‘द’ का रहस्य-
एक बार सुर, असुर और मनुष्य तीनों मिलकर ब्रह्मा के पास उपदेश सुनने के लिये गये और यह निवेदन किया कि वे जीवनोपयोगी ऐसी बातें बतायें, जिससे जीवन सफल हो जाये।
ब्रह्मा जी ने उपदेश दिया ‘द’।
तीनों सन्तुष्ट होकर लौट आये। देवताओं ने सोचा- हमारे स्वर्गलोक में भोगों की कोई कमी नहीं है। सारी सुख-सुविधायें उपलब्ध हैं। सभी इतने लिप्त रहते हैं और एक दिन अपने लक्ष्य से ही भटक जाते हैं। अतः ब्रह्माजी ने ‘द’ से दमन अर्थात् इन्द्रिय संयम का उपदेश दिया है।
असुर सोचने लगे- हम लोगों का स्वभाव ही हिंसक है। बनी बनाई व्यवस्था बिगाड़ते रहते हैं। क्रोध में उचित-अनुचित का विचार तक नहीं कर पाते और अन्त में अपनी ही हानि कर लेते हैं। अतः ‘दया’ ही ऐसा राजमार्ग है जिसके द्वारा हमारे दुष्कर्म छूट सकते हैं। और पारस्परिक मेल-जोल से रहकर दूसरों के प्रति प्रेम तथा सहानुभूति की भावना रख सकते हैं।
मनुष्यों ने ब्रह्माजी के उपदेश को तुरन्त ही ताड़ लिया। वे समझ गये कि हम अपने बाल-बच्चों के पीछे जीवन भर हाय-हाय करते रहते हैं और झूठ, बेईमानी, मक्कारी तथा भ्रष्ट तरीकों से धन एकत्रित करके रखते हैं। इसलिए ‘दान’ करते रहने का उपदेश उन्होंने हमें दिया है। हम अपनी सुविधानुसार ज्ञान, विद्या या धन का दान देकर अभावग्रस्त लोगों को आगे बढ़ा सकते हैं।