स्वर-ब्रह्म की उपासना-
देव-दनुजों में भयंकर युद्ध हुआ। इस बार देवताओं की शक्ति क्षीण हो गई थी इसलिये उन्हें असुरों के द्वारा पराजित होना पड़ा। आत्म-रक्षा के लिए देवताओं ने पृथ्वी, समुद्र, आकाश जहाँ भी छिपने का प्रयत्न किया असुरों ने उन्हें ढूंढ़ निकाला। पीड़ित देवगण ब्रह्माजी के पास गये और बोले-भगवान आप ही हमारी सुरक्षा के लिए कुछ उपाय बतायें?
प्रजापति ने कहा- देवगणों। विशाल ब्रह्माण्ड में फैला स्वर चेतना में लीन हो जाओ तभी मुक्ति मिलेगी। देवताओं ने परस्पर विचार किया और भगवती सरस्वती के पास जाकर शरण देने की प्रार्थना की। देवी ने देवताओं को अपनी संगीत चेतना में छिपा लिया। उस दिन से संगीत रूप में देवताओं की उपासना होने लगी। जो लोग श्रद्धापूर्वक संगीत में लीन हो जाते हैं उनकी देवता रक्षा करते हैं।