अपनों से अपनी बात- ‘‘हीरक जयंती का सफल आयोजन’’

December 1985

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हीरक जयन्ती का वर्ष आँधी तूफान की तरह आया और उसने एक−सिरे से दूसरे सिरे तक के पेड़−पौधों को झकझोर कर रख दिया। पत्ते और तिनके उड़कर आसमान छूने लगे। पैरों तले पड़ी रहने वाली धूल ने समूचा वातावरण आच्छन्न कर दिया। ऐसी हलचल गुरुदेव के जीवन में सम्भवतः सहस्र कुण्डी यज्ञ के दिनों ही आई थी। जब देश भर में हलचल मची थी और मणि−मुक्तकों की तरह ढूँढ़−ढूँढ़कर एक लाख विवेकशील धर्म प्रेमियों का संगठन बना था कि इस प्रतिगामी समझने वाले धर्म तन्त्र द्वारा युग परिवर्तन का प्रगतिशील वातावरण बना कर दिखाया जायेगा।

उस बात को 28 वर्ष बीत गये। इतनी अवधि में वह लगाया हुआ नन्दन वन गायत्री परिवार के रूप में परिपक्व परिपुष्ट हो गया और फूलने−फलने लगा। अब यह देखा जा रहा है कि उनका आच्छादन कितना सुविस्तृत हो गया और उस पर कितने बड़े कितने बहुत अमृत तुल्य फल लगने लगे।

इस उद्यान के 24 लाख सदस्य और एक लाख माली हैं। इस विस्तार ने देश−विदेश का अधिकाँश भाग घेर लिया है। उसकी मलयज गंध से जन−जन का मन प्रभावित होने लगा है। इसे कहते हैं बोये हुए खेत को लहलहाना और सफल के उत्पादन से घर के कोठे−कुठीले भर जाना।

वह अतीत की चर्चा हुई भविष्य की कल्पना और भी शानदार है। इतनी शानदार कि उसकी कल्पना भर से पुलकन और सिहरन उठती है। इसे कहते हैं सतयुग की वापसी। मूर्च्छना का नव चेतना में बदल जाना। च्यवन की वृद्धावस्था मरण की ओर चलने की अपेक्षा जवानी में लौट पड़ी थी। भारत की देव संस्कृति के साथ भी यही हुआ है। प्रतिगामिता उसे ग्रस ने जा रही है, पर गज को ग्राह के मुख से छुड़ाने वाले ने पाशा पलट दिया। द्रौपदी की लाज बच गई और उसका चीर अक्षय हो गया। यह है अपना भविष्य जिसे आज नहीं तो कल साकार होते हुए देखा जा सकेगा।

दृष्टिपात मध्यवर्ती वर्तमान पर करना है। इस मध्यावधि को वर्तमान की प्रभात बेला को हीरक जयन्ती नाम अनायास ही मिल गया है। आत्मा न कभी जन्मता है, न मरता है। शरीरों के अन्तराल में परिवर्तन का क्रम निरन्तर चलता रहता है। ऐसी दशा में किसकी आयु कितनी गिनी जाय, यह असमंजस की बात है। फिर भी लोकाचार के अनुसार उनके शरीर जन्म को 75 वर्ष होने को आये। परिजनों का उत्साह उमड़ पड़ा और इस वर्ष को हीरक जयन्ती नाम दे दिया गया।

इस वर्ष में क्या करना है? इसका निर्देशन गुरुदेव ने स्वयं ही दिया। वे मृतक भोज करने से स्थान पर वृक्षारोपण का परामर्श लाखों को दे चुके हैं, जिससे धन का अपव्यय न हो और कुछ ऐसी बात बने जो संसार की शोभा बढ़ाये, उन्होंने शादियों में दहेज का ही नहीं धूम−धाम का भी घोर विरोध किया है और अपने नेतृत्व में असंख्यों विवाह नितान्त सादगी युक्त कराये हैं। फिर वे अपनी हीरक जयन्ती पर धूमधाम मचाने, जुलूस निकालने प्रदर्शन खड़े करने जैसे बचकाने प्रयोजनों की अनुमति कैसे देते। यह वर्ष नितान्त सादगी के साथ मनाया जा रहा है। इतने पर भी इस अवसर पर रचनात्मक कार्यों पर डडडडऐसा लग रहा है जैसे पेज छूट रखा होडडडड में न्यूनतम एक वर्ष का समय चाहिए पर 1- डडडड 2- मजीरा 3- खड़ताल 4- चिमटा 5- तारवाद्य। पाँच को मिला देने से एक छोटा आरकेस्ट्रा बन डडडड है और इतने साजों के सहारे ही युग संगीत गाये जा सकते हैं। कथा के साथ कीर्तन किये जा सकते हैं इन डडडड बाजों का एक सेट प्रायः साठ रुपये की लागत में बन जाता है।

