्रसिद्ध रसायन शास्त्री डा. केनेथ रिजवे तथ्य की पुष्टि के लिए इस संगीतमय रेत को बोरियों में भरवाकर अपनी प्रयोगशाला में ले गये। प्रयोगों के उपरान्त उन्होंने बताया कि पैर के दबाव के कारण बालू के कण आगे−पीछे सरकते हैं ये कण अधिकाँशतः समान आकर के होते हैं इसलिए उनमें से संगीतमय ध्वनि निकलती है। लेकिन हुआ यह कि रेत ने प्रयोगशाला में संगीत नहीं गाया।

मध्य एशिया के आठ लाख कि. मी. क्षेत्र में फैले हुए गोबी मरुस्थल के तकलामारान अंचल के पश्चिमी छोर पर स्थित अन्दास पारसा नामक स्थान में करुण संगीत सुनाई देता है। यह संगीत कभी−कभी ही सुनाई देता है और अधिक से अधिक पन्द्रह मिनट तक चलता है। अमेरिका की एक रेडियो कम्पनी ने इस करुण संगीत को टैपकर सुनाया तो कुछ ही दिनों में आकाश वाणी केन्द्र को हजारों श्रोताओं ने पत्र लिखे और बताया कि इस संगीत को सुनकर उनका हृदय व्यथा वेदना से भर आया। एक टी.वी. कम्पनी ने इस स्थान की एक टी. वी. फिल्म भी उतारी और अपने दर्शकों को बिना किसी कमैन्ट्री के सुनाई तो दर्शक रोने भी लगे।

अफगानिस्तान में काबुल के पास एक रेतीले मैदान में घोड़ों के दौड़ने और नगाड़ा के पीटने की आवाज आती है जैसे कहीं से घुड़सवार अपने घोड़े दौड़ाते हुये एक नगाड़े को पीटते आ रहे हों।

इसराइल के सिनाई अंचल की तलहटी में स्थित एक पर्वत से घण्टियाँ बजने की आवाज आती है। इसी कारण वह ‘वेल माउण्टेन’ कहकर भी पुकारा जाने लगा है। ईरान के मरुस्थल में कई स्थानों से ऐसा स्पष्ट संगीत सुनाई देता है जैसे वहाँ कोई बीन बजा रहा हो।

कवाई टापू पश्चिमी आइलैंड के हवाइयाँ ग्रुप में आता है। होनोलूलू से करीब 12 कि. मी. दूर के इस टापू पर स्थित एक 20 मीटर ऊँची पहाड़ी तरह−तरह की आवाज करती है। इस पहाड़ी के पत्थर कोटल, शेल्स तथा लावा के कणों से निर्मित पाये गये हैं, जो स्वयं अपने आप में आश्चर्य हैं। उससे भी बड़ा आश्चर्य यह कि पहाड़ी से प्रायः कुत्तों के भौंकने की ध्वनि आती है। रात के अन्धकार और आँधी वर्षा के समय यह ध्वनि बहुधा होती है। बच्चों के लिए यह क्षेत्र निषिद्ध घोषित है क्योंकि बच्चे इस आवाज को सुनने पर भयभीत हो जाते हैं। ऐसा भी नहीं है कि पास के किसी गाँव में कुत्ते ही भौंकते हों और उनकी प्रति ध्वनि आती हो। इस पहाड़ी के आसपास मीलों दूर तक कोई गाँव नहीं है आज तक कोई भी वैज्ञानिक उस कारण की खोज नहीं कर पाया कि इस टीले से भौंकने की आवाज क्यों आती है। सदियों से यह रहस्य ज्यों का त्यों बना हुआ है तथा अपने विश्लेषण की लम्बे समय से प्रतीक्षा कर रहा है। ‘वण्डर बुक ऑफ दि स्ट्रैन्ज फैक्टर्स’ नामक पुस्तक में इन भौंकने वाले टीलों का सविस्तार विवरण दिया गया है।

कोई यह अभी तक नहीं बता सका कि ये आवाज कैसे पैदा हुईं, विज्ञान के पास ऐसी विचित्र घटनाओं का कोई जवाब नहीं। क्या इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर रहे वैज्ञानिकों के समुदाय में से कोई एक भी इस अविज्ञात को तथ्यों, प्रमाणों के आधार पर सिद्ध करने के तैयार है? यह चुनौती सभी के लिये है।


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