किसी अन्य लोक में जा बसने की तैयारी

December 1985

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प्रस्तुत अन्तरिक्षीय खोज के कई कारण हो सकते हैं। अधिकाधिक जानने की इच्छा, अन्तरिक्ष का दोहन प्रतिकूलताओं के समाधान के खोज से लेकर भावी युद्ध के लिए रणक्षेत्र तैयार करना आदि। कारण कुछ भी हो आखिर इतनी महंगी योजनाओं का परिवहन करने में योजना निर्माताओं की दृष्टि किसी बड़ी बात पर होनी चाहिए।

इन सम्भावनाओं में एक कड़ी और भी जुड़ती है कि मनुष्य जिस उद्दण्डता पर उतारू है उसके फलस्वरूप इस धरती पर से जीवन की आवश्यक सामग्री ही समाप्त हो जाय और सर्वत्र विष ही विष भरा दिखे अथवा इस सुन्दर धरातल को हाइड्रोजन बमों और लैसर किरणों से नेस्त नावूद ही कर दिया जाय। तब मनुष्य को अपने अस्तित्व को किसी अन्य लोक में भेजना भी पड़ सकता है। सब लोग न सही कुछ लोग ही किसी उपयुक्त वातावरण वाले लोक में चले जायें तो आदम हब्वा की तरह अपनी वंश वृद्धि करते हुए अन्यत्र कहीं पृथ्वी जैसी परिस्थितियाँ बना सकते हैं। इसलिए कहाँ मानव जीवन की सम्भावना है इस निमित्त भी यह ढूँढ़−खोज चल रही हो सकती है।

जर्मन शोध संस्थान से सम्बन्धित जीर्वेन विश्व-विद्यालय के प्रसिद्ध भूगर्भ शास्त्री प्रो. हांस डीटर फ्लग ने कुछ ऐसे अवयवों के अवशेष खोज निकालें हैं जो कभी तारों के टूटने से इस धरती पर आए।

प्रो. फ्लग ने पश्चिम ग्रीन लैण्ड की इसूजा चट्टान में पाए गये इस सूक्ष्म अवशेषों का इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप से अध्ययन करने पर पाया कि इनमें प्राप्त अवशेष वर्तमान जीवित अवयवों का मात्र 1 प्रतिशत ही हैं फिर भी जीवन के समग्र लक्षण इन में किसी न किसी मात्रा में आज भी मौजूद हैं। यह चट्टान विश्व की सबसे प्राचीन चट्टान है।

अब से लगभग 100 वर्ष पूर्व स्वीडन के नोबेल पुरस्कार विजेता प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्वांटे अरहेनियम ने उस समय एक सिद्धान्त प्रतिपादित किया था, जिसमें उन्होंने लिया था “जीन्स” ने सर्वप्रथम बाह्य अन्तरिक्ष में जन्म लिया था। वहीं से शक्तिशाली जीवाणु अन्य ग्रहों में गए पृथ्वी भी उनमें से एक है और धीरे-धीरे जीव विकास क्रम में आज की स्थिति में विश्व पहुँचा।

प्रो. फ्लग इस सिद्धान्त की सत्यता सिद्ध करते हुए उल्काओं के जन्म को भी सौर मण्डल के निर्माण के साथ मानते हैं। इनका कहना है कि इसूजा चट्टान में पाए गये जीवांश अरबों वर्षों तक जीवित रह सकते हैं।

“इन्टेलीजेंट यूनीवर्स” के लेखक फ्रेड होयल ने अपनी पुस्तक में पृथ्वी के बाहर भी जीवन है इस बात को प्रामाणित करने के लिए विभिन्न कालों में तदाशय के वैज्ञानिक खोजों का ब्यौरा प्रस्तुत किया है।

लेखक के अनुसार पहली बार 1864 में, दक्षिणी, पश्चिमी फ्रांस में उल्कापात के अवयवों का सूक्ष्म वीक्षण यन्त्रों द्वारा परीक्षण करने पर इस बात की सम्भावना व्यक्त की जा सकी कि पृथ्वी के बाहर अन्य ग्रहों पर भी जीवन है।

