बच्चों को उँगली पकड़कर सिखाना

June 1970

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मध्य एशिया में पाई जाने वाली मादा 'क्वेल' चिड़िया अपने बच्चों को बड़ा अनुशासित रखती है। जब तक वे बड़े नहीं हो जाते, इकट्ठे मिलकर चलते, उठते-बैठते और खाते-पीते हैं। फिर भी कई बार शिकारी पक्षी आक्रमण कर देते हैं, उनसे जान बचाना मुश्किल पड़ता है।

क्वेल तब बड़ी बुद्धिमत्ता से काम लेती है। उसने जैसे ही देखा कि कोई शिकारी पक्षी झपटा, वह उसी दिशा में आगे बढ़कर जायेगी और उस शिकारी पक्षी के सामने उड़कर ऐसे गिर पड़ेगी, मानो अब उसमें उड़ने की सामर्थ्य नहीं रही।

शिकारी पक्षी इतनी आसानी का शिकार पाकर व्यर्थ परिश्रम करने का इरादा छोड़ देता है और जहाँ क्वेल पड़ी होती है, उधर चल पड़ता है। इस बीच बच्चों को सुविधाजनक स्थान में छुप जाने का अवसर मिल जाता है।

शिकारी अपने आहार के लिये आश्वस्त होता है, इसलिये उसे तो कोई सावधानी रहती नहीं, पर क्वेल चोरी आँख से चुपचाप शिकारी का वहाँ पहुँचना देखती रहती है। जैसे ही वह वहाँ पहुँचा कि वह अपने पंख तेज़ी से फडफडा कर उड़ भागती है। पंख फड़काने से शिकारी घबड़ा उठता है और दुबारा जब तक वह संभलता है, क्वेल तीर की तरह छूटकर न जाने कहाँ की कहाँ जा पहुँचती है। शिकारी मूर्ख को निराशा ही हाथ लगती है। द्विविधा में न तो माया ही मिल पाती है और न ही राम। अपना-सा मुँह लेकर उदास भाग जाता है।

क्वेल अपने बच्चों के पास लौट आती है। पर क्वेल जानती है कि कदाचित बच्चों के जीवनकाल में ऐसी कोई स्थिति न आने पाये, वे अप्रशिक्षित रह जायें और फिर कभी उनके बच्चों पर आक्रमण हो, तो वे अपने बच्चों की सुरक्षा कैसे करें, इसके लिये क्वेल को वैसे ही परिश्रम करना पड़ता है, जैसे पहलवान बाहरी दंगलों में जाकर कुश्ती-प्रदर्शन करने से पूर्व गाँव के अखाड़ों में खूब अभ्यास करते हैं। सेना में भी ऐसा ही होता है। दो बटालियनें या और बहुत-सी फौज मिलकर अभ्यास करती हैं। दो दलों में विभक्त होकर वे इस तरह से अभ्यास करती हैं, मानों दो दुश्मन फौजें लड़ रही हों। इस प्रकार के अभ्यास में केवल गोलियाँ नहीं चलतीं, और सब वैसा ही होता है, जैसे युद्ध में। दोनों दलों के नाम अलग-अलग रखे जाते हैं, सीमायें बंटती हैं, घेरेबन्दी होती है, संचार-वाहन, गिरफ्तारियाँ, सामग्री-वितरण, भेदियों से पूछताछ आदि के सब ड्रामे बिलकुल असली युद्ध की तरह होते हैं। इससे सैनिकों को असली युद्ध की झाँकी मिल जाती है और वे जब कभी युद्ध होता है, बिना किसी घबराहट के सब काम कर लेते हैं।

क्वेल नर और मादा भी इस तरह का अभ्यास करके अपने बच्चों को दिखाते हैं, जिससे वे सब बातें समझ जाते हैं और यदि उनके सामने कभी वैसी परिस्थिति आती है, तो वे उसे हँसी-खुशी से पार कर लेते हैं।

हम चाहते है कि हमारे बच्चे भी आगे चलकर अच्छा और अनुशासित जीवन जियें, तो उसके लिये केवल आकाँक्षा करने से काम न चलेगा। उन्हें क्वेल पक्षी की तरह उस जीवन का प्रारम्भ में उँगली पकड़कर अभ्यास करना ही पड़ेगा। जिन बच्चों को प्रारम्भ में नीति, धर्म, सदाचार, स्वच्छता, सफाई, अनुशासन आदि का अभ्यास करा दिया जाता है। क्वेल के बच्चों की तरह ही वे आगे चलकर सफल नागरिक बन पाते हैं।

हम चाहते है कि हमारे बच्चे भी आगे चलकर अच्छा और अनुशासित जीवन जियें, तो उसके लिये केवल आकांशा करने से काम न चलेगा। उन्हें क्वेल पक्षी की तरह उस जीवन का प्रारम्भ में उँगली पकड़कर अभ्यास कराना ही पड़ेगा। जिन बच्चों को प्रारम्भ में नीति, धर्म, सदाचार, स्वच्छता, सफाई, अनुशासन आदि का अभ्यास करा दिया जाता है। क्वेल के बच्चों की तरह ही वे आगे चलकर सफल नागरिक बन पाते हैं।

सद्वाक्य

कभी न कभी माता का सदाचार और पिता का पाप बच्चे पर अवश्य आता है । 

– डिकोस


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