सम्पूर्ण दृश्य प्रकृति सूर्य-प्रकाश की अनुकृति

September 1970

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भारतीय तत्व-दर्शन में सूर्य को सर्वाधिक महत्व दिया गया है। सृष्टि के आदि में सबसे पहले सूर्य ही उत्पन्न हुआ इसीलिये उन्हें ‘आदित्य’ भी कहते हैं। उनसे ही सर्वप्रथम ‘मनु’ अर्थात् मानवीय चेतना की उत्पत्ति हुई और दृश्य-प्रकृति भी। संसार में आत्मा रूप से, जो कुछ भी विद्यमान है, उसमें सूर्य का ही प्राण और प्रकाश काम करता है। मन, प्राण और वाक् नाम से विख्यात वेदों की ‘त्रयी विद्या’ और कुछ नहीं-सूर्य शक्ति का ही सूक्ष्म और स्थूल विवेचन है-

सर्वकारण भूताय निष्ठायैज्ञानचेतसाम्।

नमः सूर्यस्वरूपाय प्रकाशात्मस्वरूपिणौ।

भास्करायनमस्तुभ्यं तथा दिनकृतेनमः॥

-मार्कंडेय पुराण 70/5-6

अर्थात् हे सूर्य भगवान! आप ही ज्ञान चित्त वाले पुरुषों के लिये निष्ठा स्वरूप तथा सर्वभूतों के कारण स्वरूप हैं। आप ही सूर्यरूपी प्रकाश और आत्मरूपी भास्कर हैं। आप दिनकर को नमस्कार है।

इन पंक्तियों में सूर्य का जो वर्णन किया है, उससे दो बातें ज्ञात होती हैं- (1) सृष्टि में जो चेतना है, वह सूर्य का ही प्राण और प्रकाश है तथा (2) सम्पूर्ण दृश्य प्रकृति अर्थात् वृक्ष, वनस्पति, समुद्र, नदियों और सौर-मण्डल के दूसरे ग्रह-नक्षत्र वह सब सूर्य के द्वारा ही उपजे और गतिमान हैं। सूर्य ही संपूर्ण दृश्य प्रकृति की आत्मा है।

गायत्री महाविज्ञान वस्तुतः सूर्य का ही विवेचन है। उसमें आधिदैहिक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होने की जो बातें कही गई हैं, वह वस्तुतः सूर्य की दृश्य-अदृश्य शक्तियों की वैज्ञानिक शोध ही है। प्रयोगों का तरीका भिन्न है। मानसिक-ध्यान का है, पर उसकी वैज्ञानिकता में बिल्कुल सन्देह नहीं है। आज के वैज्ञानिकों ने जो खोजें की हैं वह इन बातों को अक्षरशः पुष्ट कर सकती हैं।

वनस्पति शास्त्र (बाटनी) और कृषि शास्त्र (एग्रीकल्चर) के जानने वाले लोगों को मालूम है कि पृथ्वी पर जितने भी पेड़-पौधे दिखाई दे रहे हैं, वह सब सूर्य के अस्तित्व में होने के कारण ही हैं। सूर्य न होता, तो वृक्ष-वनस्पति का नाम भी न होता और शायद जीवन नाम की कोई वस्तु भी न होती। जिस प्रकार मकड़ी अपने पेट से धागे निकालती और अपना जाल बुनती रहती है, उसी प्रकार सूर्य-गर्भ से निकला हुआ प्रकाश ही सृष्टि का ताना-बाना बुनता रहता है। जब तक सूर्य है तब तक सृष्टि है। जिस दिन उन्होंने अपनी माया समेटी, उसी दिन सृष्टि का अन्त हुआ।

वनस्पति का 95 प्रतिशत भाग सूर्य से विकसित होता है। प्रकाश शक्ति का जिस क्रिया से रासायनिक शक्ति (केमिकल एनर्जी) में रूपांतर होता है, उसे विज्ञान में बड़ा महत्व दिया गया है। इस क्रिया को प्रकाश-संश्लेषण (फोटो सिन्थेसिस) कहते हैं। ऐसा जान पड़ता है कि वृक्ष-वनस्पतियाँ पृथ्वी से पोषण और जीवन तत्व प्राप्त करती हैं, पर यथार्थ यह नहीं। पृथ्वी से तो कुल 5 प्रतिशत विकास सामग्री ही उन्हें प्राप्त होती है।

हाइड्रला प्लान्ट परीक्षण से यह बात पूरी तौर पर सिद्ध हो गई है। हाइड्रला पानी में पाई जाने वाली एक प्रकार की घास-सेवार-को कहते हैं। उसे एक प्रकार के बर्तन में रखते हैं। ऊपर से जल से भरी हुई परीक्षण-नली (टेस्ट्यूब) लगाकर रखते हैं। इस यन्त्र को यदि विद्युत् के प्रकाश में रखें, तो कोई रासायनिक क्रिया नहीं होती। किन्तु जैसे ही उसे सूर्य के प्रकाश में लाते हैं, प्रतिक्रिया आरम्भ हो जाती है। सेवार जल ग्रहण करने लगता है और परीक्षण नली के ऊपरी सिरे पर बुलबुले उठने लगते हैं। इससे सिद्ध होता है कि प्रकाश न हो, तो वृक्ष-वनस्पति का थोड़ा भी विकास नहीं हो सकता। किसी पौधे को डिब्बे में बंद करके इस तरह रख दिया जाये कि उसमें सूर्य के प्रकाश की किरणें बिल्कुल न पड़ें तो वह पौधा बढ़ेगा नहीं, पीला पड़ कर मुरझा जायेगा। पर यदि उसे फिर धूप में ले आयें, तो उसमें फिर से हरियाली आ जायेगी।

