बड़प्पन का मापदण्ड

December 1985

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मनुष्य का शरीर छोटा होता है। मन छोटा नहीं होना चाहिए। भगवान वामन बारह अंगुल के थे और अष्टावक्र ऋषि आठ जगह से मुड़े होने के कारण ऊँचाई में भी बहुत छोटे थे, पर उनने अपनी प्रतिभा से संसार को चकित कर दिया।

कांगो क्षेत्र के निवासी आमतौर से बौने प्रायः चार फुट के होते हैं। पर इतने शरीर से भी वे अपने देश का सभी कारोबार संभाल लेते हैं।

ग्रन्थियों और हारमोनों में गड़बड़ी पड़ जाने के कारण कई बच्चे बौने रह जाते हैं, पर इससे उनकी मानसिक स्थिति पर बहुत प्रभाव नहीं पड़ता। वे चतुरता में बड़ों के समान ही होते हैं और अपने कद की तुलना में अधिक पुरुषार्थ करके दिखाते हैं।

संसार में बौनों का इतिहास भी मनोरंजक और आश्चर्यजनक है उनमें से कितनों को ही असाधारण श्रेय मिला है।

ब्रिज पोर्ट में सन् 1838 में जन्मा टाम थम्ब संसार का सबसे छोटा और प्रख्यात बौना था। उनका वजन 24 कि. ग्रा. और कद 3 फुट से कुछ कम था। वह बड़ा हंसोड़ और चतुर था। एक म्यूजियम के मालिक बार्नम की सहायता से उसने विश्व भर में 24 हजार मील की यात्रा की। इस अजूबे को देखने आने वाले लोग उसे कुछ न कुछ पैसा देते थे उसने अपने ही जितने कद की एक अध्यापिका लैविनिया से विवाह किया। उसके विवाह में 2000 अमेरिका के संभ्रान्त व्यक्ति शामिल हुए।

रोम के सम्राट डोमेटिसियन को अपने दरबार में बौने रखने का बहुत शौक था। 2 फुट से कम के बौनों की उनने एक बड़ी सेना बनाई थी।

रूस के सम्राट जार पीटर को भी बौने पालने का ऐसा ही शौक था, उनने अपनी एक बौनी नौकरानी का विवाह उसी की लम्बाई के एक बौने से किया था, जिसमें 72 बौने बराती आये थे।

इंग्लैंड का जेफरी हडसन जासूसी के लिए नियुक्त किया गया था। वह 14 वर्ष की आयु में मात्र 22 इंच का था। उन्हीं दिनों एक दूसरा बौना गित्सव 3 फुट 10 इंच का था। बहुत प्रख्यात हुआ।

फ्राँस का एक नन्हा जासूस रिश बौर्ज बादशाह के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण जासूसी करता था। वह क्रान्तिकारियों की गतिविधियों की सारी गुप्त सूचनाएँ एक महिला की गोद में छोटे बच्चे की तरह छिपकर पहुँचाता था।

मैक्सिको की एक लड़की लूतिया जाकेत सन् 1854 में जन्मी उसका कद 20 इंच और वजन 3 कि. ग्रा. था। जर्मनी की एक यहूदी लड़की लियाग्राफ मात्र 21 इंच की थी। रूस के जार पीटर ने बौने के लिए एक छोटा नगर ही बसाया था। सन् 1939 में न्यूयार्क नगर में बौनों का एक विश्व खेल हुआ था। मिकू बौने का कद 18 इंच और वजन 14 ग्राम था।

इन बौनों को आश्चर्य से अवश्य देखा जाता है पर उनने कोई ऐसा काम नहीं किया जिससे उन्हें बुद्धिहीन या आदर्शहीन कहा जा सके। इसके विपरीत कितने ही ऐसे आदमी हुए हैं जिनके पास प्रचुर साधन थे, पर उन्हें बड़प्पन की शेखी लूटने के लिए निरर्थक कामों में लगाते रहे। बुद्धिमान सोचते हैं कि यदि उन साधनों का सदुपयोग हुआ होता तो कितना अच्छा रहता।

मिश्र शासन का खजांची ऊँट पर सवार होकर मक्का गया। रास्ते में ऊँट के पैर जहाँ−जहाँ पड़े वहाँ वह एक−एक गिन्नी रखवाता गया। इस प्रकार उसने 20 लाख डालकर मूल्य का सोना बखेरा। वह जिसके भी हाथ लगा वह उठा ले गया। ऐसे मन्द बुद्धि सनकी दुनिया में अनेकों हुए हैं।

ल्हासा तिब्बत के पोटीला महल में 13 वें दलाईलामा की कब्र है। जो 70 फुट ऊँची है और सोने से ढकी हुई है। इसमें उसकी इच्छानुसार एक टन सोना लगा हुआ है। जो 10 लाख डालकर मूल्य का है।

