पञ्चेन्द्रियस्य मर्त्यस्य छिद्रं चेदेकमिन्द्रयम्।
ततोऽस्य स्त्रवति प्रज्ञा दृतेः पात्रादिवोदकम् ॥
पाँच इन्द्रिय वाले मनुष्य की यदि एक भी इन्द्रिय में दोष आ जाये, तो उससे इसकी बुद्धि टपकने लगती है। जैसे मशक से पानी अर्थात् ज्ञानेन्द्रियों द्वारा भूल करना ही मूर्खता है।
-विदुर-नीति