सामने एक व्यक्ति हाथ में बंदूक लिये खड़ा है, सम्भव था वह गोली मार देता पर यह कोई कायर और कमजोर व्यक्ति नहीं था जो भय से काँपने लगता, या धैर्य सन्तुलन खोकर वहाँ से भाग खड़ा होता, वह वनराज सिंह का परिवार था जो किसी भी भय या आशंका के होते हुये अपना भोजन मस्ती से कर रहा था। उस परिवार के छोटे-छोटे बच्चों को भी कोई डर नहीं था कि यहाँ कोई शत्रु उपस्थित है और वह किसी भी क्षण गोली दाग सकता है।
यह कोई बोस्ताँ, गुलिस्ताँ अथवा पंचतंत्र की काल्पनिक कथा नहीं वरन् “द पिटीलेस जंगल” के विश्व विख्यात लेखक और महान् अन्वेषी सिने-निर्माता डॉ. ब्रोम के जीवन की एक सत्य घटना है। ब्रोम सिने-निर्माता के रूप में इसलिये प्रख्यात हुये कि उन्होंने घिसी-पिटी कहानियाँ दोहराने का भारतीय निर्माताओं का सा अन्धानुकरण नहीं किया। उनका प्रत्येक चित्र नई-नई जानकारियों और प्रेरणाओं से ओत-प्रोत हुआ करता था। उसके लिये डॉ. ब्रोम अपने जीवन को संकट में डालकर भी प्रकृति के अनेक रहस्य सप्रमाण एकत्रित करते और उन्हें दर्शकों को प्रस्तुत किया करते थे।
प्रस्तुत घटना भी इसी तारतम्य की एक महत्वपूर्ण कड़ी है जो प्रकृति के इस निर्मम सत्य “वीर भोग्या वसुन्धरा” का प्रतिपादन करती है। काँगोली डॉ. ब्रोम ने एक बार सिंह के पारिवारिक जीवन का चित्रण करने का निश्चय किया। यह एक महान दुस्साहसिक कार्य था इसमें उनके प्राण जा सकते थे पर उन्होंने परवा नहीं की और यह दिखा दिया कि सफलता, सत्य और समृद्धि के हीरे-मोती तो अपने आपको जान-बूझ कर कठिनाइयों के हवाले करके ही उपलब्ध होते हैं।
प्रसिद्ध इतिहासज्ञ श्री लिविंरस्टन और मा. स्टेनले ने अफ्रीका की खोज जिस रास्ते से की वह एक अति दुर्गम और भयानक क्षेत्र है। वहाँ का जंगल इतना बीहड़ है कि किन्हीं-किन्हीं स्थानों में झाड़ियों और वृक्षों के कारण दिन में भी प्रकाश नहीं जाता। शेर, बाघ, चीते, जिराफ, हाथी, गैंडे, लकड़बग्घे, वनमानुष, गोरिल्ले वहाँ उन्मुक्त विचरण करते हैं। वहाँ पहुँचने वाला कोई भी रास्तागीर इनसे भेंट किये बिना आगे नहीं बढ़ सकता। डॉ. ब्रोम का साहस ही था जो उन्हें वहाँ तक खींच कर ले गया।
डॉ. ब्रोम अभी कार से आगे बढ़ रहे थे तभी उन्हें कुछ आहट सुनाई दी। उन्हें लगा यहाँ कोई जानवर है। कार में बैठे-बैठे ही उन्होंने दृष्टि इधर-उधर दौड़ाई तो सामने से एक भूरी खाल और चमकदार बालों वाला सिंह आता दिखाई दिया। अपनी झाड़ी से निकल कर वह अपनी बैठक की ओर मस्त चाल से बढ़ रहा था। थोड़ी ही देर में पास की एक दूसरी झाड़ी से दूसरा सिंह निकला यह बूढ़ा शेर था पर उसके शरीर की मस्ती और चुस्ती अभी तक नहीं गई थी। उसकी चाल-ढाल कहती थी कि हमने जीवन भर प्राकृतिक जीवन जिया है, संयम बरता और स्वास्थ्य को बनाये रखा है। उसी का प्रतिफल है कि बूढ़ा हो गया हूँ तो क्या घिसट नहीं रहा, अब भी जीवन में भरपूर मस्ती है।
