गरीबों का हमदर्द

June 1970

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गरीबों का हमदर्द-

“माँ देखना, मैं कितनी अच्छी चीज लाया हूँ।”

“अरे यह क्या ले आया। यह तो किसी चिड़िया के अंडे हैं। मुझे ऐसा लगता है कि तू चिड़िया के तीनों अंडे उठा लाया है। जब वह अपने घर लौटेगी तो बहुत रोयेगी बेटा।”

“अच्छा माँ। यह चिड़िया के अंडे हैं। मुझे क्या मालूम था?” वह बालक लंगड़ाते-लंगड़ाते उस पेड़ तक गया क्योंकि चोट के कारण उसके पैर में दर्द हो रहा था। वह पेड़ पर चढ़ा और उसने सब अंडे उसी घोंसले में रख दिये। और पेड़ के नीचे बैठा तब तक रोता रहा जब तक कि वह चिड़िया पेड़ पर न आ गई। चिड़िया को देखकर उसका सारा दर्द जाने कहाँ चला गया और हँसता-कूदता अपनी माँ के पास लौट आया। यह बालक कोई और नहीं वरन् दीनबन्धु एन्ड्रूज थे, जो जीवन भर दीनों को अपना भाई समझ कर प्यार करते रहे।


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