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September 1970

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संसार धूल को अपने पैरों के नीचे रौंदता है पर सत्य ढूंढ़ने वाले को इतना नम्र होना चाहिये कि वह धूल भी उसे रौंद सके।

-”माइण्ड आफ महात्मा गाँधी से”

वह मेरा पूर्व जन्म में शिष्य था, साधना अधूरी रह गई है अब मैं फिर उसे लोक-मंगल के लिये साधना और तप कराना चाहता हूँ पर उसकी पूर्व जन्मों की स्मृतियों सो गई हैं इस जनम के संस्कार और परिस्थितियाँ उसे खींचती हैं इसलिये वह साधना में आरुढ़ नहीं हो पा रहा। मैंने उसे प्रेरणा देकर बुलाया है वह आया और निर्देशित स्थान न पा सका तो उसे भ्रम होगा और मैं जो चाहता हूँ वह न हो पायेगा इसलिये आप वह स्थान तुरन्त खाली कर दें।

श्री फैरेल ने कहा- भगवन् आप मुझे भी अपने पूर्व जन्मों की कुछ बातें बतायें? इस पर साधु बोले-बेटा! यह सिद्धियाँ तमाशे के लिये नहीं होतीं, इनका एक प्रयोजन है उसी में खर्च किया जाना उचित है, हाँ यदि तुम चाहो तो उस लड़के के पूर्व जन्म का विवरण दिखाते समय उपस्थित रह सकते हो। बस अब जाओ? खेमे में तुम्हारे लिये हलचल मच रही है मुझे भी जल्दी है। श्री फैरेल जहाँ-जहाँ गये थे वापस लौट आया। यहाँ सचमुच उनकी तीव्रता से खोज हो रही थी। श्री एल.पी. फैरेल ने सारी बातें राजा साहब को बताई और वह स्थान छोड़कर खेमे को 200 गज दूर कर लिया।

सायंकाल होने तक एक युवक सचमुच इधर-उधर कुछ देखता हुआ सा उस स्थान में आ पहुँचा। सब ओर से तसल्ली कर वह युवक वहाँ बैठ गया तब तक श्री फैरेल भी वहाँ पहुँच गये, उनकी जिज्ञासायें तीव्र हो रही थीं, साधु भी थोड़ी ही देर में वहाँ आ पहुँचे। श्री फैरेल और युवक दोनों ने उन्हें प्रणाम किया। और आदेश की प्रतीक्षा में खड़े हो गये।

वह स्थान पेड़ों की झुरमुट में था। उसकी सफाई की गई। अग्नि जलाकर साधु ने कुछ पूजा की, मन्त्र पढ़े और एक स्थान में हमको बैठा लिया। अब तक चारों ओर पूरी तरह अँधेरा छा चुका था।

साधु ध्यानावस्थित होकर बैठ गये। उनके मस्तिष्क से प्रकाश की रेखा फूटीं और एक वृक्ष के मोटे तने पर गोलाकार बिम्ब उभर उठा-फिर उसमें जो कुछ देखा वह बिलकुल ठीक सिनेमा की तरह व्यवस्थित चलता फिरता बोलता नाटक सा था। जिसमें उस युवक के पूर्व जीवन की अनेक घटनायें ठीक चलचित्र जैसी ही प्रत्यक्ष आँखों से दिख रही थीं। बीच-बीच में वह युवक कुछ उत्तेजित सा हो उठता था, हाँ-हाँ यह सब मैंने ही किया है ऐसा बोल पड़ता था। उसकी मृत्यु तक की सारी घटनायें श्री फैरेल ने भी देखीं तो वे भारतीय दर्शन की इस महानतम उपलब्धि से इतने प्रभावित हुये कि अपना सारा जीवन और अपने संस्कार ही बदल कर उन्होंने अपने को पूरा भारतीय बना लिया।

युवक ने अन्त में साधु को प्रणाम कर कहा-”भगवन्! अब मेरा मोह टूट चुका है, मैं अपनी छोड़ी हुई साधना और कठिन तपश्चर्या के लिये पुनः तैयार हूँ आप मुझे रास्ता दिखाइये ताकि मैं उस छोड़े हुये अधूरे कार्य को पूरा कर सकूँ।”

साधु ने कहा-बच्चे, आज तुम यहीं विश्राम करो प्रातःकाल घर लौट जाना। फिर उचित समय पर मैं अपने आप तुम्हें बुला लूँगा। श्री फैरेल के जीवन में यह दूसरी घटना बड़ी भारी घटना थी, जिसने उन्हें भारतीय तत्वज्ञान की प्रामाणिकता का बोध कराया। वे इसके बाद यह नहीं जान सके कि वह युवक कब साधना के लिये बुलाया गया। बाद में वह कौन हुआ, किस नाम से विख्यात हुआ क्या काम किया पर उन्होंने जो कुछ देखा उसको लेकर वे हिन्दुस्तान से इंग्लैंड तक भारतीय धर्म और अध्यात्म के गीत गाते रहे। इस घटना की पुष्टि अपने एक लेख में स्वयं श्री फैरेल ने 17 मई 1959 के साप्ताहिक हिन्दुस्तान में भी की थी।


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