प्रातःकाल होता, तो तालाब अपने पास बह रहे झरने को डराकर कहता- बन्धु! इधर आने की भूल मत करना अन्यथा मुझमें डूबकर मर जाओगे।
बकवास करने की अपेक्षा काम करने में विश्वास रखने वाला झरना कुछ उत्तर देने की अपेक्षा थोड़ा मुस्करा देता और अपनी राह पकड़ता।
तालाब जहाँ था, वहीं सड़ता रहा। पर झरना किनारा काटता हुआ एक दिन तालाब के समीप तक जा पहुँचा। उस दिन रात में भीषण वर्षा हुई और वह छोटी-सी सीमा भी टूट गई। तालाब झरने के पेट में समा गया। झरना और तीव्र गति से आगे बढ़ने लगा।
तालाब झरने में डूबने लगा, तब किनारे खड़े शाल्मलि वृक्ष ने ठिठोली की- बन्धु! जो स्वयं कुछ नहीं कर सकते और दूसरों को भी कुछ करते नहीं देख सकते, उनकी अन्त गति यही होती है।