ब्रह्माँड की तुलना में मनुष्य का स्वत्व नितान्त अस्तित्वहीन है, पर उसकी लघुता ही विराट को माप सकती है, इसलिये हमें सदैव छोटा बनकर जीना चाहिए।
-होरेस ग्रिले
कोश (सेल) जिस प्रकार ज्ञान, गुण और संस्कारों से मुक्त नहीं उसी प्रकार वह पदार्थ से रहित भी नहीं रह सकता जबकि पदार्थ कोई स्वतन्त्र वस्तु नहीं, ब्रह्माँड का गुण मात्र है। इसलिये यह समझने में कोई दिक्कत नहीं कि शरीर रूपी पिटारी में ज्ञान-विज्ञान के अनादि स्रोत ही नहीं, पदार्थ की स्थूल संस्कृतियाँ भी निश्चित रूप से बन्द हैं। जमीन में गाड़े गये टाइम कैप्सूल तो कभी खराब भी हो सकते हैं, मनुष्य शरीर जैसा कैप्सूल तो हर किसी के लिये हर समय उपलब्ध है। विज्ञान जहाँ आज ब्रह्माँड में पहुँच के अनेक रहस्य खोल रहा हैं, वहाँ उसकी उपलब्धियाँ और इस तरह के प्रमाण इस बात के साक्षी हैं कि मनुष्य पदार्थमय जगत् के विस्तार में जो कुछ पाना चाहता है वह सब बीज रूप में उसके भीतर ही बन्द हैं, इसके लिये अन्यत्र भटकने की आवश्यकता नहीं। यह सब एक सामान्य व्यक्ति की दृष्टि में क्यों नहीं आता, विज्ञान अथवा योगियों की दृष्टि में ही यह सब क्यों हैं? यह एक प्रश्न है, इसका उत्तर विज्ञान और योग दोनों का एक ही है। वह यह कि सूक्ष्मतर अवस्था में पहुँचने के लिये अपनी इन्द्रियों को भी सूक्ष्म बनाना होगा। टाइम कैप्सूल में वह सब यन्त्र रखे गये हैं, जिनकी मदद से पिटारी में बन्द सभी वस्तुओं को कभी भी खोलकर जानकारी प्राप्त की जा सकती हैं, उसी प्रकार अपनी चेतना को सूक्ष्मावस्था में प्रवेश कराकर हम भी समय, गति और ब्रह्माँड से परे उन सभी वस्तुओं को समझने, जानने और प्राप्त करने में समर्थ हैं-जो स्थूल दृष्टि से देखने में लाखों-करोड़ों मील दूर, अब नहीं भविष्य में होने वाली हैं या पहले कभी हो चुकी हैं।
मनुष्य की नसें प्रति सेकेण्ड कुल 700 कम्पनों की अनुभूति ग्रहण कर सकती हैं। कान 15000 साइकिल प्रति सेकेण्ड की ही ध्वनि सुन सकते हैं, आँखें बैंगनी रंग से ऊँची फ्रीक्वेन्सी वाले रंग नहीं देख सकती। पर विद्युत विशेषज्ञ श्री निकोला टैसला ने सिद्ध कर दिया कि यदि विद्युत क्षमता बढ़ाकर इन फ्रीक्वेन्सियों को बढ़ाया जा सके, तो मनुष्य की ज्ञानेन्द्रियाँ और भी सूक्ष्म अवस्थाओं की अनुभूति कर सकती हैं। ध्यान द्वारा आत्म-चेतना को एक सूक्ष्मतम् बिन्दु में एकाग्र करना इसी सिद्धान्त पर आधारित एक महान योग-प्रक्रिया है, जिससे शरीर रूपी टाइम कैप्सूल में बन्द विराट को भी सूक्ष्म रूप में अध्ययन और अनुभूति कर हम वह सब प्राप्त कर सकते हैं, जो इस सम्पूर्ण ब्रह्माँड में पहले से विद्यमान है।