पिछला कदम उठाकर ही अगला कदम बढ़ाया जा सकता है। तुच्छ के छोड़ने पर ही गौरव पाया जा सकता है।
इच्छाओं को पतन की सीढ़ी बताया गया है और विचारशीलों को उनका परित्याग करने के लिए धर्म−शास्त्रों में अनेक ढंग से कहा गया है। आत्मिक उन्नति का इसे प्रथम चरण बताया गया है। उस महान कथन का तात्पर्य उन इच्छाओं के परित्याग से है जो वासना, तृष्णा और अहंकार की अभिवृद्धि के असीम साधन जुटाने के लिये हर समय प्रेम पिशाच की तरह सिर पर चढ़ी रहती हैं। हम आवश्यकताओं, इच्छाओं का अन्तर समझें और उचित निर्वाह के जितना आवश्यक है उसका न्यायोपार्जन करने के उपरान्त ऐसी इच्छाएँ करें जो देश, धर्म, समाज की संस्कृति को समुन्नत बनाने का पथ प्रशस्त करे।