1930 में परीक्षण में दौरान पाया गया कि पृथ्वी के बाहर से आने वाले उल्का शिला खण्डों के बीच कुछ ऐसे जीव हैं जिनकी बाहरी खाल होती हैं जिनमें ‘कारबन’ की परत सी चढ़ी रहती है।

पृथ्वी पर अन्तरिक्ष वासियों के आवागमन सम्बन्धी आधुनिक वैज्ञानिक खोजों के अतिरिक्त संसार में पौराणिक भिथकों में भी इसका वर्णन मिलता है। प्रो. वाँन डेनीकेन ने उनका एक विवरण सम्पादित किया है। पुस्तक का नाम है− “इंजेकेले” उसमें काश्मीर में श्रीनगर शहर से 20 मील दूर बने पर्वतीय क्षेत्र में अवस्थित एक सूर्य मन्दिर का उल्लेख है जिसके भग्नावशेष अभी भी देखने को मिलते हैं।

राष्ट्रीय वैज्ञानिक और अन्तरिक्ष प्रशासन (नासा) जो अमेरिका में स्थित है ने आशा व्यक्त की है कि 2085 तक लोग चाँद और मंगल पर बस जायेंगे और वहीं से शनि, बृहस्पति, यूरेनस और नैप्च्यून के उपग्रहों की यात्रा शुरू कर देंगे।

डी. पी. ए. की हाल ही में एक बैठक के अनुसार कहा गया कि मंगल और चाँद पर बस्तियाँ बसाना सम्भव है और इस दिशा में प्रगति हो रही है।

प्रो. एल्वर्ट किंग (ह्यूस्टन विश्वविद्यालय) के अनुसार मंगल हमारे सौर मंडल का एक मात्र ग्रह है जहाँ पृथ्वी की तरह ही जीवन हो सकता है। इस सौर मण्डल में मंगल ग्रह पृथ्वी के निवासियों के लिए सबसे ज्यादा आकर्षक भी रहा है।

मंगल ग्रह की जाँच-पड़ताल के सिलसिले में भेजे गये वाइकिंग अन्तरिक्ष यान से जो चित्र भेजे हैं उसमें एक विशाल काय बन्दर की तथा पिरामिड जैसे किसी भव्य भवन की आकृति पाई गई है। इतना ही नहीं उसके ध्रुवों पर बर्फ भी देखी गई है। मंगल ग्रह पृथ्वी से बहुत कुछ मिलता−जुलता भी है। भारतीय खगोल विद्या में ही उसे पृथ्वी का पुत्र ही माना गया है। वैज्ञानिकों की आशा का केन्द्र अब चन्द्रमा से हटकर क्षुद्र ग्रहों तथा मंगल बनता जा रहा है। क्षुद्र ग्रहों की एक बड़ी श्रृंखला मंगल और बृहस्पति के मध्य भ्रमणरत रहती है। उनमें भी समुद्री टापुओं की तरह अन्तरिक्ष में जा बसने की बात सोची जा रही है।

जीवन के उत्पन्न होने तथा विकसित हो सकने की परिस्थितियाँ अन्य ग्रहों पर भी तलाशी जा रही हैं ताकि यदि पृथ्वी का वातावरण प्रकृति प्रकोप से या मानवी दुर्बुद्धि से रहने लायक न रहे तो कहीं अन्यत्र जा बसने और मनुष्य की अपनी विकसित सत्ता का अस्तित्व बनाये रहने की कहीं गुंजाइश मिल सके। पर सन्देह इस बात का भी है कि कहीं अन्यत्र बस जाने पर भी मनुष्य पृथ्वी की तरह चैन से रह सकेगा या नहीं, साथियों को चैन से रहने देगा या नहीं?

यदि उसने प्रदूषण बढ़ाने, संसाधन नष्ट करने, अधिकाधिक उपभोग एवं अनियन्त्रित प्रजनन जैसी गतिविधियाँ वहाँ भी चालू रखीं तो भगवान से यही प्रार्थना करना चाहिए कि या तो मानव को सद्बुद्धि दे या उसके ये प्रयास असफल सिद्ध हों। कम से कम मानव द्वारा उत्पन्न वैचारिक व अन्यान्य विकृतियाँ एक ही ग्रह तक सीमित रहें तो यह कौन−सा बुरा सौदा है।


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