गान्धी जी की अतृप्त कामना−
“कभी कभी यह आता है कि सब छोड़−छाड़ कर एकदम एकान्त में जाकर अपना प्रयोग चलाकर देखूँ तो? अपनी शान्ति और कल्याण साधने के लिए नहीं, किन्तु आत्म निरीक्षण के लिए, आत्मा की आवाज को अधिक स्पष्टता से सुनने के लिए, जगत के ही कल्याण का प्रतिक्षण विचार हो, और इस विचार की सहज−सिद्धि प्राप्त हो सके। तभी मेरा अहिंसा का प्रयोग सफल होगा। पूर्ण अहिंसक मनुष्य गुफा में बैठा हुआ भी जगत् को हिला सकता है।