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September 1970

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सूर्य प्रतिदिन निकलता है और डूबते हुए, आयु का एक दिन छीन ले जाता है। पर माया-मोह में डूबे मनुष्य समझते नहीं कि उन्हें यह बहुमूल्य जीवन आखिर क्यों मिला?

-महाभारत

शास्त्राकार की इन बातों को समझने और अवगाहन करने के लिये यद्यपि यौगिक साधना पद्धतियाँ विकसित हुई हैं। प्राण की अनुभूति के लिये ही अनेक प्रकार के योगों का आविर्भाव हुआ। प्राचीन काल में इस देश के निवासियों ने प्राण तत्व पर एक प्रकार से अधिकार ही कर लिया था। इसलिये हम भारतीय विश्व की सर्वसमर्थ जाति बन सके थे। ज्ञान-विज्ञान हमारी मुट्ठी में था-वह इस शक्ति का ही चमत्कार था।

प्राण को ही विवेकानन्द ने ‘लेटेन्ट हीट’ या ‘साइकिफोर्स’ कहा है। अर्थात् चेतना को धारण करने वाली शक्ति ही प्राण है। प्राण शब्द की व्युत्पत्ति ‘प्र’ उपसर्ग पूर्वक ‘अन्’ धातु से है। ‘अन्’ धातु जीवन शक्ति एवं चेतना वाचक है। इसलिये प्राण शब्द का अर्थ चेतन शक्ति के लिये किया गया है।

यह प्राण सूर्य की ही देन है अर्थात् विश्व में जितने भी प्राणी हैं, वह सूर्य का ही तेज धारण किये हुए हैं-समस्त चेतना सूर्य की ही है, क्योंकि यह प्राण सूर्य से ही आता है। उपनिषद् कहती है-

यथाग्नेः क्षद्रास्फुल्लिंग व्युच्चरन्त्येव मेवास्पाद्वात्मनः सर्व प्राणाः।

-वृहदारण्यक 2/1,2,20

अर्थात् जैसे अग्नि से छोटी-छोटी चिंगारियाँ निकलती हैं, वैसे ही इस आत्मा से समस्त प्राण निकलते हैं।

आत्मा की व्याख्या में शास्त्राकार ने बताया-

यौ असौ आदित्य पुरुषः सो असौअहम्।

-यजुर्वेद 40/17

अर्थात्- उस सूर्य मण्डल में जो पुरुष है, वही मैं हूँ। स

सूर्य आत्मा जगतः तस्थुष च।

-ऋग्वेद 1/125/1

इस समस्त विश्व की आत्मा सूर्य है। इस सब का तात्पर्य यह हुआ कि अग्नि की चिंगारी के समान प्राण सूर्यलोक से स्फुरित होता हैं और वही वृक्ष, वनस्पति, नदी, नद और वायुमण्डल के माध्यम से गमन करता हुआ सृष्टि के अनेकों जीवों के रूप में दिखाई पड़ने लगता है। इसी से कहते हैं-यह जो कुछ चेतना है वह सब एक ही आत्मा-सूर्य या सविता है। प्रकाश के रूप में आने वाली उसी की प्राणशक्ति (सूर्य के प्रकाश में विद्युत, ऊष्मा और गति तीनों ही होते हैं यही प्राण के भी गुण हैं इसलिये प्राण और सूर्य के प्रकाश में कोई अन्तर नहीं हैं) से पृथ्वी पर जीवन का आविर्भाव हुआ। हम स्थूल क्रियाओं, इन्द्रिय भोगों और पदार्थों तक ही सीमित न रहकर इस प्राण स्फुल्लिंग की शोध करते, तो निश्चय ही सूर्य की विराट आत्मा की वैसे ही प्राप्ति और अनुभूति करते जैसे हमारे यहाँ योगी-यती और भक्तगण गायत्री आदि उपासनाओं से प्राप्त करते रहे हैं।


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