खलीफा हारुन अल रशीद की यह इच्छा हुई कि राज्य में घूमकर यह देखा जाये कि जनता सुखी है कि नहीं? राज्य-कर्मचारी कानूनों के पालन में किसी प्रकार से बाधक तो सिद्ध नहीं हो रहे हैं। एक दिन खलीफा घोड़े पर सवार होकर अपने मन्त्री को साथ ले बगदाद शहर का निरीक्षण करने निकले। एक विशाल भवन पर ‘मदरसा अब्बासिया’ का बोर्ड देखकर खलीफा ने मन्त्री से पूछा- ‘क्या हमारे शहजादे अमीन व मामून इसी मदरसे में तालीम लेने आते हैं?’ मन्त्री के हाँ करने पर खलीफा घोड़े से उतरकर उस मदरसे में घुस गये। अन्दर जाकर उन्होंने देखा कि सफेद दाढ़ी वाला एक वृद्ध अपने हाथ से पानी लेकर हाथ-मुँह धो रहा है।
उस वृद्ध ने खलीफा को सलाम किया। यह वृद्ध उन दोनों शहजादों के उस्ताद थे। उस्ताद के सलाम का उत्तर देते हुए खलीफा ने कहा- ‘मैं आपके मदरसे का मुआयना करने आया था, पर दुःख है कि आपके मदरसे की तालीम ही अधूरी है। मैंने अभी देखा कि आप नमाज पढ़ने के लिये हाथ-मुँह धो रहे थे, उस समय शागिर्दों का यह फर्ज था कि वे आपके लिये पानी लाते और स्वयं आपके पैर धोते। उस्ताद का स्थान सबसे ऊँचा होता है, उसकी सेवा करना प्रत्येक शागिर्द का फर्ज है। मुझे दुःख है कि इतनी वर्षों में भी मेरे शहजादों को सेवा का यह छोटा-सा पाठ भी आप न पढ़ा सके।’