‘यज्ञ’−ज्ञान और विज्ञान का भाण्डागार

December 1985

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सामूहिक समस्याओं के लिए जन सहयोग में सम्पन्न होने वाले यज्ञों की आवश्यकता एवं उपयोगिता तो असंदिग्ध है ही, इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत प्रयोजनों के लिए व्यक्तिगत यज्ञ सम्पन्न किये जाने के भी उदाहरण इतिहास, पुराणों में अनेकानेक मिलते हैं।

दशरथ को तीन विवाह कर लेने पर भी संतति प्राप्त नहीं हुई। उन्होंने श्रृंगी ऋषि की अध्यक्षता में पुत्रेष्टि यज्ञ कराया और एक से एक बढ़कर सुयोग्य चार सन्तानों का लाभ उठाया।

राजा द्रुपद की कन्या द्रौपदी का जन्म भी इसी प्रकार यज्ञ प्रसाद के रूप में हुआ था।

स्वयंभू मनु और शतरूपा रानी ने भगवान को अपनी गोदी में खिलाने की कामना की। इसकी पूर्ति के लिए उन्होंने यज्ञ किया जिसका पौरोहित्य मनुपुत्री इला ने किया था।

सृष्टि निर्माण का कार्य ब्रह्माजी को सौंपा गया। इसके लिए क्षमता और सामग्री की आवश्यकता हुई। इसके लिए उन्होंने यज्ञ किया और गायत्री, सावित्री दो पत्नियों को साथ लिया। गायत्री के प्रताप से क्षमता और सावित्री के अनुग्रह से आवश्यक सामग्री उन्हें प्राप्त हुई।

च्यवन ऋषि की वृद्धावस्था और अन्धता का निवारण करने के लिए एक महायज्ञ हुआ था। उसका प्रसाद एक अवलेह के रूप में प्राप्त हुआ और वे फिर से नव जीवन प्राप्त करने में समर्थ हुए।

चरक संहिता में औषधि धूम्र से अनेक रोगों के उपचार का विवरण है। गायत्री तन्त्र के एक अध्याय में विभिन्न प्रकार की कामनाओं को पूर्ण करने के लिए विभिन्न औषधियों द्वारा यजन करने का उल्लेख है।

शिव पुत्र कार्तिकेय का पालन जिन छः कृतिकाओं से मिलकर किया था वे छः स्तर की यज्ञाग्नियाँ ही थीं। कार्तिकेय उन असुरों को पराजित करने में सफल हुए जिन्हें समस्त देवता मिलकर भी हरा न सके।

रावण को जब प्रतीत हुआ कि राम को परास्त करना सरल नहीं है तब उसने अन्तिम अस्त्र के रूप में एक तान्त्रिक मख कराना आरम्भ किया था। यदि वह सफल हो जाता तो राम उसे हरा न पाते। ऐसी दशा में हनुमान ने रीछ, वानरों की सेना लेकर उस मख का विध्वंस किया था।

जन्मेजय ने अपने पिता परीक्षित के तक्षक सर्प द्वारा काटे जाने पर एक सर्प यज्ञ किया था। मन्त्र बल से सर्प करीब खिंचकर आने और कुण्ड में गिरने लगे थे। तक्षक ने इंद्रासन के साथ लपेटा लगा लिया सिंहासन समेत इन्द्र भी जब अग्नि कुण्ड में गिरने के लिए खींचने लगे तब उन्होंने जन्मेजय को जाकर समझाया और उस आयोजन को जाकर बीच में ही समाप्त कराया। तक्षक तभी बच सका।

याज्ञवल्क्य ऋषि यज्ञ विद्या के निष्णात पारंगत थे, उनने इस विज्ञान की आजीवन शोध की और छिपे रहस्यों को खोज निकाला।

राजा दक्ष भी इस विज्ञान में प्रवीण थे। वे प्रकृति रहस्यों का उद्घाटन करने के लिए एक महायज्ञ कर रहे थे। उसमें शिवजी को आमन्त्रित नहीं किया गया। इस पर उनकी पुत्री सती ने उस यज्ञ कुण्ड में ही अपने शरीर को समाप्त कर लिया था।

सौ यज्ञ पूरे कर लेने पर कोई भी कर्ता स्वर्ग सशरीर जा सकता है। नहुष इसी प्रकार पहुँचे थे। राजा बलि ने भी सौ यज्ञ किये थे। स्वर्ग पहुँचे तो उन्होंने उस उपहार के बदले यह चाहा कि भगवान मेरे दरवाजे भिक्षुक बन कर आयें। वरदान मिला और वामन भगवान बौने ब्राह्मण के रूप में उनके द्वारे थोड़ी-सी जमीन की याचना करने पहुँचे।

चक्रवर्ती भरत और राजा प्रभु के अश्वमेध यज्ञ इतिहास प्रसिद्ध हैं। वाजिश्रवा ने अपने सर्वमेध यज्ञ में अपने पुत्र नचिकेता तक को दान कर दिया था।

शुक्राचार्य असुरों के गुरु थे वे अपने यजमानों को शक्तिशाली सिद्धियाँ प्राप्त कराने के लिए अनेक तान्त्रिक यज्ञ कराया करते थे।

बालि को अजेयता यज्ञ के बल पर ही प्राप्त हुई थी। भगवान राम भी उसके सामने जाकर युद्ध जीत नहीं सकते थे। इसलिए उन्होंने ताड़ वृक्ष की ओट में छिपकर पीछे से बाण चलाया।

ऐसे−ऐसे अनेक प्रसंग अठारहों पुराणों में सहस्रों की संख्या में लिखे हुए हैं। इन सबका संकलन इन पंक्तियों में कर सकना कठिन है। पूरा अथर्ववेद इन्हीं प्रयोजनों के सूत्र संकेतों से भरा पड़ा है। आयुर्वेद उसी से निकला जिसमें शारीरिक, मानसिक और आत्मिक आधि−व्याधियों के निराकरण का विधि-विधान है। यजुर्वेद में कहा गया है कि देवताओं ने देवत्व यज्ञ का यजन करके ही प्राप्त किया।

यज्ञ ज्ञान का भण्डार है और विज्ञान का उद्गम। आत्मिक सूक्ष्म शक्तियाँ अतीन्द्रिय क्षमताओं को उसके आधार पर जगाया जा सकता है। व्यक्तित्व का परिष्कार और परिमार्जन उसके द्वारा सम्भव है। वह स्वर्ग और मुक्ति का द्वारा माना गया है।

चेतना का प्रतिनिधित्व करते हैं मन्त्र। वे शब्द रूपी प्रचण्ड शक्ति भी हैं। ताप का संयोग अग्नि के माध्यम से उसमें होता है। प्रकाश की उत्पत्ति प्रत्यक्ष ही है। भौतिक विज्ञान, ताप, शब्द और प्रकाश पर अवलम्बित है। जिन प्रयोजनों का प्राकृतिक शक्तियों के सहारे सम्पन्न किया जाना है वे सभी यज्ञीय अग्नि विद्या के सहारे हस्तगत हो सकती हैं। यज्ञ विज्ञान पर आमूल−चूल नवीनतम प्रतिपादन, अन्वेषण के परिणामों सहित आगामी बसन्त पर्व पर प्रकाशित होने वाले यज्ञ विज्ञान पर लिखे गए नये दो ग्रन्थों में पाठक पा सकते हैं।


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