मानवी सत्ता−जादू की पिटारी

December 1985

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न्यूरोलॉजी के अनुसार मस्तिष्क के बाहरी धूसर पदार्थ−ग्रे मैटर में तन्त्रिका कोशिकाओं न्यूरान्स की संख्या करीब 10 अरब है। अनुमास्तिष्क−सेरिबेलस में लगभग 120 करोड़ और मेरुदण्ड में 1 करोड़ 35 लाख तन्त्रिकाएँ इसके अतिरिक्त हैं। इनके साथ−साथ ग्लाया स्तर की करीब एक खरब लघु कोशिकाएँ इन न्यूरान्स की सहेली बन कर रहती हैं। इनके मिलन स्थल को तन्त्रिका−बंध−न्यूरोग्लाया−कहते हैं। इन सबका सम्मिश्रित प्रयास ही मस्तिष्कीय चेतना है।

वैज्ञानिक पद्धति से मस्तिष्क के अधिक से अधिक 17 प्रतिशत भाग को जाना जा सका है, जबकि अत्यन्त कौतूहल वर्धक रहस्य शेष 83 प्रतिशत में छिपे हैं। सुपीरियर एण्ड इन्फीरियर सेरिव्रल पेडेन्कल्स के बीच अवस्थित मस्तिष्क में ही सम्पूर्ण दृश्य केन्द्र (सेन्सरी एरिया) बने हैं। मस्तिष्क से निकलने वाली सभी नसों के नाभिक (न्यूक्लियाई) यहीं पर हैं। यहाँ एक अद्भुत संसार छिपा है पर उसे यन्त्रों से नहीं, भावनाओं से, ध्यान से ही देखा जा सकता है।

इस अनोखे उपकरण मस्तिष्क में ऐसी क्षमताएँ छिपी पड़ी हैं जिनके क्रिया रूप को देखकर आँखें फटी रह जाती हैं। असम्भव से असम्भव भी मनुष्य कर गुजरने की क्षमता रखता है। इसके अनेकों उदाहरण इतिहास में दैनन्दिन जीवन में देखे जा सकते हैं। आयु का मस्तिष्कीय कार्य क्षमता से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह तो इस पर निर्भर है कि किसने कितना अपनी क्षमताओं को निखारा, तराशा।

जार्ज बर्नाडशा 93 वर्ष की आयु तक इतना अधिक लिखते थे कि वे स्वयं 40 वर्ष की आयु में भी इतना नहीं लिख पाते। गोस्वामी तुलसीदास ने 50 वर्ष की आयु के बाद रामचरित मानस लिखना आरम्भ किया था और दो वर्ष की अवधि में उसे समाप्त कर विश्व साहित्य की महत्वपूर्ण देन देकर विश्व को उपकृत किया। रवीन्द्र नाथ टैगोर ने 90 वर्ष की आयु में अपना एक उपन्यास पूरा किया था।

यूनानी नाटककार सोफोप्लीन ने 90 वर्ष की आयु में अपना प्रसिद्ध नाटक “आर्डीपस” लिखा था। यद्यपि उन्होंने इसके पहले भी कई रचनाएँ लिखी थीं, पर जिन रचनाओं ने उन्हें साहित्यिक जगत में प्रतिष्ठित किया वे सभी 80 वर्ष की आयु के बाद लिखी गईं थीं। अंग्रेजी के सुप्रसिद्ध कवि मिल्टन 44 वर्ष की आयु में अंधे हो गये थे। अन्धे होने के बाद उन्होंने सारा ध्यान साहित्य रचना पर केन्द्रित किया और 50 वर्ष की आयु में अपनी प्रसिद्ध कृति “पैराडाइजलास्ट” लिखी। 62 वर्ष की आयु में उनकी एक और प्रसिद्ध कृति “पैराडाइज रीगेण्ड” प्रकाशित हुई। जर्मन कवि गेटे ने अपनी प्रसिद्ध कृति “फास्ट” 80 वर्ष की आयु में लिखी थी। 92 वर्ष का अमेरिकी दार्शनिक जॉनडेवी अपने क्षेत्र में अन्य सभी विद्वानों से अग्रणी था उन्होंने दर्शन के क्षेत्र में 60 वर्ष की अवस्था में ही प्रवेश किया था।

बैंगलौर की एक भारतीय महिला शकुन्तला ने संसार में कठिन गणित के उत्तर तत्काल देने से कभी असाधारण ख्याति पाई थी। सिडनी (आस्ट्रेलिया) में उनने एक करोड़ों की लागत वाले कंप्यूटर से बाजी बदकर गणित के उत्तर दिये और आगे रहने में सफलता पाई। कंप्यूटर जितनी देर में उत्तर बताता था शकुन्तला उससे पहले ही प्रस्तुत कर देती थी। उन्हें ‘गणित की जादूगरनी’ कहा जा रहा हैं।

उपन्यास लेखन के क्षेत्र में वैरोनेस डी. मेयर का अपने स्तर और कीर्तिमान है। वह पूरे 30 वर्ष तक उपन्यास लेखन कार्य में ही दत्त−चित्त से जुटे रहे। इस अवधि में उन्होंने 320 उपन्यास लिखे। सभी मूर्धन्य प्रकाशकों ने प्रकाशित किए। करोड़ों की संख्या में उपन्यास उनके जीवन काल में ही बिक गये।