अपने यहाँ प्रवचन और संगीत विद्यालय चलाये डडडड। इनमें प्रकाशित प्रज्ञा पुराण के चारों खण्डों को डडडड दिया जाय और साथ ही उपरोक्त वाद्ययन्त्रों का डडडड शिक्षण चले। जिस स्तर का युग शिल्पी सत्र हरिद्वार में डडडड किया था उसी प्रकार का अपने यहाँ−अपने उत्साही कार्यकर्त्ताओं को एकत्रित करके चलाया जाय। इस प्रकार डडडड प्रचार मण्डली खड़ी करना उन सबका कर्तव्य है जो हरिद्वार युग शिल्पी शिक्षण प्राप्त करके लौटे हैं।

वायु मंडल और वातावरण की संशुद्धि के लिए युग परिवर्तन भूमिका के रूप में प्रज्ञा परिजनों द्वारा 240 करोड़ गायत्री जप का प्रयोग नियमित रूप से चल रहा है। इस वर्ष से उसमें वृद्धि की गई है। 24 करोड़ गायत्री चालीस पाठ का संकल्प इसी वर्ष से लिया गया हैं। जो युग संधि की अवधि सन् 2000 तक यथावत् डडडड। इन जापों से आयु, स्नान आदि का कोई डडडडड नहीं है। जब भी अवसर मिले तभी एक पाठ कर लिया जाय।

इस प्रयोजन के लिए विशेष रूप से गायत्री चालीसा छापे गये हैं और वे लागत से कहीं कम मूल्य में पाँच रुपये के सौ दिये जा रहे हैं। अपने संपर्क क्षेत्र में इन्हें इस शर्त पर वितरित किया जाय कि वे एक पाठ नित्य किया करेंगे।

अशिक्षित भी इस चालीसा पाठ योजना में इस प्रकार सम्मिलित हो सकते हैं कि पढ़े लोग एक बार कहें। बिना पढ़े उसे दूसरी बार दुहरायें। इस प्रकार शिक्षित अशिक्षित सभी इस योजना में सम्मिलित हो सकते हैं और न्यूनतम सौ पाठ कराने का जिम्मा हर प्रज्ञापुत्र ले सकता है। उनकी पूर्ति हो रही है या नहीं, इसका लेखा−जोखा भी रख सकता है। इस प्रकार प्रचार मण्डलियाँ तैयार करना और गायत्री चालीस पाठ का संकल्प पूरा कराना यह दो कार्य ऐसे हैं जो अभी−अभी इन्हीं दिनों आरम्भ किये गये हैं। इनकी पूर्ति के लिए किसी को भी कुछ उठा न रखना चाहिए। इस वर्ष एक हजार प्रचार मण्डलियाँ और 24 लाख पाठ प्रतिदिन का क्रम चलना ही चाहिए। यह झोला पुस्तकालय और जन्मदिन मनाने के आयोजनों से अतिरिक्त है। जन्मदिन मनाने की पाइप की नी फोल्डिंग यज्ञशालाएँ दो सौ के करीब में हरिद्वार से मिल सकती हैं। इन्हें अपने यहाँ भी बनाया जा सकता है। समीपवर्ती शाखाओं को सप्लाई करने के लिए वाद्ययंत्र, यज्ञशालाएँ एवं ज्ञानरथ कोई भी बना और बेच सकता है।

हीरक जयन्ती इन रचनात्मक कार्यों के साथ सम्पन्न होनी चाहिए। जो इन कार्यों को आगे बढ़ाने में योगदान दें, वे सभी हीरक जयन्ती के हीरक माने जायेंगे और उनके सत्प्रयत्न उनके लिए हर प्रकार श्रेयस्कर परिणाम उत्पन्न करें, ऐसी सर्व शक्तिमान माता से हम लोग प्रार्थना करेंगे।


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