जनसंख्या निरोध की निर्दय किन्तु प्राकृतिक प्रविधि

September 1970

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उत्तरी योरोप में 125064 वर्गमील क्षेत्र और कुल 3540000 की जनसंख्या का एक छोटा सा देश है उसका नाम है “नार्वे” । नोर्डकिन अन्तरीप इसी देश के उत्तरी तट पर स्थित है। इस अन्तरीप में 6 माह तक तो दिन-रात दिन ही दिन बना रहता है अर्थात् सूरज चमकता है शेष 6 माह दोपहर में भी सूरज दिखाई नहीं पड़ता।

नार्वे प्रकृति के उक्त विलक्षण दृश्य से भी बढ़कर एक ऐसे रहस्य का उद्घाटन दिन-रात करता रहता है जिसके लिये आज दुनिया भर के सभी देशों में पृथक मन्त्रालय खुले हुये हैं तो भी समस्या नियन्त्रण में नहीं आती। वह विश्वव्यापी समस्या है “जनसंख्या की असीमित वृद्धि” संख्या शास्त्रियों का अनुमान है कि प्रति वर्ष संसार की आबादी एक करोड़ बीस लाख बढ़ रही है। प्रोफेसर हीजवान फास्टर का कथन है कि 13 नवम्बर 2026 दिन शुक्रवार को मनुष्य जाति का इसलिये अन्त हो जायेगा कि उस दिन जनसंख्या इतनी अधिक हो जायेगी कि लोगों को खड़े होने तक की जगह न रह जायेगी। डॉ. जेम्स बर्नर के आँकड़े इससे भी भयंकर हैं। लन्दन की स्वास्थ्य काँग्रेस का भी कथन है कि अब से 80 वर्ष बाद संसार, जनसंख्या वृद्धि के कारण महाप्रलय के गर्भ में चला जायेगा और मनुष्य अपने आप लड़ झगड़ कर, प्राकृतिक प्रकोपों द्वारा नष्ट-भ्रष्ट होकर नेस्त नाबूद हो जायगा।

यह आँकड़े जितने सत्य हैं, जितने भयानक हैं शुतुरमुर्ग की भाँति उतना ही मनुष्य उससे मुँह छुपाना चाहता है। कहते हैं रेगिस्तानी शुतुरमुर्ग जब अपने शिकारी को देखता है तो भयग्रस्त होकर अपना मुँह बालू में घुसेड़ कर सुरक्षित हो जाने की कल्पना करता है इस बीच शिकारी वहाँ पहुँच जाता है और उसकी अपनी भूल के कारण ही बड़ी आसानी से उसका आखेट कर लेता है। प्रकृति मनुष्य की मूर्खता पर प्रहार करने के लिये कितनी निर्दयता पूर्वक तैयारी कर रही है उसका दर्शन करना हो तो नार्वे जाना चाहिये और वहाँ पाये जाने वाले चूहे की सी आकृति वाले विचित्र जन्तु “लेमिंग” की जीवन पद्धति और उसके परिणाम का अध्ययन करना चाहिये।

“लेमिंग” ठीक चूहों जैसे ही होते हैं किन्तु इनकी दुम छोटी है। इनके दो ही काम मुख्य हैं एक खाते रहना दूसरा बच्चे पैदा करते रहना। लगता है पूर्व जन्म में अधिक संतान पैदा करने वाले ही भाग-भाग कर नार्वे जाते हैं और इस जन्म में “लेमिंग” के रूप में शरीर धारण कर अपनी विभुक्षित वासना पूरी करने का प्रयत्न करते हैं। पर उनकी यह मूर्खता ही उनके महानाश का कारण बनती है। महाप्रलय के जो संकेत प्रो. हीजवान, माल्थस, डॉ. जेम्स बर्नर आदि ने दिये हैं उनका जीता-जागता दृश्य नार्वे में देखा जा सकता है।

मादा लेमिंग दिन-रात बच्चे पैदा करती रहती है फलस्वरूप कुछ ही दिनों में पहाड़ियों की पहाड़ियाँ “लेमिंगों” से ऐसे भर जाती हैं जैसे बरसात में पानी। रहने के लिये, शरीर छुपाने के स्थान नहीं रहते तो बिलबिलाते हुये इधर-उधर भागते हैं। दाँव लगता है भेड़ियों, भालू और लोमड़ियों का। वे इन्हें खा पीकर बराबर कर देते हैं।

कई बार शत्रु भी इनकी संख्या घटा नहीं पाते तब वे चींटी की तरह तीन-तीन चार-चार की कतार बनाकर समुद्र की ओर चल पड़ते हैं। बेचारे इतने कायर और कमजोर होते हैं कि दिन में चल भी नहीं सकते कमजोर के लिये हर जगह, दुश्मन तैयार रहते हैं इसी भय से वे रात में चलते हैं और किसी तरह समुद्र तक पहुँच जाते हैं पर वहाँ भी उन्हें सिवाय “आत्म-हत्या” के कुछ हाथ नहीं आता। समुद्र में कूद-कूद कर अपनी जान गंवा देते हैं थोड़े बहुत बच जाते हैं वह लौटकर आते हैं और फिर से प्रजनन और विनाश का यही क्रम प्रारम्भ हो जाता है।

मनुष्य, प्रकृति के इस निर्दय सत्य से कुछ सीखता व संभलता तो दुर्गति की जो स्थिति सामने दौड़ती आ रही है वह कम न हो जाती?


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