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September 1970

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पञ्चेन्द्रियस्य मर्त्यस्य छिद्रं चेदेकमिन्द्रयम्।

ततोऽस्य स्त्रवति प्रज्ञा दृतेः पात्रादिवोदकम् ॥

पाँच इन्द्रिय वाले मनुष्य की यदि एक भी इन्द्रिय में दोष आ जाये, तो उससे इसकी बुद्धि टपकने लगती है। जैसे मशक से पानी अर्थात् ज्ञानेन्द्रियों द्वारा भूल करना ही मूर्खता है।

-विदुर-नीति



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