सबसे भारी घण्टा जार कोलोकोल द्वारा सन् 1775 में ढाला गया घंटा है जिसका वजन 196 टन तथा व्यास 6 मीटर तथा ऊँचाई 16 फुट 3 इंच है। इसके बाद मांडले वर्मा का मिगुन नामी घण्टा है जो 61 टन भारी और 16 फुट ऊँचा है।

जब पिरामिड बनाने का शौक मिश्र के समीपवर्ती शासकों को चर्राया तो छोटे−मोटे संभ्रांत भी पीछे न रहे। पश्चिमी अफ्रीका के एक माओ शासक मुहम्मद अश्किया ने भी अपने जीवन काल में एक भौंड़ा पिरामिड बनवाया। यों उसमें ढेरों त्रुटियाँ थीं फिर भी वह उस निर्माण की प्रशंसा करते−करते न अघाता था।

गीजा पिरामिड (मिश्र) 451 फुट ऊँचा एवं इसका क्षेत्रफल 13 एकड़ है। 4 हजार मजदूर 30 वर्ष तक इसमें काम करते रहे। अनेकों व्यक्तियों की अकाल मृत्यु हुई, उन्हें भी इसी की नींव में दफना दिया गया।

रोम के बादशाह ओरेलियनिम के दरबार में एक ऐसा पेटू था जो देखते−देखते दस व्यक्तियों का भोजन चटकर जाता था।

दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन नगर में एक मलायन लकड़हारा ऐसा था जो 16 मनुष्यों का भोजन अकेला ही शर्त बदलकर खा जाता था। साधारण खुराक तो उसकी कम ही थी।

बड़प्पन की अभिलाषा स्वाभाविक एवं उचित है। पर उसका औचित्य तभी है जब वह दूसरों के सामने ऊँची आदर्शवादिता का परिचय दे, अन्यथा पहाड़ की ऊँची चोटियों पर चढ़ने की तरह अपना पैसा और श्रम समय गँवाने से क्या लाभ? निरुद्देश्य के कामों में संलग्न होकर कई व्यक्ति अपना बड़प्पन सिद्ध करने की कोशिश करते हैं। चापलूसों द्वारा तात्कालिक बड़ाई के अतिरिक्त उन्हें कोई ऐसा लाभ नहीं मिलता जिसके लिए इतिहासकार उनका स्वर्णाक्षरों में उल्लेख कर सकें।

इस सस्ते बड़प्पन की तुलना में मनुष्यों, प्राणियों या निर्जीव समझे जाने वाले संस्थानों की अधिक महत्ता है जो अपनी उपयोगिता सिद्ध करते हैं अथवा दूसरों के सामने अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

बेसेन डीन आस्ट्रेलिया का दि चर्च आफ क्राइस्ट 1 दिन में 120 स्वयंसेवकों द्वारा खड़ा किया गया था और दूसरे दिन उसमें धर्मोत्सव सम्पन्न हुआ। यह घटना 4 जनवरी 1913 की है।

प्राचीन यूनान की एक खण्डहर पड़ी पूजा वेदी का इस देश के निवासियों ने उस खण्डहर को उन्हीं पुराने पत्थरों से नये सिरे से निर्माण किया अन्तर केवल इतना किया गया कि कुछ सीढ़ियाँ कम रखीं गई और कुछ ऊँचाई भर कम रखी गई। इस कारण उसमें नया पत्थर नहीं लगाना पड़ा पुराने से ही काम चल गया।

सपने में देखे भवन की आकृति को यथावत् बना देने का निश्चय फ्राँस के एक देहाती किसान की लगन यथावत् बनी रही। उसने अपने सारे साधन झोंककर 27 वर्ष में वह भवन तैयार किया।

आवश्यकता पड़ती है तो मनुष्य को बड़प्पन का पाठ पशु भी पढ़ा देते हैं। न्यू फाउण्डलैण्ड के समुद्र तट पर एक छोटा जहाज पानी में डूबा। उसके सभी सवारों को एक कुत्ते ने मुँह में रस्सी दबाकर दूसरा सिरा पकड़ने वाले सभी नाविकों और कर्मचारियों को किनारे से लगा दिया।

द्वितीय महायुद्ध को अनैतिक बताने के अपराध में एरी (इंग्लैंड) का एक व्यक्ति था गिल्वर्ट लेन। उसे 31 मास नजरबंदी और 183 दिन जेल में काटने पड़े। स्वयं कष्ट सहकर भी अपने उचित विचारों की अभिव्यक्ति में जो सुदृढ़ रहे उन्हें भी बड़प्पन की आंखों से ही देखा जायेगा। बड़प्पन की कोई सुनिश्चित कसौटी नहीं बनाई जा सकती, नहीं किसी फितुरी काम से अपना नाम उस श्रृंखला में जोड़ा जा सकता है।


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