एक व्यापारी ने जल्दबाजी से अपना सारा धन बेटों को बाँट दिया और स्वयं उनके आश्रित हो गया। देखा कि अब इसके पास कुछ नहीं है तो पुत्र वधुयें तिरस्कार करने लगीं। बारी−बारी वह चारों के यहाँ रहा तो भी हर जगह उसे उपेक्षा ही मिली।
दुःखी होकर वह एक मित्र के यहाँ पहुँचा। उसने अपनी नीति बताई। चारपाई के चारों पायों के नीचे, थोड़ा−थोड़ा पैसा जमीन में गाढ़ रखा था। कहता था जो बहू अधिक सेवा करेगी उसी को यह धन देकर जाऊँगा।
सभी बहुयें एक दूसरी की प्रतिद्वन्द्वता करतीं और सेवा में आगे निकलने की कोशिश करतीं ताकि सम्पत्ति उन्हीं को मिले। धन थोड़ा-सा ही था। पर उसे अधिक समझकर उनकी सेवा अधिक होती थी।
भूल करने वाले मित्र को भी उनने अपने घर रख लिया और बताया सब कुछ देकर स्वयं खाली हो जाना बुढ़ापे के लिए संकट मोल लेना है।