नालन्दा विश्वविद्यालय में देश−देशान्तरों से विद्यार्थी पढ़ने आते थे। उन दिनों चीन का एक विद्यार्थी भी था। ह्वेनसाँग कई वर्ष पढ़ने के बाद बहुत-सा बौद्ध साहित्य लेकर अपने देश वापस लौट रहा था। नदी पार कराने के लिए विद्यालय के कुछ छात्र भी साथ में गये।
नाव भारी हो गयी थी। लगने लगा कि वह डूबेगी। मल्लाह ने कहा यह साहित्य वाला बोझ नदी में डाल दो तो ही नाव पार लगेगी अन्यथा डूबेगी।
ह्वेनसाँग इतने परिश्रम से उपलब्ध हुये साहित्य को छोड़ना नहीं चाहता था। इस असमंजस को दूर करने के लिए विश्वविद्यालय का एक छात्र नदी में कूद पड़ा। उसका त्याग देखकर सभी दंग रह गये।