वृक्ष धूप, शीत सहते रहते हैं, पर दूसरों को छाया, लकड़ी और फल−फूल बिना किसी प्रतिफल की आशा के मनुष्यों से लेकर पशु−पक्षियों तक को बाँटते रहते हैं। क्या तुम इतना ही नहीं कर सकते?
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