ममत्तं छिन्दये ताये महाना गोव्व कंचुयं।
– उत्तराध्ययन 19।87
आत्मसाधक ममत्व के बन्धन को उसी प्रकार उतार फेंके, जैसे सर्प शरीर पर आई केंचुली उतार फेंकता है।