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Akhand Jyoti
Year 1985
Version 2
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December 1985
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जीवन के प्रकाशवान क्षण वे हैं जो सत्कर्मों में बीते और नेकी करते हुए बीते।
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Page Titles
आँगन में विद्यमान कल्पवृक्ष
महान् कार्यों के लिए महान व्यक्तित्वों की आवश्यकता
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डा. माम (kahani)
भक्ति में देना ही पड़ता है।
नालन्दा विश्वविद्यालय (kahani)
अन्तरंग योग की पृष्ठभूमि
क्रियायोग के चार विधान
व्यक्तित्व का अधःपतन और उसकी परिणति
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बड़प्पन का मापदण्ड
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आत्मा और शरीर का वास्तविक हित साधन
मिस्र के सन्त (kahani)
मनुष्य की सशक्त प्राण-ऊर्जा
धन बेटों को बाँट दिया (kahani)
धर्म अपने स्वस्थ स्वरूप में ही वरणीय है।
संयम से रहें दीर्घजीवी बनें
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आवश्यकताओं और इच्छाओं का अन्तर
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मानवी सत्ता−जादू की पिटारी
संगीत और आत्मोत्कर्ष
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सत्संग में बैठने का चस्का (kahani)
भूत, भविष्य की नहीं, मात्र वर्तमान की सोचें
साहस और सूझबूझ के धनी
नानक देव की बढ़ती लगन (kahani)
आखिर में आवाजें किसकी थी?
आत्मवत् सर्व भूतेषुः (kahani)
पालब्रिन्टन द्वारा गुप्त भारत की खोज
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पुरातन गरिमा को भुलायें नहीं
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समय के साथ बदलिये
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योग की साधना की जाय, विडम्बना नहीं
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प्रेतों का अस्तित्व और स्वभाव
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किसी अन्य लोक में जा बसने की तैयारी
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ब्राह्मण पद्मनाभ (kahani)
ऐसे होते हैं- दैत्य
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चेतना का रहस्यवाद
बाहर और भीतर की समृद्धियाँ
न आत्म−विश्वास खोयें न भयाक्रान्त रहें
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बढ़ते हुए मनोरोग−कारण और निवारण
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गुरुदेव की सावित्री साधना के संदर्भ में विशेष लेखमाला−
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VigyapanSuchana
स्थिति के अनुरूप साधनों की भिन्नता
‘यज्ञ’−ज्ञान और विज्ञान का भाण्डागार
गलती न दुहराए (kahani)
ब्राह्मणत्व गिरेगा तो समाज की बर्बादी होगी
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अपनों से अपनी बात- ‘‘हीरक जयंती का सफल आयोजन’’
जमीन में गाड़ रखा (kahani)
तप की सामर्थ्य (kavita)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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