प्रकाश-संश्लेषण की यह क्रिया न केवल पौधों के विकास में सहायक होती है वरन् उससे सृष्टि में एक ऐसी प्रक्रिया का निर्माण हो रहा है, जिससे मनुष्य और दूसरे जीवधारी भी प्राण धारण किये रहने में समर्थ हैं। यदि प्रकाश संश्लेषण न हो रहा होता, तो मनुष्य का जीवित बना रहना संभव न होता। सूर्य से वृक्ष-वनस्पतियों और वनस्पतियों से मनुष्य जाति के सहयोग की यह पद्धति सचमुच बड़ी महत्वपूर्ण है। यदि उसे विराट् रूप से देखें या अनुभव करें तो पता चलता है कि संपूर्ण सृष्टि में जीवन के अनेक रूप होते हुए भी एक ही-प्रकाश की-यह प्रक्रिया काम कर रही है। यदि वह ठप्प पड़ जाये, तो संपूर्ण जीवन-प्रवाह रुक जाये।

पेड़ों की पत्तियों के निचले खुरदरे भाग में अति सूक्ष्म छिद्र जिन्हें ‘रन्ध्र छिद्र’ (स्टोमेटा) कहते हैं, एक प्रकार से श्वास नलिका या रसोई घर का काम करते हैं। यह रन्ध्र छिद्र सूर्य-प्रकाश में हवा की कार्बन डाइ ऑक्साइड (यह एक प्रकार की दूषित गैस है, जो मनुष्य की साँस, मल-मूत्र और धुआँ आदि से निकलती रहती हैं) खींचते हैं। जड़ें पानी लेकर पत्तियों में पहुँचाती हैं। सूर्य-प्रकाश कणों की उपस्थिति क्लोरोफिल (यह पेड़-पौधों का हरा वाला भाग है) के साथ पानी और कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बोहाइड्रेट बनाते है। यह प्रक्रिया पत्तियों के ‘मेजोफील’ नामक स्थान में होती है। कुछ अंश पानी का बच जाता हैं, वह इस पकाये हुए भोजन को सारे शरीर में पहुँचाता है। इस तरह इस पके हुए अन्न में मिले सूर्य द्वारा प्रकीर्ण (रेडिएन्ट) प्रकाश के कण ही पौधे में जीवन, गति और विकास की प्रक्रिया को चलाते रहते हैं। इस रासायनिक क्रिया में ऑक्सीजन (यह गैस मनुष्य को जिन्दा रहने के लिये आवश्यक है) गैस बच रहती है। पत्तियाँ उसे उसी तरह निकाल देती है, जिस तरह हम गन्दी साँस निकालते हैं। इस तरह प्रकाश के द्वारा ही हमारी गंदी साँस पौधे खाते हैं और हमारे लिये शुद्ध वायु तैयार करते रहते हैं। परस्पर सहयोग का, त्याग और सेवा का इससे अच्छा दूसरा उदाहरण संसार में न मिलेगा।

हम अनुभव नहीं करते अन्यथा हमारे शरीर में जो प्राण और चेतना विकसित होती है वह सूर्य की इस अदृश्य प्रकाश शक्ति का ही प्रतिफल है। यह प्रकाश-कण चाहे सीधे मिलते हों अथवा अन्न के द्वारा, बात एक ही है। अन्न, फल, फूल, पत्ते जो कुछ भी खाते हैं उनमें यह प्रकाश-कण ही सोखे हुए रहते हैं। वैज्ञानिकों का तो यहाँ तक कहना है कि कोयला आग पकड़ते ही धधकने लगता है-इसका कारण भी कोयले में सूर्य-प्रकाश कणों की उपस्थिति होती है। सूर्य द्वारा प्रकीर्ण प्रकाश प्राण विद्युत् में किस प्रकार परिवर्तित होकर मनुष्य शरीर में पहुँचता है। इसका विस्तृत विवेचन वायु तत्व की व्याख्या में करेंगे।

वैज्ञानिक सूर्य प्रकाश की स्थूल गतिविधि को ही अब तक जान सके हैं। हमारा मानसिक संबंध भी सूर्य से है और उसे शब्दों (मन्त्र) के द्वारा अनुभव किया जा सकता है। अभी इस बात को वैज्ञानिक नहीं जान पाये, पर भारतीय योग द्वारा मिलने वाले अनेक चमत्कारिक लाभों का रहस्य यही है कि हम अपनी आत्मा अर्थात् सूर्य की अक्षय शक्ति से संबंध स्थापित कर लेते हैं और उस शक्ति का मनमाना उपयोग कर सकने की स्थिति में हो जाते हैं। गायत्री सिद्ध इसी रहस्य का उद्घाटन और प्राप्ति ही है। प्राणी शब्द ‘प्राण’ से बना है। जिसमें प्राण है वही प्राणी है चाहे वह मनुष्य हो, पशु या पक्षी हो। प्राण इस प्रकार से एक स्वतन्त्र सत्ता है जो इन्द्रिय आदि शारीरिक अवयवों से भिन्न होती है। सृष्टि में जो कुछ भी दिखाई देता है वह प्राण की उत्पत्ति है। इसलिये प्रश्नोपनिषद् में कहा है-

स प्राणमसृजत प्राणच्छ्रद्धाँ खं वायु ज्योतिरूपः पृथिविन्द्रियः मनोऽन्नम्।

-प्रश्नोपनिषद् 6/4

अर्थात्- परमात्मा ने प्राण उत्पन्न किया। प्राण से श्रद्धा, बुद्धि, आकाश, वायु, तेज, जल, पृथिवी, इन्द्रियाँ, मन और अन्न सब बने।


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