बड़ा कौन

September 1970

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बड़ा कौन-

एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि मानव-शरीर में वे पाँचों तत्व ही आपस में उलझ बैठे, जिनसे इस शरीर का निर्माण हुआ है।

वायु कहता था- ‘मैं सबसे बड़ा हूँ। मैं न आऊँ, तो श्वास हीन होकर एक क्षण में ही जीवन-लीला समाप्त हो जाये।’

तब पृथ्वी-तत्व बोला- ‘अरे, मुझसे तो ये शरीर खड़ा हुआ दीखता है। इन्द्रियों का आकार न हो, तो तुम सब अपनी अभिव्यक्ति कैसे कर सकोगे?’

जल-तत्व भी चुप न बैठा। उसने कहा- ‘जीवन का आधार तो मैं हूँ। रस न हो, तो सब कुछ पलक मारते समाप्त।’

अग्नि ने अब ठहाका लगाया और कहने लगा- ‘अरे, मेरी क्षमता तथा महत्व का अनुमान तो तुम लगा ही नहीं सकते। मैं न रहूँ, तो ये शरीर क्षण मात्र में बर्फ हो जाये।’

आकाश-तत्व ने बड़ी हेकड़ी से कहा- ‘मेरी उपयोगिता का मूल्याँकन तुम सबकी पहुँच से परे है। समस्त सूक्ष्म शक्तियों का संचालन तो मैं ही करता हूँ। शब्द मेरी तन्मात्रा है, मैं न रहूँ तो संसार खामोशी में डूबा समुद्र लगने लगे।’

आत्मा बैठा-बैठा यह संवाद सुन रहा था। उसने धीरे-से शरीर में से प्रयाण कर दिया। पाँचों तत्व उसके पीछे-पीछे ऐसे चल दिये, जैसे मधु-मक्खियों के छत्ते से उनकी रानी चल देती है, तो सारी मक्खियाँ उसके पीछे-पीछे चल देती हैं।


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