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June 1970

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ममत्तं छिन्दये ताये महाना गोव्व कंचुयं।

उत्तराध्ययन 19।87

आत्मसाधक ममत्व के बन्धन को उसी प्रकार उतार फेंके, जैसे सर्प शरीर पर आई केंचुली उतार फेंकता है।


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