डा. माम उस पुरुषार्थी का नाम है जिसने अपने बलबूते लेखक बनने का प्रयत्न किया और उसमें पूरी तरह सफल भी हुआ। उनकी एक पुस्तक की ही अब तक 15 करोड़ प्रतियाँ बिक चुकी हैं। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि उनकी लगभग 50 पुस्तकों से कितनी आय हुई। यह सारा पैसा उन्होंने अपने उत्तराधिकारियों के लिए न छोड़कर निर्धन लेखकों को सहायतार्थ एक फण्ड बनाने हेतु दान कर दिया। चूँकि वे स्वयं उन परिस्थितियों से गुजरे थे अतः वे उन कठिनाइयों को भली−भाँति समझते थे जो उनके आड़े आईं। समाज में रहते हुए यदि मात्र परिवार तक न सीमित रहकर हर व्यक्ति अन्यों के लिए ऐसा ही उदार बन जाए तो अभाव कहीं न दिखाई पड़े।