ब्राह्मण पद्मनाभ (kahani)

December 1985

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

कथा वाचक गरीब ब्राह्मण पद्मनाभ कथायें बांच कर ही अपना निर्वाह करते थे। इस प्रकार जीविकोपार्जन के साथ−साथ सद्ज्ञान प्रचार का पुण्य प्रयोजन भी पूरा हो रहा था। धर्म ग्रन्थ का अध्ययन करते हुए उन्होंने एक स्थान पर पढ़ा। ज्ञानदान का प्रतिफल धन के रूप में ग्रहण नहीं करना चाहिए।

उन्हें बड़ा दुःख हुआ कि अब तक वे इस नियम की अवहेलना ही करते रहे। धर्म प्रचार के लिए जब वे कथायें करते तो लोग जो दक्षिणा देते उसी से अपना गुजारा चलाते थे। अब तक जो भूल हो गयी सो हो गयी अब न होने दूँगा। इस संकल्प के साथ उन्होंने जंगल में लकड़ी काटकर अपना गुजारा चलाना आरम्भ कर दिया। दान दक्षिणा में लोग पैसा तो चढ़ाते ही थे, उस धन का उपयोग वे गुरुकुल तथा अन्य जनोपयोगी कार्यों में करते।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118