मिस्र के सन्त घुननून एक बार नदी किनारे शौच से निवृत्त होने गये। उन्हें छत्त पर खड़ी एक राजकुमारी देख रही थी। सन्त ने भी उन्हें देख लिया और नमाज से निवृत्त होकर उस युवती के महल के नीचे जा पहुँचे और पूछा− ‘‘क्या मुझसे कुछ पूछना है?”
राजकुमारी ने कहा− ‘‘अब कुछ नहीं पूछना। जो पूछना था उस सबका जवाब मिल गया। नदी तट पर शौच करते देखकर समझा कि यह कोई पागल है। पर जब पानी लिया तो जाना कि इसमें अक्ल है। पागल नहीं। नमाज पढ़ी और सही उच्चारण किया तो समझा कि यह कोई शास्त्रज्ञ है। मेरी ओर देखा तो समझा कि कोई धर्मोपदेशक हैं जो मुझे राह बताना चाहते हैं। पर जब तुम मुझे निहार रहे हो तो प्रतीत होता है कि तुम इनमें से कुछ नहीं संसारी प्रवृत्तियों से घिरे हुए और सन्त का वेष धारण किये साधारण मनुष्य हो और मनुष्य की दृष्टि में तो हर नारी अबला है−भोग करने योग्य गुड़िया भर है। सन्त का अहंकार जल गया।