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September 1970

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अपमानं पुरस्कृत्य मानं कृत्वा तु पृष्ठतः।

स्क्कार्य मुद्धरेत्प्राज्ञः कार्यध्वंशो हि मूर्खता॥

अपमान को आगे कर, सम्मान की ओर कोई भी दृष्टि न रखकर बुद्धिमान पुरुष को अपना कार्य-साधन करना चाहिये, क्योंकि मानापमान के ध्यान में कार्य बिगाड़ लेना महान् मूर्खता है।


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