सीडर रैपिड्स आइडोवा अमेरिका का एक प्रतिभावान व्यक्ति एक साथ कई उत्तरदायित्व संभालता था। उत्तरदायित्व को इस प्रकार पूर्ण करता मानो उसने इसी में विशिष्टता प्राप्त की हो। वह एक साथ वकील, वैज्ञानिक, अध्यापक, विधायक, सम्पादक, न्यायाधीश, मेयर, नर्सरी−संचालक, होटल मालिक और स्टीम वोट निर्माता है। हर काम में उन्होंने चोटी की सफलता और ख्याति पाई। इसके अतिरिक्त वह 6 बैंकों, 17 कम्पनियों, 10 रेल लाइनों, तथा 3 कालेज का अध्यक्ष भी था। इनमें से किसी ने भी उनकी उपेक्षा, व्यस्तता या अयोग्यता की शिकायत नहीं की।

न केवल नाटक लिखने में वरन् उन्हें प्रदर्शित करने की व्यवस्था बनाने में भी पेरिस का मेरीडीन लम्बर्ट थ्यूलान प्रख्यात था। उसने एक वर्ष में 50 तीन−तीन खण्डों वाले नाटक लिखे। जिस दिन ये लिखकर पूर्ण किये गये उसी दिन उन्हें प्रदर्शन के लिए भी व्यवस्था बनानी पड़ी। जनता का अत्यधिक आग्रह देखकर उसे कई नाटकों में स्वयं भी अभिनय करना पड़ा। अपने विषय में पूरा रस लेने और गहराई तक उतरने की विशिष्टता के कारण ही उसने ऐसी सफलता और प्रतिष्ठा अर्जित की।

अपने विषयों में पारंगत होने के कारण पाल ए. चैडबोर्न को अमेरिका के तीन महाविद्यालयों में तीन पृथक−पृथक विषय पढ़ाने पड़ते थे। प्राध्यापकों की कमी नहीं थी पर उसके ज्ञान की प्रगाढ़ता और पढ़ाने की शैली को देखते हुए हर विश्वविद्यालय अपने यहाँ काम करने के लिए आग्रह करता था। अन्ततः उसने तीन कालेजों को सन्तुष्ट करने का कार्यक्रम बनाया। तीनों में वह एक दूसरे से भिन्न विषय पढ़ाता था। विलियम्स कालेज, वाडोइन कालेज, मादने मेडीकल कालेज में उसने क्रमशः वनस्पति विज्ञान, इंजीनियरिंग और चिकित्सा की सर्वोच्च कक्षाएँ पढ़ाते रहने की जिम्मेदारी भली प्रकार निभाई।

प्रतिभा, जिम्मेदारी और ईमानदारी व्यक्ति की त्रिविधि आवश्यकता पूर्ण करने वाले व्यक्तियों में अमेरिकी काँग्रेस के सदस्यों में श्वीलर काल फैक्स का नाम सुविख्यात है। इन दिनों महत्वपूर्ण पदों में से एक व्यक्ति एक ही पद सम्भाल सकता था। पर सदस्यों ने सर्व सम्मति से दो सर्वोच्च पदों पर बने रहने के लिये न केवल आग्रह किया वरन् इसके लिए विशेष नियम प्रस्ताव भी पारित किये। काल फैक्स यूनाइटेड स्टेट्स के सन् 1865 में उपराष्ट्रपति भी थे और उन्हीं दिनों उन्हें हाउस आफ रिप्रजेन्टेटिव में स्पीकर का पद भी सम्भालना पड़ता था।

ज्ञान पिपासा के धनी मोल्शियोर सेविस, चिकित्सा शास्त्र में मूर्धन्य बनना चाहते थे। उनने चिकित्सा कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व यह आवश्यक समझा कि अपने विषय में निष्णात बनने के उपरान्त किसी के चिकित्सा करने का उत्तरदायित्व सम्भाले। इसके लिए उन्होंने प्रायः समूचा जीवन विद्यार्थी की तरह खपा डाला। वे एक, एक करके फ्राँस के 26 विश्वविद्यालयों में भर्ती हुए और वहाँ उन्होंने उस विषय में विशिष्टता प्राप्त की जिनकी कमी अनुभव होती थी। अन्त तक अपनी परिपक्वता में कभी ही अनुभव करते रहे। फलतः उन्होंने आजीविका के लिए फ्रांस के स्ट्राम्स वर्ग विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का काम अपना लिया पर रोगियों की चिकित्सा में अपने ज्ञान की कमी बताते हुए उनमें हाथ ही नहीं डाला।

आगस्टीन थिएरी नामक फ्रांसीसी वरिष्ठ इतिहासकार को दैवी प्रकोप का शिकार होना पड़ा। उसकी भरी जवानी में आँखें चली गईं। इतना ही नहीं पक्षाघात के कारण वह एक प्रकार से अपंग भी हो गया। फिर भी उसने अपने प्रिय विषय को जारी रखा। इसने इतिहास के 20 अत्यन्त सम्मान प्राप्त ग्रन्थ लिखे। स्वयं लिखने में असमर्थ हो जाने पर वह बिस्तर पर पड़े−पेड़ ही बोलकर दूसरों से लिखने की सहायता लेता रहा। शरीर की अशक्तता में भी इसका काम रुका नहीं।

उपरोक्त उदाहरण व अन्यान्य विलक्षण प्रतिभाओं के वर्णनों से मानवी सत्ता की विलक्षण निधि मस्तिष्क की क्षमता की असीम सम्भावनाओं की एक झलक मिलती है।

यह प्रतिभा हर किसी में विद्यमान है। आवश्यकता इस बात की है कि उन्हें किसी प्रकार जागृत किया जा सके। कभी−कभी वे पूर्व संचित संस्कारों से अनायास भी जागृत पाई जाती हैं।


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