शाकाहार इसलिए आवश्यक

June 1970

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रक्त में पाये जाने वाले लाल कणों को, जिनकी सघनता से ही रक्त का रंग लाल होता है, निकाल डालें तो जो शेष बचेगा वह पानी होगा। चरक संहिता के अनुसार रक्त में 8 अंजलि और मस्तिष्क में आधा अंजलि केवल जल ही होता है। शरीर के भार का 70 प्रतिशत भाग केवल जल ही होता है। यदि आप 100 पौंड वजन के हैं तो आप में 70 पौंड पानी है। रक्त में तो यह प्रतिशत 92 का होता है अर्थात् शरीर में यदि 6 लीटर रक्त है तो उसमें रक्तकणों की मात्रा कुल 0.48 लीटर ही होगी शेष 5.52 लीटर मात्रा केवल जल की होगी।

प्रकृति ने मनुष्य को खनिज धातु, लवण और गैसों के एक विशेष सम्मिश्रण से बनाया है। शरीर में किस वस्तु का कितना प्रतिशत रहना चाहिए, उसे प्रकृति ने शरीर बनाते समय पहले ही निश्चित कर दिया है। जब तक यह अनुपात स्थिर रहेगा तब तक शरीर स्वस्थ और मन प्रसन्न रहेगा। यदि उसमें व्यतिक्रम हुआ, गलत खाने से वह अनुपात बिगड़ा तो फिर मनुष्य का स्वस्थ रहना सम्भव नहीं, कोई न कोई बीमारी उसे अवश्य धर पकड़ेगी। यह एक वैज्ञानिक सिद्धान्त हुआ।

आजकल लोगों का विश्वास है कि अधिक से अधिक चर्बी वाले पदार्थ भी, तेल, माँस और आटा, दाल खाने से ज्यादा शक्ति मिलती है, वह मात्र भ्रम है। चर्बी वाले पदार्थों का सेवन ही दीर्घ जीवन के प्रतिफल है। इसमें पाया जाने वाला ‘कोलेस्ट्रॉल’ तत्व धमनियों में रुकावट पैदा करता है इसी के कारण ही नाड़ियों में रक्तस्राव व ‘एथेरीसक्लेरोसिस’ नामक रोग पैदा होता है।

अन्न न मिले तो मनुष्य 60 दिन तक जीवित बना रह सकता है, पर पानी के बिना तो वह अधिक से अधिक सात ही दिन जी सकता है। पानी के बिना एक दिन बिताना भी सबसे बड़ी तितिक्षा मानी गई है- वह पानी के महत्व को ही प्रतिपादित करता है। प्रोटीन, चर्बी और ग्लाइकोजन सब मिलाकर शरीर में 40 प्रतिशत होते हैं। यह सबके सब समाप्त हो जायें तो भी मनुष्य जीवित रह सकता है, पर पानी की मात्रा में 20 प्रतिशत भी कमी हो जाये तो शरीर का जीवित रहना सम्भव नहीं। शरीर में पाचन क्रिया से लेकर रक्त परिभ्रमण तक के लिये जल शरीर की प्राथमिक आवश्यकता है।

इस दृष्टि से जहाँ दिन में बार-बार पानी पीने की आवश्यकता है वहाँ यह भी आवश्यक है कि हम जो आहार ग्रहण करें उसमें भी पानी की मात्रा कम न हो। पीली सब्जी और दाल बनाकर खाने का केवल भारतवर्ष में ही रिवाज है। यह पद्धति जल की आवश्यकता देखकर ही चलाई गई थी। अब जो वैज्ञानिक आँकड़े सामने आ रहे हैं, उनसे पता चलता है कि आहार में शाकों की बहुलता निर्धारित करने के पीछे भारतीय आचार्यों ने कितनी बुद्धिमत्ता और वैज्ञानिकता से काम लिया है।

मोटे रूप से हम जो अन्न लेते हैं उसमें जल की अधिकतम 60 प्रतिशत ही मात्रा होती है, पर फल और सब्जियों में जल की मात्रा 95 प्रतिशत तक होती है इसी से सुपाच्य भी होते है और आरोग्यवर्धक भी। सेब में 84 प्रतिशत जल होता है और केला व अंगूर में क्रमशः 75.3 प्रतिशत वह 77.3 प्रतिशत। आड़ू में 89.4 प्रतिशत तो गोभी तथा गाजर में 91.5 प्रतिशत व 88.2 प्रतिशत। पालक जैसी पत्तेदार हरी सब्जियों और टमाटर में तो 92.3 तथा 94.3 प्रतिशत जल होता है। यह जल उस खनिज जल के समान होता है जो पहाड़ी नदियों से पर्वतों के अनेक सल्फर तत्व लेकर बनता है। इसलिये स्वास्थ्य के लिये जितने उपयोगी शाक है उतना और कोई पदार्थ हो ही नहीं सकता।

माँस और भारी अन्न से कोई शरीर की स्थूलता भले ही बढ़ा ले पर जिन्हें स्वस्थ, रोगमुक्त और तेजस्वी जीवन बिताना है उन्हें जल की पर्याप्त मात्रा ग्रहण करनी ही होगी- वह केवल शाकाहार से ही मिल सकती है।


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