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September 1970

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सदैव दिन ही दिन नहीं रह सकता उसी प्रकार अंधेरे का अस्तित्व भी सनातन नहीं। उसे मिटाना ही है, अन्धकार को चीर कर प्रकाश को तो खिलना ही है चाहे वह आज खिले या कल।

-स्पिनोजा

प्रो. हरार के अनुसार मंगोलिया या साइबेरिया के प्रश्न को लेकर रूस और चीन में जबर्दस्त टक्कर होगी। दोहरी मार से बचने के लिये चीन भारतवर्ष से मैत्री का ढोंग रचायेगा और रूस के साथ आणविक अस्त्र-शस्त्रों के अतिरिक्त एक नयी युद्ध प्रणाली जर्म्सवार (इस युद्ध में दुश्मन देशों में बीमारियाँ फैलती हैं और लोग बिना युद्ध मरने लगते हैं) की शुरुआत करेगा। रूस चीन का मुँह तोड़ जवाब देगा और उसकी अब तक की समस्त वैज्ञानिक प्रगति को नष्ट-भ्रष्ट करके रख देगा। इस बीच तिब्बत उसके जबड़े से निकल आयेगा और अपने को स्वेच्छा से भारतवर्ष से संबन्धित कर लेगा।

सन् 1980 तक सारे संसार की स्थिति विश्व युद्ध जैसी हो जायेगी। उसमें अधिकाँश छोटे-छोटे देश टूटकर बड़े देशों में विलीन हो जायेंगे। भारतवर्ष इन सबका अगुआ होगा। यू. एन. ओ. अमेरिका से टूट का भारतवर्ष चली जायेगी। वहाँ उसका नये सिरे से संगठन होगा। भारतवर्ष चिरकाल तक उसका अगुआ और अध्यक्ष बना रहेगा। साम्प्रदायिक तनाव बिल्कुल समाप्त हो जायेंगे। यद्यपि शासन सूत्र कुछ अन्य व्यक्तियों के हाथ होगा, पर वे एक धार्मिक संगठन के आश्रित होंगे।

भारतवर्ष कई विलक्षण आयुधों का निर्माण करेगा। हिमालय में किसी गुप्त खजाने और बहुमूल्य साँस्कृतिक उपादानों का गुप्त भण्डार मिलेगा। हिमालय के अधिकाँश भाग में आबादी हो जायेगी। वह देश और दुनिया का सबसे बड़ा पर्यटन स्थल होगा। इजराइल और भारतवर्ष के मैत्री संबंध बहुत प्रगाढ़ होंगे। रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस व जर्मनी जैसे देश मिलकर भी आज जो वैज्ञानिक खगोलीय सफलतायें अर्जित नहीं कर सके, वह भारतवर्ष अकेले ही कर लेगा। सन् 1980 से 2000 तक का समय भारतवर्ष की तीव्र प्रगति का है। इस अवधि में उसकी उन्नति के लिये लोग दाँतों तले उंगली दबायेंगे। सबसे आश्चर्य की बात यह होगी कि यह सब धार्मिक विचार वाले लोगों के द्वारा होगा। सारी दुनिया के लोग भारतीयों के समान शाकाहारी होंगे। दुनिया में एक ऐसी भाषा का विस्तार होगा, जो आज सबसे कम बोली व पढ़ी जाती है।

प्रो. हरार को एक महान् धार्मिक सन्त के रूप में ख्याति मिली है। उनकी भविष्य वाणियाँ कभी असत्य नहीं निकलीं। अगले 30 वर्षों के लिये उन्होंने जो कुछ कहा और लिखा है, वह पहले से भी अधिक महत्वपूर्ण है और चूँकि उसका अधिकाँश संबंध अपने देश से है, अतएव हमें उस कथन को बड़े ध्यान से पढ़ना चाहिये और भावी परिवर्तनों के संदर्भ में आवश्यक सतर्कता से काम लेना चाहिये।


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