आगे बढ़ते हुए राहगीर ने मील के पत्थर की ओर देखा और बोला– "उँह! तुम भी कोई आदमी हो, जहाँ गड़ गये वहाँ से हिलने का नाम भी नहीं लेते। देखो, मेरी ओर देखो सारे संसार का भ्रमण करता हुआ आनन्द कर रहा हूँ।"
पत्थर ने धीमी आवाज से कहा– "बन्धु ! मुझे देखकर लोग दूरी का अनुमान कर सन्तोष पाते हैं। इस सेवा का सन्तोष क्या कम सुखद है- जो मैं भी निरुद्देश्य इधर-उधर भटकता फिरूं?"