जहाँ ऐसी समर्थता है कायदे कानून सेवा और अनुशासन भी सचमुच वहीं पनपते हैं। एक बार डॉ. ब्रोम ने भी प्रकृति के इस कठोर सत्य को तब स्वीकार किया जब उन्होंने देखा कि दोनों सिंहों के पीछे दो सिंहनियाँ आज्ञाकारिणी सेवक की भाँति कुछ ही समय पहले किये मृगों के दो शिकार मुँह में दाबे निकल पड़ी और वे भी उधर ही चल पड़ीं जिधर दोनों सिंह अपना-अपना आसन जमा चुके थे। शिकार उनके सामने जा रक्खा और स्वयं भी अपने-अपने स्थानों में बैठ गईं।
जिस परिवार में बच्चे न हों, वहाँ हंसी-खुशी कैसी? पर बच्चे भी दर्जनों की संख्या में नहीं दो या तीन बस सिंहों जैसे। दो शेर दो शेरनियाँ और तब तक वहाँ फुदकते हुए तीन बच्चे भी जा पहुँचे। पूरा परिवार इकट्ठा हो गया। आज संगठन की महत्ता को हम भूल रहे हैं पर जंगल में वह सब कुछ यथावत् चलता रहता है जो कुछ सीखकर हम भारतीयों ने कभी अपना जीवन प्रकृति के ढाँचे में ऐसा बढ़िया ढाला था कि हमारी शक्ति, सामर्थ्य शौर्य, समृद्धि और स्वाभिमान के सामने संसार का कोई भी देश टिक नहीं पाता था आज का जीवन भगवती प्रकृति के आचरण की अनुकृति न होकर विपरीत सा हो गया है तभी तो हम असहाय, असमर्थ, रोग-शोक में डूबे हुये, सब ओर से कायर कमजोर दिखाई दे रहे हैं।
डॉ. ब्रोम का मूवी कैमरा बराबर चित्र ले रहा था सिंह परिवार यह सब देख रहा था। उन्हें यह भी पता था कि इस अजनबी के पास बंदूक भी है। पर जिसके पास शक्ति होती है, मृत्यु उसके पास खड़ी हो तो भी वह डरता नहीं। भय तो कायर और दुर्बलों के लिये बना है।
इस दिलचस्प घटना का वर्णन हुए ब्रोम लिखते हैं कि-चारों शेर, शेरनियाँ तो अनुशासित ढंग से बैठे शिकार खा रहे थे पर बच्चों का तो स्वभाव ही है चंचलता वे बीच-बीच में उछल-कूद भी करते जाते थे। जब वे स्थान बदलते तो पूरे सिंह-परिवार को अपने-अपने स्थान बदलने पड़ते, बच्चों का ऐसा बढ़िया सम्मान देखकर हम दंग रह गये, उससे भी अधिक आश्चर्य इस बात का था कि यह परिवार बच्चों के प्रति कोरी भावुकता ही नहीं बरत रहा था वरन् उनकी उद्दण्डता और उच्छृंखलता रोकने के लिये बीच-बीच में शेरनियाँ उनको घुड़क भी देती थीं।”
भोजन करके पूरा परिवार जंगल में चला गया। डॉ. ब्रोम को यह स्थान लाभदायक लगा सो वहीं अपने खेमे लगा दिये। उनने कई दिन तक वहाँ रहकर जंगली सशक्त जीवों के सम्बन्ध में अनेक महत्वपूर्ण खोज कीं। उन्होंने देखा अपनी सामर्थ्य को पीढ़ी दर पीढ़ी बनाये रखने के लिये सिंह बहुत कम प्रजनन करते हैं। सिंह स्वभाव का बड़ा ही क्रूर और कठोर जीव है पर अपनी मादा के प्रति वह जितना उदार होता है उतना कोई-कोई ही मनुष्य होता होगा। एक सिंहनी के लिये दो सिंह लड़े हों ऐसा कभी नहीं होता। लगता है स्त्री के प्रति कामुक आकर्षणहीन और दरिद्र जातियों का स्वभाव है। हम भारतीयों ने नारी को जो सम्मान और श्रेयस प्रदान किया है वह प्रकृति के परम सत्य की प्रतिकृति ही है। इसीलिये हमारी मातृशक्ति ने भी हमारी समर्थता और गौरव को बढ़ाया है आज हम उस प्राकृतिक कायदे-कानून से विमुख न हों तो पुनः वही स्थिति प्राप्त कर सकते हैं।